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Truecaller vs CNAP: खतरे में ट्रूकॉलर का भविष्य! क्या सरकार का CNAP सिस्टम खत्म कर देगा इसकी जरूरत?
टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नीतीश कुमार
Updated Thu, 25 Dec 2025 04:52 PM IST
सार
Truecaller Vs CNAP: भारत में स्पैम कॉल्स से बचाने वाला ट्रूकॉलर (Truecaller) आज खुद संकट में है। भारत में CNAP सिस्टम लागू होने के वजह से इसकी उपयोगिता अब लगभग खत्म हो गई है। क्या फेक कॉल्स की पहचान करने वाले Truecaller एप की अब छुट्टी हो जाएगी?
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आगे क्या है ट्रूकॉलर का भविष्य?
- फोटो : AI
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विस्तार
ट्रूकॉलर की कहानी साल 2009 में स्टॉकहोम (स्वीडन) से शुरू हुई थी। रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के दो छात्र, एलन ममेदी और नामी जारिंगलम, अनजान नंबरों से आने वाली कॉल से परेशान थे। इसी छोटी सी उलझन ने ट्रूकॉलर (Truecaller) को जन्म दिया। शुरुआत में यह सिर्फ ब्लैकबेरी फोन के लिए था, लेकिन जैसे-जैसे स्मार्टफोन की लहर बढ़ी, यह एप एंड्रॉइड और आईफोन की दुनिया पर छा गया। छात्रों का यह मामूली प्रोजेक्ट धीरे-धीरे एक बड़ी टेक कंपनी में बदल गया, जो आज शेयर बाजार में भी लिस्टेड है।
भारत ट्रूकॉलर की कामयाबी का सबसे बड़ा गवाह
ट्रूकॉलर ने अपनी असली ताकत क्राउडसोर्सिंग से हासिल की। जब यूजर्स ने स्पैम कॉल्स को रिपोर्ट करना शुरू किया, तो इसका डेटाबेस मजबूत होता गया। साल 2014 के आसपास भारत में स्पैम कॉल्स की समस्या अचानक बढ़ गई और यहीं से ट्रूकॉलर भारतीयों की पहली पसंद बन गया। आज भारत इस एप का सबसे बड़ा बाजार है, जहां इसके 25 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं। भारत की अहमियत को देखते हुए कंपनी ने 2018 से भारतीय यूजर्स का डेटा देश के भीतर ही स्टोर करना शुरू कर दिया। यहां तक कि नवंबर 2024 में संस्थापकों के हटने के बाद, भारतीय मूल के ऋषित झुनझुनवाला को कंपनी की कमान सौंपी गई।
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भारत ट्रूकॉलर की कामयाबी का सबसे बड़ा गवाह
ट्रूकॉलर ने अपनी असली ताकत क्राउडसोर्सिंग से हासिल की। जब यूजर्स ने स्पैम कॉल्स को रिपोर्ट करना शुरू किया, तो इसका डेटाबेस मजबूत होता गया। साल 2014 के आसपास भारत में स्पैम कॉल्स की समस्या अचानक बढ़ गई और यहीं से ट्रूकॉलर भारतीयों की पहली पसंद बन गया। आज भारत इस एप का सबसे बड़ा बाजार है, जहां इसके 25 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं। भारत की अहमियत को देखते हुए कंपनी ने 2018 से भारतीय यूजर्स का डेटा देश के भीतर ही स्टोर करना शुरू कर दिया। यहां तक कि नवंबर 2024 में संस्थापकों के हटने के बाद, भारतीय मूल के ऋषित झुनझुनवाला को कंपनी की कमान सौंपी गई।
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CNAP से ट्रूकॉलर को लगा धक्का
- फोटो : अमर उजाला
क्या है CNAP जिससे ट्रूकॉलर को लगा धक्का?
