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कैशलेस हुआ दरकिनार नकदी पर टिका बाजार
अमर उजाला ब्यूूराे प्रतापगढ़
Updated Sun, 25 Dec 2016 12:39 AM IST
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नोटबंदी के बाद सरकार ने लोगों को कैशलेस भुगतान के प्रति प्रेरित करने के लिए भले ही पूरी ताकत झोंक दी हो, लेकिन बेल्हा के लोगों पर इसका बहुत असर नहीं दिख रहा है। अभी भी यहां नकदी पर ही बाजार टिका है। व्यापारियों से लेकर ग्राहक तक कैश पेमेंट में ही रुचि दिखा रहे हैं। सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ऐसे हैं तो कैशलेस भुगतान कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर बड़े कारोबारी शामिल हैं। जिले केे अधिकांश बैंकों ने व्यापारियों को स्वैप मशीन देने से हाथ खड़े कर दिए हैं। छोटे व्यापारियों का धंधा तो नोटों के जरिए ही चल रहा है।
नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि पचास दिन बाद हालात में सुधार हो जाएगा। इसके लिए कैशलेस लेनदेन को हथियार बनाया गया, लेकिन बेल्हा में सरकार की यह तरकीब लोगों को बहुत रास नहीं आ रही है। नोटबंदी के 45 दिन बाद भी कैशलेस की दिशा में लोगों की झिझक बरकरार है। जिले के अधिकांश लोगों के पास मोबाइल, एटीएम और डेबिटकार्ड तो हैं, लेकिन इसके बावजूद वे ऑनलाइन भुगतान से कतरा रहे हैं। थोक विक्रेता और बड़े कारोबारी के यहां होने वाला अधिकांश भुगतान ऑनलाइन हो रहा है। चिलबिला के किराना के थोक विक्रेता श्रीकिशोर अग्रवाल ने बताया कि बाहर के व्यापारी कैशलेश भुगतान कर रहे हैं और ले रहे हैं, लेकिन जिले के व्यापारी ज्यादातर नकद भुगतान पर ही विश्वास जता रहे हैं। दरअसल ऑनलाइन भुगतान में बैंक ही रोड़ा बने हुए हैं। दुकानदारों को मांग के बावजूद स्वैप मशीन उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।
नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि पचास दिन बाद हालात में सुधार हो जाएगा। इसके लिए कैशलेस लेनदेन को हथियार बनाया गया, लेकिन बेल्हा में सरकार की यह तरकीब लोगों को बहुत रास नहीं आ रही है। नोटबंदी के 45 दिन बाद भी कैशलेस की दिशा में लोगों की झिझक बरकरार है। जिले के अधिकांश लोगों के पास मोबाइल, एटीएम और डेबिटकार्ड तो हैं, लेकिन इसके बावजूद वे ऑनलाइन भुगतान से कतरा रहे हैं। थोक विक्रेता और बड़े कारोबारी के यहां होने वाला अधिकांश भुगतान ऑनलाइन हो रहा है। चिलबिला के किराना के थोक विक्रेता श्रीकिशोर अग्रवाल ने बताया कि बाहर के व्यापारी कैशलेश भुगतान कर रहे हैं और ले रहे हैं, लेकिन जिले के व्यापारी ज्यादातर नकद भुगतान पर ही विश्वास जता रहे हैं। दरअसल ऑनलाइन भुगतान में बैंक ही रोड़ा बने हुए हैं। दुकानदारों को मांग के बावजूद स्वैप मशीन उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।
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