नेपाल इस समय गहरी राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद पूरे देश में
Gen Z प्रदर्शनकारियों ने बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर अपना आक्रोश ज़ाहिर किया है। खासकर सोशल मीडिया बैन ने इस असंतोष को और भड़का दिया है। इन आंदोलनों के बीच अब दो संभावित नेतृत्व विकल्पों के नाम सामने आए हैं। इनमें सबसे प्रमुख नाम है
कुलमान घिसिंग का जो नेपाल विद्युत प्राधिकरण (NEA) के पूर्व प्रबंध निदेशक रहे हैं और जिन्होंने देश से वर्षों तक जारी लोडशेडिंग (बिजली कटौती) का अंत कर जनता के बीच गहरी लोकप्रियता हासिल की।
कुलमान घिसिंग को उनकी तकनीकी विशेषज्ञता, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और प्रशासनिक ईमानदारी के कारण एक समस्या समाधान करने वाले नेता के रूप में देखा जाता है। NEA में उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने कुछ ही महीनों में औसतन आठ घंटे तक चलने वाली बिजली कटौती को समाप्त कर दिया। हालांकि, बाद में सरकार ने अचानक उन्हें पद से हटा दिया। इस फैसले ने जनता में गुस्सा और राजनीतिक विवाद दोनों को जन्म दिया। सरकार ने उनके खिलाफ दस गंभीर आरोप लगाए जिनमें बोर्ड के फैसलों का उल्लंघन और भारत के साथ ऊर्जा समझौते बिना मंत्री की मंजूरी के करना शामिल है।
आज जब नेपाल में युवा प्रदर्शनकारी अंतरिम सरकार की मांग कर रहे हैं, तो घिसिंग का नाम इंटरिम प्रधानमंत्री के तौर पर प्रमुखता से सामने आया है। जनता और सामाजिक आंदोलनों का कहना है कि अब देश को एक ऐसी सरकार चाहिए जो भ्रष्टाचार की जांच करे, रोजगार के नए अवसर पैदा करे और युवाओं की आकांक्षाओं को समझे ।लेकिन इसके रास्ते में चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं राजनीतिक संतुलन बनाना, संविधान की बाधाओं से निपटना और विपक्षी दलों की सहमति हासिल करना बड़ी शर्तें होंगी। लोग क्यों मानते हैं कि घिसिंग नेपाल को एक टेक्नोक्रेटिक बदलाव दे सकते हैं, उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और अंतरिम प्रधानमंत्री बनने की राह में उनके सामने कौन-कौन सी रुकावटें हैं।