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Mandi: For the first time a Shiva Stuti inscription written in Devali Lipi Tankari dating back hundreds of years has been read
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Mandi: पहली बार पढ़ा गया सैकड़ों सालों पहले का देवलिपि टांकरी में लिखा शिव स्तुती शिलालेख
छोटी काशी मंडी के प्राचीन त्रिलोकीनाथ मंदिर में 500 सालों से भी अधिक समय से रखे गए शिलालेख को मंडी कलम व टांकरी लिपि के संरक्षक पारूल अरोड़ा ने पढ़ने सफलता हासिल की है। यह लेख टांकरी लिपी में लिखा गया है जो देवभूमि की प्राचीन शारदा लिपि से निकली है और इसे देवलिपि के नाम से भी जाना जाता है। 16 पंक्तियों में लिखे गए इस लेख में भगवान भोलेनाथ की महिमा का गुणगान किया गया है। पारूल अरोड़ा पिछले डेढ साल से इस शिलालेख को पढ़ने के शोध कार्य में लगे हुए थे। प्रथम प्रयास में पारूल अरोड़ा ने इसे पढ़ने के बाद भारतीय पुरातात्तवीक विभाग के शिमला कार्यलय और डीसी मंडी को पत्र भेजकर इसके संरक्षण की मांग उठाई है। पारूल अरोड़ा ने बताया कि इस शिलालेख के 13वीं पंक्ति में इसके कालखंड की जानकारी दी गई है। 4622 कलि संवत यानी कलियुग अवधि के अनुसार यह शिलालेख 505 साल पुराना पाया गया है। इसका पहला श्लोक भगवान गणेश और शिव को नमन करने के साथ हुआ है। इसमें लिखे गए सभी श्लोक हमारे जीवन के लिए बहुत ही कल्याणकारी हैं। पारूल अरोड़ा ने बताया कि टांकरी लिपि में शारदा लिपि के ही संयुक्त शब्द होते हैं। शिव स्तुती के इस लेख में भी शारदा लिपि के बहुत से शब्दों को प्रयोग हुआ है जिसका उन्होंने बाद में संस्कृत में अनुवाद किया है। समय के साथ इस शिलालेख में लिखे शब्द धूमिल और नष्ट होने के बाद भी उन्होंने अपने अध्ययन में इसका सही-सही अनुवाद करने का प्रयास किया है। जिसमें उन्होंने एआई तकनीक का भी सहारा लिया है। यदि शारदा लिपि के विशेषज्ञ इस शिलालेख का अध्ययन करते हैं तो इससे और अधिक जानकारियां सामने आ सकती हैं। पारूल अरोड़ा ने प्रदेश के विभिन्न मंदिरों में टांकरी लिपि में लिखित अन्य शिलालेखों का देवनागरी लिपि में अनुवाद करने की मांग उठाई है, ताकि आम जनता भी इन शिलालेखों पर अंकित शब्दों का अर्थ जान सके। साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए जा रहे ज्ञान भारतम मिशन के तहत भी इस लिपि को शामिल करने व इसके संरक्षण की मांग उठाई है। ताकि पांडुलिपियों के माध्यम से निकलने वाले इस ज्ञान को दुनिया भी जान सके।
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