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Year Ender 2025: महासंघ की जंग में फंसी मुक्केबाजी, सियासत और संकट के बीच जैस्मिन-मीनाक्षी ने बिखेरी चमक

स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Mayank Tripathi Updated Sat, 27 Dec 2025 05:43 PM IST
सार

साल 2025 भारतीय मुक्केबाजी के लिए जितना यादगार रहा, उतना ही विवादों से भरा भी। एक तरफ खिलाड़ी सीमित संसाधनों और मौकों के बीच देश का नाम रोशन करते रहे, वहीं दूसरी ओर भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) अंदरूनी कलह, सत्ता संघर्ष और अदालती लड़ाइयों में उलझा रहा।

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Year Ender 2025 Boxing Trapped in Federation Feud, Jasmin and Minakshi Shine Amid Politics and Crisis
मीनाक्षी-जैस्मिन - फोटो : ANI
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विस्तार
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साल 2025 भारतीय मुक्केबाजी के लिए विरोधाभासों से भरा रहा। एक ओर महासंघ की अंदरूनी राजनीति, अदालती लड़ाइयों और सत्ता संघर्ष ने खेल को झकझोर कर रख दिया, वहीं दूसरी ओर सीमित अवसरों और अस्थिर माहौल के बीच भारतीय मुक्केबाजों ने अंतरराष्ट्रीय रिंग में जज्बा और जुझारूपन दिखाया। जैस्मिन लैंबोरिया और मीनाक्षी हुडा के विश्व चैंपियन बनने से लेकर प्रशासनिक अव्यवस्था के चलते खिलाड़ियों के संघर्ष तक, यह साल भारतीय मुक्केबाजी के लिए उतार-चढ़ाव, उम्मीद और अनिश्चितता की कहानी बन गया।
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अदालती लड़ाइयों में उलझा महासंघ, ठप पड़ा खेल

वर्ष 2025 भारतीय मुक्केबाजी के लिए जितना यादगार रहा, उतना ही विवादों से भरा भी। एक तरफ खिलाड़ी सीमित संसाधनों और मौकों के बीच देश का नाम रोशन करते रहे, वहीं दूसरी ओर भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) अंदरूनी कलह, सत्ता संघर्ष और अदालती लड़ाइयों में उलझा रहा। इसका सीधा असर खिलाड़ियों की तैयारी, घरेलू प्रतियोगिताओं और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन पर पड़ा।
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ओलंपिक निराशा के बाद उम्मीदों का संकट

भारत 2024 पेरिस ओलंपिक से बिना किसी मुक्केबाजी पदक के लौटा था। 2025 में स्थिति और चुनौतीपूर्ण हो गई क्योंकि खिलाड़ियों को वैश्विक प्रतियोगिताओं में भाग लेने के अवसर कम मिले। इस दौरान महासंघ की अस्थिरता ने खिलाड़ियों की योजना और निरंतरता को और कमजोर किया।

बीएफआई चुनाव और तदर्थ समिति का विवाद

संकट की जड़ बीएफआई के चुनाव बने, जो पहले तीन फरवरी को होने थे लेकिन बार-बार स्थगित किए गए। हालात बिगड़ने पर भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने महासंघ के संचालन के लिए तदर्थ समिति नियुक्त कर दी। बीएफआई ने इसे अवैध बताते हुए अदालत का रुख किया, जिसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी और विवाद और गहरा गया।

निलंबन, आरोप और कानूनी जंग

इसके बाद महासंघ के भीतर सत्ता और नियंत्रण को लेकर आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए। अजय सिंह के नेतृत्व वाले बीएफआई ने कथित वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में महासचिव हेमंत कलिता और कोषाध्यक्ष दिग्विजय सिंह को निलंबित कर दिया। इस फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू हुई, जिसने महासंघ को और अधिक अस्थिर कर दिया।

अनुराग ठाकुर की एंट्री और नई सियासी लड़ाई

पूर्व केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर का बीएफआई अध्यक्ष पद की दौड़ में उतरना विवाद का नया अध्याय बना। अजय सिंह के निर्देश पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया, जिसके बाद महासंघ फिर से अदालतों की चौखट पर पहुंच गया। सत्ता संघर्ष इतना तीखा हो गया कि चुनाव अधिकारी ने अपने खिलाफ दुष्प्रचार का हवाला देते हुए इस्तीफा तक दे दिया।

घरेलू प्रतियोगिताओं पर संकट, खिलाड़ियों की कीमत

महासंघ की खींचतान का सबसे बड़ा नुकसान खिलाड़ियों को उठाना पड़ा। नवंबर 2024 में प्रस्तावित सीनियर महिला राष्ट्रीय चैंपियनशिप को बार-बार टालना पड़ा। मार्च 2025 में विवादों के बीच प्रतियोगिता कराई गई, लेकिन मध्य प्रदेश और असम सहित कई राज्य इकाइयों ने अपने मुक्केबाजों को भेजने से इनकार कर दिया।

लवलीना की वापसी रुकी, सीनियर खिलाड़ियों की मुश्किल

इस विवाद की सबसे बड़ी शिकार बनीं टोक्यो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता लवलीना बोरगोहेन, जिन्हें अंततः अपना नाम वापस लेना पड़ा। चोट से वापसी कर रहीं निकहत ज़रीन भी अपनी सर्वश्रेष्ठ लय हासिल नहीं कर सकीं। सीनियर खिलाड़ियों के लिए यह सत्र संघर्ष और निराशा से भरा रहा।

अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मानजनक प्रदर्शन

घरेलू अव्यवस्था के बावजूद जब भारतीय मुक्केबाजों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिला, उन्होंने जुझारूपन दिखाया। विश्व मुक्केबाजी कप के ब्राजील और कजाकिस्तान चरणों में भारतीय दल ने सम्मानजनक प्रदर्शन किया और सीमित मौकों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।

लिवरपूल में इतिहास, जैस्मिन और मीनाक्षी का स्वर्णिम अध्याय

साल का सबसे सुनहरा पल लिवरपूल में आयोजित विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में आया। जैस्मिन लैंबोरिया (57 किग्रा) और मीनाक्षी हुडा (48 किग्रा) ने स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय महिला मुक्केबाजी को नई ऊंचाई दी। पूजा रानी (80 किग्रा) ने कांस्य और नूपुर श्योराण (80 किग्रा से अधिक) ने रजत पदक जीतकर भारत की बढ़ती ताकत का संकेत दिया।

पुरुष मुक्केबाजी का फीका प्रदर्शन

जहां महिला मुक्केबाजों ने चमक बिखेरी, वहीं पुरुष मुक्केबाजी निराशाजनक रही। भारतीय पुरुष मुक्केबाज 12 वर्षों में पहली बार विश्व चैंपियनशिप से बिना किसी पदक के लौटे, जिसने कार्यक्रम की गहराई और योजना पर सवाल खड़े किए।

विश्व कप फाइनल्स में पदकों की बारिश

सत्र के अंत में भारत ने विश्व कप फाइनल्स की मेजबानी की और नौ स्वर्ण पदकों सहित रिकॉर्ड 20 पदक जीतकर शानदार प्रदर्शन किया। हालांकि यह भी सच है कि इस प्रतियोगिता में विश्व के कई शीर्ष मुक्केबाज शामिल नहीं हुए, जिससे उपलब्धि की चमक कुछ हद तक सीमित रही।
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