अब ट्रूकॉलर के सामने सबसे बड़ी चुनौती कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन यानी CNAP के रूप में आई है। यह भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) द्वारा लाया जा रहा एक नया सिस्टम है। यह फीचर आपके फोन में किसी एप के जरिए नहीं, बल्कि सीधे टेलीकॉम नेटवर्क (Jio, Airtel, Vi) के जरिए काम करेगा। इसमें कॉलर का नाम उसके KYC (केवाईसी) दस्तावेजों के आधार पर आपकी स्क्रीन पर फ्लैश होगा। यानी आपको किसी थर्ड-पार्टी एप को अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट का एक्सेस देने या फोन में कोई नया एप डालने की जरूरत नहीं होगी। भारत में टेलीकॉम कंपनियों ने ये सुविधा शुरू भी कर दी है।
वजूद की लड़ाई में फंसा ट्रूकॉलर
CNAP की सबसे बड़ी खूबी इसकी विश्वसनीयता और प्राइवेसी है। जब नेटवर्क खुद नाम बताएगा, तो यूजर्स को ट्रूकॉलर जैसे विज्ञापनों और भारी-भरकम परमिशन्स वाले एप की जरूरत शायद ही पड़ेगी। जानकारों का मानना है कि जैसे ही जियो या एयरटेल इस सर्विस को पूरी तरह लागू करेंगे, बड़ी संख्या में यूजर्स ट्रूकॉलर को अनइंस्टॉल कर सकते हैं। ट्रूकॉलर का विज्ञापन और प्रीमियम सब्सक्रिप्शन वाला बिजनेस मॉडल इस नई तकनीक के सामने खतरे में नजर आ रहा है।
अब ट्रूकॉलर के सामने क्या है रास्ता?
मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब ट्रूकॉलर को सिर्फ 'नाम बताने' वाले एप से आगे बढ़ना होगा। अगर उसे टिके रहना है, तो उसे AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) आधारित फ्रॉड डिटेक्शन और बिजनेस कम्युनिकेशन टूल्स पर ध्यान देना होगा। कंपनी ने अभी तक CNAP पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन यह साफ है कि आने वाले समय में उसे अपनी पहचान और काम करने के तरीके को पूरी तरह बदलना पड़ सकता है, वरना डिजिटल दुनिया की यह बड़ी कंपनी इतिहास बनकर रह जाएगी।
अब ट्रूकॉलर के सामने सबसे बड़ी चुनौती कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन यानी CNAP के रूप में आई है। यह भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) द्वारा लाया जा रहा एक नया सिस्टम है। यह फीचर आपके फोन में किसी एप के जरिए नहीं, बल्कि सीधे टेलीकॉम नेटवर्क (Jio, Airtel, Vi) के जरिए काम करेगा। इसमें कॉलर का नाम उसके KYC (केवाईसी) दस्तावेजों के आधार पर आपकी स्क्रीन पर फ्लैश होगा। यानी आपको किसी थर्ड-पार्टी एप को अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट का एक्सेस देने या फोन में कोई नया एप डालने की जरूरत नहीं होगी। भारत में टेलीकॉम कंपनियों ने ये सुविधा शुरू भी कर दी है।
वजूद की लड़ाई में फंसा ट्रूकॉलर
CNAP की सबसे बड़ी खूबी इसकी विश्वसनीयता और प्राइवेसी है। जब नेटवर्क खुद नाम बताएगा, तो यूजर्स को ट्रूकॉलर जैसे विज्ञापनों और भारी-भरकम परमिशन्स वाले एप की जरूरत शायद ही पड़ेगी। जानकारों का मानना है कि जैसे ही जियो या एयरटेल इस सर्विस को पूरी तरह लागू करेंगे, बड़ी संख्या में यूजर्स ट्रूकॉलर को अनइंस्टॉल कर सकते हैं। ट्रूकॉलर का विज्ञापन और प्रीमियम सब्सक्रिप्शन वाला बिजनेस मॉडल इस नई तकनीक के सामने खतरे में नजर आ रहा है।
अब ट्रूकॉलर के सामने क्या है रास्ता?
मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब ट्रूकॉलर को सिर्फ 'नाम बताने' वाले एप से आगे बढ़ना होगा। अगर उसे टिके रहना है, तो उसे AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) आधारित फ्रॉड डिटेक्शन और बिजनेस कम्युनिकेशन टूल्स पर ध्यान देना होगा। कंपनी ने अभी तक CNAP पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन यह साफ है कि आने वाले समय में उसे अपनी पहचान और काम करने के तरीके को पूरी तरह बदलना पड़ सकता है, वरना डिजिटल दुनिया की यह बड़ी कंपनी इतिहास बनकर रह जाएगी।