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Uttarakhand: हाईकोर्ट ने पीसीएस मेन्स परीक्षा पर लगाई रोक, छह और नौ दिसंबर को होनी थी आयोजित
संवाद न्यूज एजेंसी, नैनीताल
Published by: अलका त्यागी
Updated Thu, 04 Dec 2025 11:25 PM IST
सार
मामले के अनुसार कुलदीप कुमार सहित अन्य अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्नों को चुनौती दी थी।
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- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सम्मिलित राज्य सिविल प्रवर अधीनस्थ सेवा परीक्षा 2025 की प्रस्तावित मुख्य परीक्षा पर रोक लगा दी है। यह परीक्षा छह और नौ दिसंबर को आयोजित होनी थी। यह रोक प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए गलत प्रश्नों को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के बाद लगाई गई है।
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मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी एवं न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ के समक्ष हुई। न्यायालय ने उत्तराखंड लोक सेवा आयोग को निर्देश दिए हैं कि वह सामान्य अध्ययन विषय के एक गलत प्रश्न को हटाकर प्रारंभिक परीक्षा का संशोधित परिणाम जारी करे। इसके अलावा वर्ष 2022 के रेगुलेशन के अनुसार नई मेरिट सूची जारी की जाए।
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मामले के अनुसार कुलदीप कुमार सहित अन्य अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्नों को चुनौती दी थी। यह परीक्षा डिप्टी कलेक्टर, पुलिस उपाधीक्षक, वित्त अधिकारी-कोषाधिकारी, सहायक आयुक्त राज्य कर, राज्य कर अधिकारी, सहायक नगर आयुक्त, अधिशासी अधिकारी, अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत, जिला समाज कल्याण अधिकारी सहित 120 से अधिक पदों के लिए आयोजित की गई थी। इसका परिणाम आठ अक्टूबर को जारी किया गया था। इसमें करीब 1200 अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा के लिए सफल घोषित किया गया था।
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याचिका में आरोप लगाया गया कि प्रारंभिक परीक्षा में सामान्य अध्ययन का एक प्रश्न गलत तरीके से बनाया गया था, जिससे परिणाम प्रभावित हुआ। इस पर लोक सेवा आयोग ने भी कोर्ट में स्वीकार किया कि सामान्य अध्ययन का एक सवाल गलत था जिसे हटाया जाना चाहिए था। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की प्रस्तावित मुख्य परीक्षा पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी। अब संशोधित प्रारंभिक परिणाम और नई मेरिट सूची जारी होने के बाद आगे की प्रक्रिया तय होगी।
विवादित प्रश्नों पर कोर्ट का निर्देश
याचिकाकर्ता की ओर से तीन अन्य प्रश्नों और उनके विकल्पों को भी गलत बताया गया था। इस पर अदालत ने स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा कि प्रश्न संख्या 70 को पूरी तरह से हटाया जाए। शेष तीन विवादित प्रश्नों की जांच एक विशेषज्ञ समिति (एक्सपर्ट कमेटी) से कराई जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि जब तक इन प्रश्नों की निष्पक्ष जांच पूरी नहीं हो जाती और मेरिट सूची को सही ढंग से दोबारा तय नहीं किया जाता तब तक मुख्य परीक्षा कराना उचित नहीं होगा।