AI: लाखों की सैलरी लेने वाले हैकर्स हुए फेल; स्टैनफोर्ड के एआई ने ऐसा क्या काम कर दिया, जो इंसान नहीं कर पाए?
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक प्रयोग में ARTEMIS एआई एजेंट ने अनुभवी एथिकल हैकर्स को पीछे छोड़ दिया। 8,000 डिवाइसेज वाले नेटवर्क पर 16 घंटे के टेस्ट में इस एआई ने 82% सटीकता के साथ 9 गंभीर सुरक्षा खामियां खोज लीं।
विस्तार
AI vs Human Hackers: इंसानों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की रेस में मशीनें अब साइबर सुरक्षा के मैदान में भी बाजी मारने लगी हैं। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक चौंकाने वाले प्रयोग में, एक एआई एजेंट ने प्रोफेशनल हैकर्स को पछाड़ दिया है। इस एआई ने नेटवर्क की ऐसी सुरक्षा खामियां ढूंढ निकालीं, जो लाखों रुपये की सैलरी लेने वाले अनुभवी इंसानी हैकर्स नहीं निकाल पाए।
ARTEMIS: हैकिंग की दुनिया का नया खिलाड़ी
स्टैनफोर्ड के शोधकर्ताओं ने ARTEMIS नाम का एक एआई एजेंट विकसित किया है। इसे स्टैनफोर्ड के 8,000 डिवाइसेज वाले विशाल नेटवर्क में खामियां ढूंढने के लिए रखा गया। 16 घंटे के टेस्ट के बाद, ARTEMIS ने 10 में से 9 प्रोफेशनल एथिकल हैकर्स को हरा दिया। एथिकल हैकर्स वे हैकर्स होते हैं जो सुरक्षा की जांच करते हैं। एआई एजेंट ने 82% सटीकता के साथ 9 ऐसी सुरक्षा खामियां ढूंढीं, जिन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल था।
खर्च जानकर उड़ जाएंगे होश
इस रिसर्च की सबसे बड़ी बात एआई की क्षमता नहीं, बल्कि उसका कम खर्च है। अमेरिका में एक प्रोफेशनल एथिकल हैकर की औसत सालाना सैलरी करीब 1.25 लाख डॉलर (लगभग 1.13 करोड़ रुपये) होती है। वहीं, ARTEMIS को चलाने का खर्च मात्र 18 डॉलर (करीब 1,630 रुपये) प्रति घंटा आया। यहां तक कि इसका सबसे एडवांस वर्जन भी सिर्फ 5,300 रुपये प्रति घंटे में काम कर सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे साइबर सिक्योरिटी ऑडिटिंग का खर्च भविष्य में काफी कम हो सकता है।
इंसानों से बेहतर कैसे निकला एआई?
ARTEMIS की जीत का राज उसकी 'मल्टीटास्किंग' क्षमता में छिपा है। जब भी इसे नेटवर्क में कुछ गड़बड़ दिखाई देती थी, तो यह तुरंत अपने 'सब-एजेंट्स' यानी छोटे एआई बॉट्स को काम पर लगा देता था। इंसान एक बार में एक ही समस्या पर ध्यान दे सकता है। लेकिन यह एआई एक साथ कई जगहों पर एक साथ जांच कर रहा था। उदाहरण के लिए एक पुराने सर्वर पर इंसानी हैकर्स ने इसलिए ध्यान नहीं दिया क्योंकि वह ब्राउजर पर लोड नहीं हो रहा था। लेकिन ARTEMIS ने हार नहीं मानी और कमांड-लाइन इंटरफेस के जरिए घुसपैठ करके वहां छिपी खामी ढूंढ निकाली।
अभी भी है एक कमी
हालांकि, एआई अभी पूरी तरह परफेक्ट नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक, ARTEMIS वहां फेल हो गया जहां 'ग्राफिकल इंटरफेस' का इस्तेमाल करना था। यानी जहां स्क्रीन पर देखकर बटन क्लिक करने या विजुअल चीजों को समझने की बात थी, वहां इंसानी हैकर्स जीत गए। इसका मतलब यह एआई 'कोड' पढ़ने में तो उस्ताद है, लेकिन 'देखने' में कच्चा है।
बढ़ रहा है खतरा
यह रिसर्च ऐसे समय में आई है जब दुनिया भर में एआई के जरिए साइबर हमलों का डर बढ़ रहा है। हालिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि उत्तर कोरियाई हैकर्स चैटजीपीटी और क्लाउड जैसे एआई टूल्स का इस्तेमाल करके नकली पहचान बना रहे हैं। और बड़ी कंपनियों के नेटवर्क में सेंध लगा रहे हैं। ऐसे में ARTEMIS जैसे टूल्स सुरक्षा बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं।