Uk: हाइड्रोपोनिक हरियाली के लद्दाख मॉडल से बदलेगी उच्च हिमालयी खेती, सीवेज आधारित कृषि की राह खुली
गोविंद बल्लभ पंत संस्थान के वैज्ञानिकों ने लद्दाख में एक नवाचारी हाइड्रोपोनिक प्रणाली विकसित की है, जो सीवेज प्लांट के शोधित जल का उपयोग करके कम जल वाले हिमालयी क्षेत्रों में सब्जियां उगाती है। इस प्रणाली को राष्ट्रीय पेटेंट मिला है।
विस्तार
सीवेज प्लांट का शोधित जल बेकार अब नहीं जाएगा। कम जल की उपलब्धता वाले उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इससे सुरक्षित और पोषणयुक्त सब्जियां उगाई जा सकेंगी। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी के वैज्ञानिकों ने लद्दाख में इस नवाचार को धरती पर उतारा। इस खास हाइड्रोपोनिक प्रणाली को राष्ट्रीय पेटेंट भी मिल गया है।
वैज्ञानिकों की देखरेख में लद्दाख जैसे कठिन भौगोलिक क्षेत्र में दो वर्षों तक सफल प्रयोग किए। अत्यधिक ठंड, बेहद कम वर्षा और सीमित कृषि भूमि वाले क्षेत्र में शोधित जल को हाइड्रोपोनिक प्रणाली में प्रयोग कर टमाटर सहित अन्य सब्जियों की खेती की गई। वैज्ञानिकों के अनुसार परीक्षणों के परिणाम बेहद उत्साहजनक रहे। इस प्रणाली से उगाए गए टमाटरों का पारंपरिक मिट्टी आधारित खेती की तुलना में अधिक उत्पादन, बेहतर वृद्धि और उन्नत पोषण गुणवत्ता दर्ज की गई।
प्रयोगशाला परीक्षणों में लाइकोपीन, बी-कैरोटीन और एंटी ऑक्सीडेंट्स की उच्च मात्रा पाई गई। वहीं सुरक्षा जांच में शोधित जल और उत्पादित फसलों में किसी भी प्रकार के नुकसानदायक अवशेष नहीं मिले। इस नवाचार के आविष्कारक डॉ. ललित गिरी, मोहम्मद हुसैन, जिग्मेत चुश्कित आंगमो, डॉ. संदीपन मुखर्जी, डॉ. इंद्र दत्त भट्ट और डॉ. सुनील नौटियाल का कहना है कि यह तकनीक जल संकटग्रस्त क्षेत्रों में जलवायु अनुकूल कृषि का नया रास्ता खोलती है। शहरी कृषि, अधिक ऊंचाई पर कृषि और समेकित अपशिष्ट जल प्रबंधन के लिए इसमें अपार संभावनाएं हैं। खासकर उन इलाकों में जहां ताजे जल की उपलब्धता बेहद सीमित है।
क्या है लद्दाख मॉडल
लद्दाख में शीत मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र है। वर्षा न के बराबर होती है। सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है और कृषि योग्य भूमि सीमित है। ऐसे में सब्जी उत्पादन हमेशा से चुनौती भरा रहा है। इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण संस्थान के लद्दाख क्षेत्रीय केंद्र की शोध टीम ने शोधित घरेलू अपशिष्ट जल पर आधारित हाइड्रोपोनिक खेती तकनीक विकसित की है। यह प्रणाली कृषि के लिए ताजे जल का टिकाऊ विकल्प प्रस्तुत करती है। पेटेंट प्राप्त यह तकनीक सीवेज शोध संयंत्रों से प्राप्त शोधित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग पर आधारित है। लेह के बोम्बगढ़ क्षेत्र में स्थित प्लांट में तीन स्तर पर सीवेज जल का शोधन करने के बाद पानी को ग्रीनहाउस के भंडारण टैंकों तक पहुंचाकर पुनः उपयोग किया जाता है।
क्यों उपयोगी है यह तकनीक
इस मॉडल में ड्रिप-आधारित हाइड्रोपोनिक प्रणाली के जरिये खेती की जाती है। कोकोपिट, ग्रो बैग, माइक्रो-ट्यूब फीडर लाइनें और खास तरीके से तैयार जल आपूर्ति प्रणाली से फसलों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। गुरुत्व आधारित पोषक तत्व वितरण प्रणाली इसे ऊर्जा कुशल बनाती है।
अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग को हाइड्रोपोनिक तकनीक के साथ जोड़कर जलवायु-अनुकूल कृषि में एक नया मानक स्थापित किया गया है। इससे भविष्य में अनुसंधान, व्यावसायीकरण और बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय क्रियान्वयन के नए अवसर खुलेंगे। यह पेटेंट संस्थान के लिए रात्ट्रीय महत्व की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। -डॉ. आईडी भट्ट, प्रभारी निदेशक, गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी

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