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Vinesh Phogat: 2024 ओलंपिक में ऐसा क्या हुआ जिससे टूट गई थीं विनेश फोगाट? 104 साल का इंतजार होने वाला था खत्म
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Fri, 12 Dec 2025 03:23 PM IST
सार
विनेश ने टूटकर भी उठने की हिम्मत दिखाई है। और शायद, इतिहास भी यही चाहता है कि भारत का पहला ओलंपिक कुश्ती स्वर्ण वही खिलाड़ी लेकर आए, जिसका सपना एक बार पेरिस की सुबह ने तोड़ दिया था।
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विनेश फोगाट
- फोटो : ANI
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विस्तार
तारीख- छह अगस्त 2024...पेरिस में उस दिन सूरज कुछ अलग ही चमक रहा था। ओलंपिक में भारत के कुश्ती खेल इतिहास का 104 वर्षों का इंतजार शायद खत्म होने वाला था। भारत ने 1920 में ओलंपिक कुश्ती में पहली बार भाग लिया था। तब से 2024 तक कोई भारतीय एथलीट, चाहे पुरुष हो या महिला, ओलंपिक में स्वर्ण पदक नहीं जीत सका था।
महिलाओं की 50 किलोग्राम कैटेगरी में विनेश फोगाट फाइनल में पहुंच चुकी थीं और उस रात ऐसा लग रहा था कि यह इतिहास बदलने वाली है। सेमीफाइनल में विनेश की जीत सिर्फ एक जीत नहीं थी, यह वह दरवाजा था जिससे गुजरकर भारत पहली बार ओलंपिक कुश्ती में स्वर्ण पदक जीत सकता था। भारत में हर कोई खुश था, क्योंकि जिस फॉर्म में विनेश थीं, चाहे वो कोई भी चैंपियन हो, हर किसी को धूल चटा रही थीं। पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था।
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महिलाओं की 50 किलोग्राम कैटेगरी में विनेश फोगाट फाइनल में पहुंच चुकी थीं और उस रात ऐसा लग रहा था कि यह इतिहास बदलने वाली है। सेमीफाइनल में विनेश की जीत सिर्फ एक जीत नहीं थी, यह वह दरवाजा था जिससे गुजरकर भारत पहली बार ओलंपिक कुश्ती में स्वर्ण पदक जीत सकता था। भारत में हर कोई खुश था, क्योंकि जिस फॉर्म में विनेश थीं, चाहे वो कोई भी चैंपियन हो, हर किसी को धूल चटा रही थीं। पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था।
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विनेश फोगाट
- फोटो : ANI
विनेश का दर्द: 100 ग्राम जिसने तोड़ दिया 104 साल का सपना
विनेश का सेमीफाइनल तक पहुंचना ही एक चमत्कार जैसा था। विनेश ने डिफेंडिंग चैंपियन युई सुसेकी (जो विनेश से हारने से पहले अपना कोई कुश्ती मुकाबला नहीं हारी थीं), यूरोपीय चैंपियन ओक्साना लाइवाच, और पैन अमेरिकन गेम्स चैंपियन यूसनेलिस गुजमैन जैसी दिग्गजों को हराकर फाइनल का टिकट हासिल किया था। लेकिन सात अगस्त का वो मनहूस दिन आ ही गया। सात अगस्त यानी फाइनल की सुबह, जिस दिन देश इतिहास रचते देखने को तैयार बैठा था, एक सिर्फ 100 ग्राम ने सब कुछ खत्म कर दिया।
विनेश का वजन निर्धारित सीमा से 0.1 किलो अधिक पाया गया और उन्हें तुरंत मुकाबले से बाहर कर दिया गया। यह सिर्फ एक डिस्क्वालिफिकेशन नहीं थी, यह एक सपना टूटने की आवाज थी, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। 104 साल के इंतजार का अंत, बस कुछ घंटों की दूरी पर था…और इसी मोड़ पर सब कुछ बिखर गया। फैंस हैरान रह गए। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ देर पहले स्वर्ण जीतने की दहलीज पर खड़ीं विनेश, डिस्क्वालिफिकेशन के बाद कोई पदक नहीं जीत सकीं थीं।
