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Ayodhya News: दंतधावन कुंड पर शुरू हुई नित्य महाआरती
संवाद न्यूज एजेंसी, अयोध्या
Updated Thu, 08 May 2025 10:23 PM IST
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अयोध्या। रामनगरी अयोध्या में स्थित पौराणिक दंतधावन कुंड पर अब नित्य सायंकाल महाआरती का आयोजन प्रारंभ हो गया है। यह धार्मिक परंपरा आचारी मंदिर ट्रस्ट की ओर से शुरू की गई है। हर शाम सात बजे आयोजित होने वाली इस महाआरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं, जिससे यह स्थल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है।
घंटियों की गूंज, शंखनाद और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच जब 501 दीपों से आरती होती है, तो पूरा परिसर भक्तिभाव से भर उठता है। महाआरती का आयोजन मंदिर के संरक्षक कौस्तुभ मणि आचारी के निर्देशन में पांच वैदिक बटुकों द्वारा किया जाता है। दंतधावन कुंड, आचारी मंदिर के अधीन आता है, और इसकी ऐतिहासिकता तथा धार्मिक महत्ता इसे एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। मंदिर के महंत विवेक आचारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस पौराणिक स्थल के सुंदरीकरण पर लगभग चार करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। कुंड की सुरक्षा हेतु चारदीवारी का निर्माण किया गया है, वहीं लाल पत्थरों की सजावट और भव्य लाइटिंग ने इसकी भव्यता को और निखार दिया है।
मंदिर के पीठाधिपति के अनुसार, दंतधावन कुंड का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है। मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम और उनके तीनों भ्राता इसी स्थल पर दंतधावन (दातुन) किया करते थे। यह स्थान न केवल रामायण काल से जुड़ा है, बल्कि बौद्ध परंपरा में भी इसका उल्लेख मिलता है। बताया जाता है कि भगवान बुद्ध ने यहीं चार्तुमास व्यतीत किया था। इसके उल्लेख प्रसिद्ध चीनी यात्रियों ह्वेनसांग और फाह्यान की यात्राओं में भी मिलते हैं।
कुंड परिसर में स्थित गोस्वामी तुलसीदास मंदिर भी विशेष आकर्षण का केंद्र है। यहीं पर संत तुलसीदास ने रामचरितमानस के बालकांड की रचना आरंभ की थी। इसके अलावा, हर वर्ष शरद पूर्णिमा पर यहां क्षीरशायी भगवान की झांकी सजाई जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ते हैं।
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घंटियों की गूंज, शंखनाद और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच जब 501 दीपों से आरती होती है, तो पूरा परिसर भक्तिभाव से भर उठता है। महाआरती का आयोजन मंदिर के संरक्षक कौस्तुभ मणि आचारी के निर्देशन में पांच वैदिक बटुकों द्वारा किया जाता है। दंतधावन कुंड, आचारी मंदिर के अधीन आता है, और इसकी ऐतिहासिकता तथा धार्मिक महत्ता इसे एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। मंदिर के महंत विवेक आचारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस पौराणिक स्थल के सुंदरीकरण पर लगभग चार करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। कुंड की सुरक्षा हेतु चारदीवारी का निर्माण किया गया है, वहीं लाल पत्थरों की सजावट और भव्य लाइटिंग ने इसकी भव्यता को और निखार दिया है।
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मंदिर के पीठाधिपति के अनुसार, दंतधावन कुंड का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है। मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम और उनके तीनों भ्राता इसी स्थल पर दंतधावन (दातुन) किया करते थे। यह स्थान न केवल रामायण काल से जुड़ा है, बल्कि बौद्ध परंपरा में भी इसका उल्लेख मिलता है। बताया जाता है कि भगवान बुद्ध ने यहीं चार्तुमास व्यतीत किया था। इसके उल्लेख प्रसिद्ध चीनी यात्रियों ह्वेनसांग और फाह्यान की यात्राओं में भी मिलते हैं।
कुंड परिसर में स्थित गोस्वामी तुलसीदास मंदिर भी विशेष आकर्षण का केंद्र है। यहीं पर संत तुलसीदास ने रामचरितमानस के बालकांड की रचना आरंभ की थी। इसके अलावा, हर वर्ष शरद पूर्णिमा पर यहां क्षीरशायी भगवान की झांकी सजाई जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ते हैं।