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Bageshwar News: प्रेरक पहल... दिल्ली छोड़ लाैटे गांव और पनीर को बना लिया अपनी पहचान
संवाद न्यूज एजेंसी, बागेश्वर
Updated Sun, 28 Dec 2025 10:17 PM IST
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गरुड़ (बागेश्वर)। पहचान बड़ी जगह पर नहीं, बड़े इरादों से बनती है। दिल्ली छोड़कर गांव लौटे दीपक ने अपने हुनर और जुनून से इसे साबित कर दिखाया है। उन्होंने पनीर को अपनी पहचान बना लिया। सरकारी सहायता के बिना मां के पेंशन खाते से लोन लेकर शुरू किया गया उनका यह छोटा सा प्रयास आज क्षेत्र में स्वरोजगार और सामूहिक आमदनी का मजबूत आधार बन चुका है।
अयारतोली गांव निवासी दीपक गोस्वामी ने हालात से समझौता करने के बजाय संघर्ष को ही अपनी ताकत बना लिया। सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों में उन्होंने अपने बूते ऐसा स्वरोजगार खड़ा किया जो आज क्षेत्र के दर्जनों पशुपालकों के लिए आर्थिक सहारा बन गया है।
दीपक के पिता का वर्ष 2013 में निधन हो गया था। महज 18 साल की उम्र में परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। रोजगार की तलाश में वर्ष 2015 में वह दिल्ली चले गए। कई साल तक वहां नाैकरी की लेकिन कोविड काल के बाद वर्ष 2021 में अपने गांव लौट आए। शुरू में उन्होंने छह गाय खरीदकर शुरुआत की। दूध बेचने के बजाय पनीर बनाने का निर्णय लिया ताकि बेहतर आमदनी हो सके। यही फैसला उनके जीवन की दिशा बदलने वाला साबित हुआ।
धीरे-धीरे दीपक के बनाए हुए पनीर की मांग बढ़ने लगी। इसके साथ ही आसपास के गांवों के पशुपालक उनसे जुड़ते चले गए। वर्तमान में दीपक अपनी 18 गायों के साथ ही अन्य ग्रामीणों की 30 से अधिक गायों का दूध खरीद रहे हैं। इस दूध से तैयार पनीर की रोजाना 20 किलो से अधिक आपूर्ति गरुड़ बाजार में की जा रही है। इस पूरे काम में उनकी मां हंसी देवी और पत्नी चंपा देवी भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती
कोठूं गांव की लक्ष्मी देवी, जानकी देवी, हेमा देवी, बिमला देवी और अयारतोली की रेखा देवी, शांति देवी, बसंती देवी बताती हैं कि दीपक के पनीर कारोबार से जुड़ने के बाद उन्हें घर से ही दूध बेचने का मौका मिल रहा है। न तो बाजार जाने की परेशानी है और न ही अतिरिक्त मेहनत। दूध के अच्छे दाम मिलने से उनकी आय बढ़ी है और परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है।
बैंक ने लोन देने से कर दिया था मना
दीपक कहते हैं कि सरकार की योजनाएं तो खूब हैं, लेकिन लोगों तक उनकी पहुंच को सरल बनाने की जरूरत है। बताते हैं कि काम शुरू करने के लिए वह मुख्यमंत्री योजना से लोन लेने बैंक में गए, लेकिन बैंक ने इसे जोखिम बताते हुए ऋण देने से मना कर दिया। इसके बाद से किसी सरकारी योजना का लाभ लिए बिना ही अपने काम को आगे बढ़ाया।
कोट
पहाड़ में स्वरोजगार से अच्छी आय कमाने की खूब संभावनाएं हैं, लेकिन मेहनत काफी करनी पड़ती है। मेहनत, लगन और समर्पण भाव से काम करने पर आमदनी तो होती ही है, परिवार के साथ खुशी से रहने का मौका भी मिलता है। हम ही सुबह चार से दोपहर दो बजे तक निरंतर कार्य करते हैं। दो घंटे भोजन विश्राम के बाद चार बजे शाम से रात तक फिर काम करते हैं।
दीपक गोस्वामी, उद्यमी, अयारतोली
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अयारतोली गांव निवासी दीपक गोस्वामी ने हालात से समझौता करने के बजाय संघर्ष को ही अपनी ताकत बना लिया। सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों में उन्होंने अपने बूते ऐसा स्वरोजगार खड़ा किया जो आज क्षेत्र के दर्जनों पशुपालकों के लिए आर्थिक सहारा बन गया है।
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दीपक के पिता का वर्ष 2013 में निधन हो गया था। महज 18 साल की उम्र में परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। रोजगार की तलाश में वर्ष 2015 में वह दिल्ली चले गए। कई साल तक वहां नाैकरी की लेकिन कोविड काल के बाद वर्ष 2021 में अपने गांव लौट आए। शुरू में उन्होंने छह गाय खरीदकर शुरुआत की। दूध बेचने के बजाय पनीर बनाने का निर्णय लिया ताकि बेहतर आमदनी हो सके। यही फैसला उनके जीवन की दिशा बदलने वाला साबित हुआ।
धीरे-धीरे दीपक के बनाए हुए पनीर की मांग बढ़ने लगी। इसके साथ ही आसपास के गांवों के पशुपालक उनसे जुड़ते चले गए। वर्तमान में दीपक अपनी 18 गायों के साथ ही अन्य ग्रामीणों की 30 से अधिक गायों का दूध खरीद रहे हैं। इस दूध से तैयार पनीर की रोजाना 20 किलो से अधिक आपूर्ति गरुड़ बाजार में की जा रही है। इस पूरे काम में उनकी मां हंसी देवी और पत्नी चंपा देवी भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती
कोठूं गांव की लक्ष्मी देवी, जानकी देवी, हेमा देवी, बिमला देवी और अयारतोली की रेखा देवी, शांति देवी, बसंती देवी बताती हैं कि दीपक के पनीर कारोबार से जुड़ने के बाद उन्हें घर से ही दूध बेचने का मौका मिल रहा है। न तो बाजार जाने की परेशानी है और न ही अतिरिक्त मेहनत। दूध के अच्छे दाम मिलने से उनकी आय बढ़ी है और परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है।
बैंक ने लोन देने से कर दिया था मना
दीपक कहते हैं कि सरकार की योजनाएं तो खूब हैं, लेकिन लोगों तक उनकी पहुंच को सरल बनाने की जरूरत है। बताते हैं कि काम शुरू करने के लिए वह मुख्यमंत्री योजना से लोन लेने बैंक में गए, लेकिन बैंक ने इसे जोखिम बताते हुए ऋण देने से मना कर दिया। इसके बाद से किसी सरकारी योजना का लाभ लिए बिना ही अपने काम को आगे बढ़ाया।
कोट
पहाड़ में स्वरोजगार से अच्छी आय कमाने की खूब संभावनाएं हैं, लेकिन मेहनत काफी करनी पड़ती है। मेहनत, लगन और समर्पण भाव से काम करने पर आमदनी तो होती ही है, परिवार के साथ खुशी से रहने का मौका भी मिलता है। हम ही सुबह चार से दोपहर दो बजे तक निरंतर कार्य करते हैं। दो घंटे भोजन विश्राम के बाद चार बजे शाम से रात तक फिर काम करते हैं।
दीपक गोस्वामी, उद्यमी, अयारतोली

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