विनेश का सेमीफाइनल तक पहुंचना ही एक चमत्कार जैसा था। विनेश ने डिफेंडिंग चैंपियन युई सुसेकी (जो विनेश से हारने से पहले अपना कोई कुश्ती मुकाबला नहीं हारी थीं), यूरोपीय चैंपियन ओक्साना लाइवाच, और पैन अमेरिकन गेम्स चैंपियन यूसनेलिस गुजमैन जैसी दिग्गजों को हराकर फाइनल का टिकट हासिल किया था। लेकिन सात अगस्त का वो मनहूस दिन आ ही गया। सात अगस्त यानी फाइनल की सुबह, जिस दिन देश इतिहास रचते देखने को तैयार बैठा था, एक सिर्फ 100 ग्राम ने सब कुछ खत्म कर दिया।
विनेश का वजन निर्धारित सीमा से 0.1 किलो अधिक पाया गया और उन्हें तुरंत मुकाबले से बाहर कर दिया गया। यह सिर्फ एक डिस्क्वालिफिकेशन नहीं थी, यह एक सपना टूटने की आवाज थी, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। 104 साल के इंतजार का अंत, बस कुछ घंटों की दूरी पर था…और इसी मोड़ पर सब कुछ बिखर गया। फैंस हैरान रह गए। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ देर पहले स्वर्ण जीतने की दहलीज पर खड़ीं विनेश, डिस्क्वालिफिकेशन के बाद कोई पदक नहीं जीत सकीं थीं।
विनेश फोगाट
- फोटो : ANI
गुस्सा, सवाल और अंतहीन दर्द
विनेश के वेट-मैनेजमेंट को लेकर गंभीर सवाल उठे। यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (यूडबल्यूडबल्यू) में की गई अपील खारिज हुई। फिर खेल पंचाट में उम्मीद की आखिरी किरण भी बुझ गई। कहते हैं खिलाड़ी शारीरिक चोट से जल्दी लौट आते हैं, लेकिन दिल पर लगे घाव भरने में बहुत समय लगता है। विनेश के साथ भी यही हुआ। उन्होंने इसे अपने जीवन का सबसे दर्दनाक अध्याय बताते हुए संन्यास की घोषणा कर दी। भारत ने सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं खोई, उसने एक ऐसा मौका खो दिया जिसकी प्रतीक्षा एक सदी से ज्यादा समय से थी।
सपने टूटने का दर्द वह नहीं झेल सकीं। डिस्क्वालिफिकेशन के बाद विनेश के रोने की तस्वीरें दिल दहला देने वाली थीं। विनेश ने सेमीफाइनल जीतने के बाद और सात अगस्त को निर्णय आने से पहले वजन घटाने के लिए क्या कुछ नहीं किया। रस्सी कूदा, बाल कटवाए, कपड़े छोटे करवाए, रात भर एक्सरसाइज करती रहीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इससे विनेश की तबीयत और बिगड़ गई थी। भारत लौटने पर उनका भव्य स्वागत हुआ...एक चैंपियन की तरह।
इतना सम्मान पाकर और अपने फैंस के लिए पदक नहीं जीत पाने की टीस की वजह से वह दुनिया के सामने रो पड़ीं। यहीं से उन्होंने कुश्ती को छोड़ने का फैसला ले लिया था। पर कहते हैं न कि एथलीट मैदान छोड़ सकता है, पर मैदान उसके भीतर कभी नहीं छूटता। विनेश ने उस स्वर्ण के अधूरे सपने को पूरा करने का ठान लिया है। वह एक बार फिर कुश्ती में वापसी करने जा रही हैं।
विनेश के वेट-मैनेजमेंट को लेकर गंभीर सवाल उठे। यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (यूडबल्यूडबल्यू) में की गई अपील खारिज हुई। फिर खेल पंचाट में उम्मीद की आखिरी किरण भी बुझ गई। कहते हैं खिलाड़ी शारीरिक चोट से जल्दी लौट आते हैं, लेकिन दिल पर लगे घाव भरने में बहुत समय लगता है। विनेश के साथ भी यही हुआ। उन्होंने इसे अपने जीवन का सबसे दर्दनाक अध्याय बताते हुए संन्यास की घोषणा कर दी। भारत ने सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं खोई, उसने एक ऐसा मौका खो दिया जिसकी प्रतीक्षा एक सदी से ज्यादा समय से थी।
सपने टूटने का दर्द वह नहीं झेल सकीं। डिस्क्वालिफिकेशन के बाद विनेश के रोने की तस्वीरें दिल दहला देने वाली थीं। विनेश ने सेमीफाइनल जीतने के बाद और सात अगस्त को निर्णय आने से पहले वजन घटाने के लिए क्या कुछ नहीं किया। रस्सी कूदा, बाल कटवाए, कपड़े छोटे करवाए, रात भर एक्सरसाइज करती रहीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इससे विनेश की तबीयत और बिगड़ गई थी। भारत लौटने पर उनका भव्य स्वागत हुआ...एक चैंपियन की तरह।
