'बैटल ऑफ द सेक्सेस' में किर्गियोस की जीत: सबालेंका को हराया, बदले नियमों को लेकर टेनिस जगत में बहस तेज
दुबई में खेले गए ‘बैटल ऑफ द सेक्सेस’ मुकाबले में निक किर्गियोस ने बदले नियमों के तहत आर्यना सबालेंका को 6-3, 6-3 से हराया। हालांकि मैच मनोरंजक रहा, लेकिन 1973 के ऐतिहासिक मुकाबले जैसी सामाजिक और खेल भावना इसमें नहीं दिखी। इसके बावजूद इस मुकाबले ने टेनिस जगत में नई बहस को जन्म दे दिया।
विस्तार
रविवार को दुबई में खेले गए एक हाई-प्रोफाइल प्रदर्शनी मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के निक किर्गियोस ने महिला विश्व नंबर-एक आर्यना सबालेंका को 'बैटल ऑफ द सेक्सेस' में 6-3, 6-3 से हरा दिया। यह मुकाबला टेनिस प्रशंसकों के बीच पहले से ही चर्चा का विषय बना हुआ था, खासकर इसलिए क्योंकि इसमें नियमों में बदलाव किए गए थे। हालांकि, इस मैच की तुलना 1973 के ऐतिहासिक मुकाबले से करना मुश्किल माना जा रहा है।
1973 का ऐतिहासिक संदर्भ
1973 में बिली जीन किंग और बॉबी रिग्स के बीच हुआ मुकाबला सिर्फ एक मैच नहीं था, बल्कि महिला टेनिस की पहचान और समान पुरस्कार राशि की लड़ाई का प्रतीक था। उस समय बिली जीन किंग ने 55 वर्षीय रिग्स को 6-4, 6-3, 6-3 से हराकर इतिहास रच दिया था। वह मुकाबला महिला प्रोफेशनल टूर की वैधता और सम्मान के लिए बेहद अहम था।
बदले नियमों में खेला गया मुकाबला
दुबई में हुए इस प्रदर्शनी मैच में दोनों खिलाड़ियों के लिए नियम अलग थे।
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दोनों खिलाड़ियों को सिर्फ एक सर्व की अनुमति थी
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सबालेंका के कोर्ट का आकार नौ प्रतिशत छोटा कर दिया गया, ताकि किर्गियोस की ताकत और रफ्तार को संतुलित किया जा सके
इन नियमों की वजह से कुछ फैंस ने मैच को मनोरंजक बताया, जबकि कुछ ने इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए।
निक किर्गियोस पिछले तीन सीजन में सिर्फ छह एटीपी मैच खेल पाए हैं और इसी वजह से उनकी रैंकिंग गिरकर 671 पर पहुंच गई है। इसके बावजूद 30 वर्षीय किर्गियोस ने चार बार की ग्रैंड स्लैम सिंगल्स चैंपियन सबालेंका के खिलाफ अनुभव और ताकत का सही इस्तेमाल किया।
जीत के बाद किर्गियोस ने सबालेंका की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा, 'ईमानदारी से कहूं तो यह एक बेहद कठिन मैच था। वह जबरदस्त प्रतिस्पर्धी हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'मुझे पूरा फोकस करना पड़ा, क्योंकि वह लगातार दबाव बना रही थीं और आखिरकार यह एक कड़ा मुकाबला साबित हुआ।'
यह मुकाबला भले ही एक प्रदर्शनी मैच था, लेकिन इसने एक बार फिर पुरुष और महिला टेनिस के बीच शारीरिक अंतर, नियमों में बदलाव और ऐसे मुकाबलों की प्रासंगिकता पर बहस छेड़ दी है। कई प्रशंसकों का मानना है कि ऐसे मैच मनोरंजन के लिए ठीक हैं, लेकिन इन्हें ऐतिहासिक मुकाबलों से तुलना नहीं की जानी चाहिए।