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Pithoragarh News: खोल दिए 89 आयुर्वेदिक अस्पताल, 47 में नहीं हैं डॉक्टर
संवाद न्यूज एजेंसी, पिथौरागढ़
Updated Wed, 03 Dec 2025 10:41 PM IST
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पिथौरागढ़ में किराए के भवन में संचालित हो रहा जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी कार्यालय। संवाद
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पिथौरागढ़। आयुष प्रदेश में वैदिक आयुर्वेद को बढ़ावा देने की योजना और दावे दम तोड़ रहे हैं। सीमांत जिले में बगैर डॉक्टरों और फार्मासिस्ट के संचालित हो रहे आयुर्वेदिक अस्पताल इसका प्रमाण हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि, जिले में संचालित 89 आयुर्वेदिक अस्पतालों में 42 में डॉक्टर तैनात हैं। फार्मासिस्ट के 26 में से 20 पद रिक्त हैं। इन अस्पतालों में बगैर डॉक्टर और फार्मासिस्ट के इलाज मिलना मुश्किल हो रहा है और मरीज इसके लिए भटक रहे हैं।
जिले में राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल और आयुष विंग को मिलाकर आयुर्वेदिक चिकित्सा के करीब 89 केंद्र हैं। 47 अस्पतालों में मरीजों का इलाज करने के लिए डॉक्टर की तैनाती नहीं है। फार्मेसी अधिकारी के 26 पदों में से 20 पद खाली हैं। सभी चिकित्सा केंद्रों में दवा व उपकरणों की आपूर्ति रहती है। चिंता की बात यह है कि चिकित्सकों और फार्मासिस्ट के अभाव में मरीजों को न तो दवा मिल रही है और न उपकरण संचालित हो रहे हैं। दूरस्थ क्षेत्रों में संचालित इन अस्पतालों में हर रोज 250 से अधिक मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। डॉक्टर और फार्मासिस्ट न होने से अधिकांश मरीजों को निराश होकर अन्य अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है। हैरानी है कि डॉक्टर, फार्मासिस्ट और अन्य स्टाफ की नियुक्ति न होने से छह से अधिक आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्रों में ताले लटकाकर जिम्मेदारी निभा दी गई है।
किराये के भवन में चल रहे हैं 25 आयुर्वेदिक अस्पताल
सीमांत जिले के दूरदराज के इलाकों में स्थापित 25 आयुर्वेदिक अस्पतालों के पास अपना भवन नहीं है। आयुर्वेद को बढ़ावा देने के दावों के बीच ये अस्पताल किराये के भवन में चल रहे हैं। ऐसे में इन अस्पतालों में सुविधाओं का विस्तार करना विभाग के लिए मुश्किल हो रहा है। इसकी सीधी मार मरीजों को सहनी पड़ रही है। हालात इतने बुरे हैं कि खुद जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी कार्यालय 56 साल से किराये के भवन में संचालित हो रहा है।
सीमांत जिले में नियुक्ति होते ही शुरू हो जाती है ट्रांसफर की जुगत
जनपद में वर्ष 2024 में 33 आयुर्वेदिक चिकित्सकों की तैनाती हुई। हैरानी की बात यह है कि छह से अधिक चिकित्सकों का कुछ महीने में ही स्थानांतरण हो गया। सूत्रों के मुताबिक जनपद में कार्यरत फार्मेसी अधिकारियों में से अधिकांश गढ़वाल मंडल से हैं, जो यहां नियुक्ति होने पर अपने ट्रांसफर की जुगत में लग जाते हैं। चिकित्सकों के स्थानांतरण में भी यही बात सामने आई है।
पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली पर कायम है लोगों का विश्वास
वैदिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को जीवन का विज्ञान भी कहा जाता है। यह भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है। जिसका मूल अथर्ववेद में है। यह शरीर, इंद्रिय,मन और आत्मा के संतुलन का बनाए रखने पर केंद्रित है, जिसमें दोषों (वात, पित्त और कफ) को संतुलित करने के लिए योग, जड़ी-बूटी चिकित्सा, पंचकर्म और जीवन शैली में बदलाव का इस्तेमाल किया जाता है। आज भी लोग लोग इस चिकित्सा पद्धति पर काफी भरोसा करते हैं।
कोट
चिकित्सकों और अन्य स्टाफ के रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए निदेशालय को मांग भेजी गई है। जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी कार्यालय के लिए भी जमीन तलाशी जा रही है। उम्मीद है जल्द समस्याओं का समाधान होगा।- डॉ. चंद्रकला भैंसोड़ा, जिला आयुर्वेदिक अधिकारी, पिथौरागढ़
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किराये के भवन में चल रहे हैं 25 आयुर्वेदिक अस्पताल
सीमांत जिले के दूरदराज के इलाकों में स्थापित 25 आयुर्वेदिक अस्पतालों के पास अपना भवन नहीं है। आयुर्वेद को बढ़ावा देने के दावों के बीच ये अस्पताल किराये के भवन में चल रहे हैं। ऐसे में इन अस्पतालों में सुविधाओं का विस्तार करना विभाग के लिए मुश्किल हो रहा है। इसकी सीधी मार मरीजों को सहनी पड़ रही है। हालात इतने बुरे हैं कि खुद जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी कार्यालय 56 साल से किराये के भवन में संचालित हो रहा है।
सीमांत जिले में नियुक्ति होते ही शुरू हो जाती है ट्रांसफर की जुगत
जनपद में वर्ष 2024 में 33 आयुर्वेदिक चिकित्सकों की तैनाती हुई। हैरानी की बात यह है कि छह से अधिक चिकित्सकों का कुछ महीने में ही स्थानांतरण हो गया। सूत्रों के मुताबिक जनपद में कार्यरत फार्मेसी अधिकारियों में से अधिकांश गढ़वाल मंडल से हैं, जो यहां नियुक्ति होने पर अपने ट्रांसफर की जुगत में लग जाते हैं। चिकित्सकों के स्थानांतरण में भी यही बात सामने आई है।
पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली पर कायम है लोगों का विश्वास
वैदिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को जीवन का विज्ञान भी कहा जाता है। यह भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है। जिसका मूल अथर्ववेद में है। यह शरीर, इंद्रिय,मन और आत्मा के संतुलन का बनाए रखने पर केंद्रित है, जिसमें दोषों (वात, पित्त और कफ) को संतुलित करने के लिए योग, जड़ी-बूटी चिकित्सा, पंचकर्म और जीवन शैली में बदलाव का इस्तेमाल किया जाता है। आज भी लोग लोग इस चिकित्सा पद्धति पर काफी भरोसा करते हैं।
कोट
चिकित्सकों और अन्य स्टाफ के रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए निदेशालय को मांग भेजी गई है। जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी कार्यालय के लिए भी जमीन तलाशी जा रही है। उम्मीद है जल्द समस्याओं का समाधान होगा।- डॉ. चंद्रकला भैंसोड़ा, जिला आयुर्वेदिक अधिकारी, पिथौरागढ़