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UK: प्लास्टिक कचरे से बनीं सड़कों पर दौड़ रहे वाहन, 20 KM से ज्यादा में हो चुका है काम; दावा- ज्यादा टिकाऊ

नवनीत सिंह बिष्ट Updated Mon, 17 Nov 2025 10:38 AM IST
सार

कालाढूंगी-लालकुआं क्षेत्र में पहली बार प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल कर 20 किलोमीटर से अधिक सड़कें बनाई गई हैं, जिन पर यातायात भी शुरू हो गया है। दक्षिण भारत में एक दशक पहले शुरू हुई इस टिकाऊ तकनीक से प्लास्टिक के निस्तारण में मदद मिल रही है। 

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For the first time in the district, vehicles are running on roads made of plastic waste.
प्रतीकात्मक।
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विस्तार
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दक्षिण भारत की तर्ज पर शहर में भी सड़क निर्माण में प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है। कालाढूंगी से लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में 20 किलोमीटर से अधिक सड़कें इस तकनीक से बनाई गई हैं। इन सड़कों पर यातायात भी शुरू हो गया है। विभाग का दावा है कि इस तकनीक से बनीं सड़कें टिकाऊ रहेंगी।

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10 वर्ष पहले दक्षिण भारत में प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने की तकनीक का इस्तेमाल किया गया। प्लास्टिक के निस्तारण में प्रयोग मददगार बना। धीरे-धीरे इस तकनीक को अन्य राज्यों ने भी अपनाया। इसी क्रम में हल्द्वानी लोक निर्माण विभाग ने जिले में पहली बार इस तकनीक का प्रयोग कालाढूंगी और लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में किया है। कोटाबाग ब्लॉक के ग्रामीण क्षेत्रों के साथ हल्द्वानी ब्लॉक के गौलापार व बिंदुखत्ता में भी प्लास्टिक कचरे की तकनीक से सड़कें चकाचक कर दी गई हैं।
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कहां कितने किलोमीटर सड़कों का निर्माण

कालाढूंगी विधानसभा-
देवीपुरा से विजय आतंरिक मार्ग 2.58 किमी
चिंतपुर से रूपपुर आतरिंग मार्ग 860 मीटर

लालकुआं विधानसभा-
तिवारीनगर-गांधीनगर बिंदुखत्ता का आतंरिक मार्ग 4.28 किमी
गौलापार में आतंरिक मार्ग 8.56 किमी

कौन सा प्लास्टिक होता है इस्तेमाल
सड़क निर्माण के लिए हर तरह के प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल कर तैयार किया जाता है। इसमें प्लास्टिक के टुकड़े-टुकड़े किए जाते हैं। यह प्रक्रिया अपशिष्ट प्रबंधन में कारगर है। पर्यावरण के लिहाज से भी यह फायेदमंद है। बताया कि मध्यप्रदेश में इसका उत्पादन अधिक होता है। ठेकेदार इसकी आपूर्ति गाजियाबाद समेत अन्य शहरों से कर रहे हैं।

इस तरह बनती है सड़क
लोनिवि के इंजीनियरों के अनुसार एग्रीगेट यानी रोड़ी को गर्म करने के बाद श्रेडिंग प्लास्टिक डाला जाता है। इसके बाद गर्म बिटुमिन (डामर) में मिलाया जाता है। अनुमान के मुताबिक 25 किलो डामर में सवा दो किलो प्लास्टिक मिलाया जाता है। इस विधि से औसतन एक किलोमीटर सड़क बनाने में 12.88 लाख रुपये का खर्च आता है।

पहले प्लास्टिक कचरे वाली सड़कें कम बनती थीं लेकिन अब इसे बढ़ावा दिया जा रहा है। सड़क की सुरक्षा के लिहाज से भी यह तकनीक फायदेमंद है। अभी ग्रामीण क्षेत्रों के मार्ग इस विधि से बनाए जा रहे हैं।
- प्रत्यूष कुमार, अधिशासी अभियंता लोनिवि

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