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Uttarakhand News: स्टॉप पेमेंट करना भी एनआई एक्ट का अपराध : हाईकोर्ट

अमर उजाला नेटवर्क, नैनीताल Published by: हीरा मेहरा Updated Tue, 16 Sep 2025 03:08 PM IST
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सार

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि स्टॉप पेमेंट के आधार पर भी एनआई एक्ट का अपराध बनता है। 

Uttarakhand High court said that making stop payment is also a crime under NI Act
उत्तराखंड हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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उत्तराखंड उच्च न्यायलय ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि स्टॉप पेमेंट के आधार पर भी एनआई एक्ट का अपराध बनता है। न्यायाधीश पंकज पुरोहित ने अपने फैसले में कहा कि पोस्ट-डेटेड चेक बाउंस होने पर दर्ज आपराधिक मामला केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि बैंक में चेक कार्य अनुबंध समाप्त होने के बाद प्रस्तुत किया गया।

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कोर्ट ने कहा कि ऐसे में वास्तविक तथ्य केवल ट्रायल कोर्ट में ही परीक्षण के योग्य हैं। मामला मोहित बटोला बनाम जेडी कैपिटल इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ा है। दोनों पक्षों में 2019 में समझौता हुआ था, जिसके तहत निर्माण कार्य के एवज में आवेदक की ओर से पोस्ट-डेटेड चेक दिए गए। विवाद तब खड़ा हुआ जब कंपनी ने चेक बैंक में लगाया और वह बाउंस हो गया। कंपनी का कहना था कि उसने 6 मई 2020 को चेक जमा किया, जबकि आवेदक ने दावा किया कि 8 मई 2020 को यानी अनुबंध समाप्त करने के बाद चेक लगाया गया।

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इस पर देहरादून की अदालत ने शिकायत दर्ज कर कार्यवाही शुरू कर दी थी, जिसे आवेदक ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, कहा कि आंशिक भुगतान पहले ही किया जा चुका था, जिसकी लिखित पुष्टि चेक पर नहीं की गई। चेक का उपयोग केवल गलत ढंग से दबाव बनाने के लिए किया गया है। कंपनी का दवा था कि चेक विधिसम्मत देनदारी के लिए जारी किए गए थे। कोर्ट ने पक्षों की सुनवाई के बाद कहा कि चेक जमा करने की तारीख, आंशिक भुगतान, अनुबंध समाप्ति और कार्य की पूर्णता जैसी बातें तथ्यात्मक विवाद हैं, जिनका परीक्षण केवल ट्रायल कोर्ट ही कर सकता है धारा 482 सीआरपीसी के तहत हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं बनता।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्टॉप पेमेंट के आधार पर भी धारा 138 एनआई एक्ट का अपराध बनता है। आरोपी को यह साबित करना होगा कि खाते में पर्याप्त राशि थी और कोई वास्तविक देनदारी नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने सही संज्ञान लिया है और कार्यवाही को रद्द करने का कोई कारण नहीं है। इस आधार पर याचिका खारिज कर दी गई।

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