इतना सम्मान पाकर और अपने फैंस के लिए पदक नहीं जीत पाने की टीस की वजह से वह दुनिया के सामने रो पड़ीं। यहीं से उन्होंने कुश्ती को छोड़ने का फैसला ले लिया था। पर कहते हैं न कि एथलीट मैदान छोड़ सकता है, पर मैदान उसके भीतर कभी नहीं छूटता। विनेश ने उस स्वर्ण के अधूरे सपने को पूरा करने का ठान लिया है। वह एक बार फिर कुश्ती में वापसी करने जा रही हैं।
विनेश फोगाट
- फोटो : ANI
संन्यास के 18 महीने बाद लौट रही हैं विनेश
शुक्रवार को, लंबी चुप्पी के बाद, विनेश ने इंस्टाग्राम पर एक भावुक पोस्ट लिखी। उन्होंने कहा कि उन्हें खेल से दूर रहने, सांस लेने और खुद को समझने की जरूरत थी। वह लिखती हैं, 'कई वर्षों बाद मैंने खुद को सच में सांस लेने दिया। मैंने अपने टूटे पलों को देखा, अपनी कुर्बानियों को समझा…और मुझे अहसास हुआ कि कुश्ती के लिए मेरे भीतर की आग अब भी जल रही है।' 2025 में बेटे को जन्म देने के बाद अब वह उन चुनिंदा खिलाड़ियों में शामिल होंगी जो मां बनने के बाद वापसी करती हैं। वह लिखती हैं, 'और इस बार, मैं अकेली नहीं हूं…मेरा बेटा भी मेरी टीम में है...मेरा छोटा चीयरलीडर।'
शुक्रवार को, लंबी चुप्पी के बाद, विनेश ने इंस्टाग्राम पर एक भावुक पोस्ट लिखी। उन्होंने कहा कि उन्हें खेल से दूर रहने, सांस लेने और खुद को समझने की जरूरत थी। वह लिखती हैं, 'कई वर्षों बाद मैंने खुद को सच में सांस लेने दिया। मैंने अपने टूटे पलों को देखा, अपनी कुर्बानियों को समझा…और मुझे अहसास हुआ कि कुश्ती के लिए मेरे भीतर की आग अब भी जल रही है।' 2025 में बेटे को जन्म देने के बाद अब वह उन चुनिंदा खिलाड़ियों में शामिल होंगी जो मां बनने के बाद वापसी करती हैं। वह लिखती हैं, 'और इस बार, मैं अकेली नहीं हूं…मेरा बेटा भी मेरी टीम में है...मेरा छोटा चीयरलीडर।'
विनेश फोगाट
- फोटो : ANI
अब नजर लॉस एंजिलिस 2028 पर
31 वर्षीय विनेश ने संन्यास तोड़ते हुए साफ कहा, 'मैंने अपना अधूरा ओलंपिक सपना पूरा करने के लिए वापसी की है।' पेरिस में उनके हाथों से फिसला हुआ गोल्ड, वह अब 2028 लॉस एंजिलिस ओलंपिक में हासिल करना चाहती हैं। उनकी यह वापसी सिर्फ एक खिलाड़ी की कहानी नहीं है, बल्कि यह अधूरे सपनों की लड़ाई, खुद से जंग और भारत के अब 108 साल में नहीं पूरा हो सके सपने को पूरा करने की जिद है।
विनेश की कहानी सिर्फ हार की नहीं, उम्मीद की है
विनेश ने टूटकर भी उठने की हिम्मत दिखाई है। और शायद, इतिहास भी यही चाहता है कि भारत का पहला ओलंपिक कुश्ती स्वर्ण वही खिलाड़ी लेकर आए, जिसका सपना एक बार पेरिस की सुबह ने तोड़ दिया था। अब नजरें 2028 पर हैं। शायद इस बार वह कहानी पूरी हो जाए, जिसकी शुरुआत 1920 में शुरू हुई थी।
31 वर्षीय विनेश ने संन्यास तोड़ते हुए साफ कहा, 'मैंने अपना अधूरा ओलंपिक सपना पूरा करने के लिए वापसी की है।' पेरिस में उनके हाथों से फिसला हुआ गोल्ड, वह अब 2028 लॉस एंजिलिस ओलंपिक में हासिल करना चाहती हैं। उनकी यह वापसी सिर्फ एक खिलाड़ी की कहानी नहीं है, बल्कि यह अधूरे सपनों की लड़ाई, खुद से जंग और भारत के अब 108 साल में नहीं पूरा हो सके सपने को पूरा करने की जिद है।
विनेश की कहानी सिर्फ हार की नहीं, उम्मीद की है
विनेश ने टूटकर भी उठने की हिम्मत दिखाई है। और शायद, इतिहास भी यही चाहता है कि भारत का पहला ओलंपिक कुश्ती स्वर्ण वही खिलाड़ी लेकर आए, जिसका सपना एक बार पेरिस की सुबह ने तोड़ दिया था। अब नजरें 2028 पर हैं। शायद इस बार वह कहानी पूरी हो जाए, जिसकी शुरुआत 1920 में शुरू हुई थी।