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ओवैसी ने क्यों किया भारतीयों की प्राइवेसी खतरे में होने का दावा?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Wed, 03 Dec 2025 03:20 AM IST
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देश में स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाए गए संचार साथी एप को लेकर केंद्र सरकार और विपक्ष में टकराव गहराता जा रहा है। फोन कंपनियों को इस एप को अनिवार्य रूप से सभी नए स्मार्टफोन्स में प्री-इंस्टॉल करने के निर्देश के बाद राजनीतिक विवाद तेजी से बढ़ा है। इस विवाद को सबसे तेज़ हवा दी है AIMIM प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने, जिन्होंने इस फैसले को नागरिकों की निजता पर “नया प्रहार” बताया है।
असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि संचार साथी एप को अनिवार्य बनाना और इसे हटाने योग्य (non-deletable) न रखना, सरकार को हर डिवाइस तक सीधी पहुंच देने जैसा है। उनके अनुसार, यह कदम सरकार को नागरिकों की गतिविधियों पर निगाह रखने का आसान रास्ता उपलब्ध करा सकता है।
ओवैसी ने यह भी आरोप लगाया कि इस एप को अनिवार्य बनाने संबंधी सरकारी सर्कुलर सार्वजनिक ही नहीं किया गया, जिससे इसके पीछे सरकार की मंशा पर सवाल उठते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इस प्रकार का प्रावधान डिजिटल स्पेस में “अभूतपूर्व सरकारी स्नूपिंग” का रास्ता खोल सकता है।
ओवैसी का तर्क है कि किसी भी एप को अनिवार्य बनाना और उसे हटाने की अनुमति न देना न केवल तकनीकी रूप से संदिग्ध है बल्कि यह नागरिक अधिकारों और प्राइवेसी मानकों के लिए भी गंभीर खतरा है।
विवाद बढ़ने के बाद केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने व्यापक स्पष्टीकरण देकर स्थिति को शांत करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि संचार साथी एप पूरी तरह वैकल्पिक है और यदि कोई यूज़र इसे फोन से हटाना चाहे तो ऐसा संभव है।
सिंधिया ने बताया कि यह एप केवल उन्हीं मामलों में सक्रिय होता है, जब यूजर स्वयं इसे रजिस्टर करते हैं और इसकी सुविधाओं का उपयोग करना चाहते हैं। उनके अनुसार, इस एप का उद्देश्य नागरिकों को डिजिटल धोखाधड़ी, साइबर अपराध और मोबाइल चोरी से बचाना है।
उन्होंने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह एप किसी भी प्रकार से निगरानी या डेटा एक्सेस का साधन नहीं है, बल्कि यह सुरक्षा को बढ़ाने का एक प्रयास है।
ओवैसी की सबसे बड़ी आपत्ति इसी पर है कि सरकार ने फोन कंपनियों को निर्देश दिया है कि यह एप सभी नए स्मार्टफोन्स में प्री-इंस्टॉल होना चाहिए। ऐसे में, यदि यूज़र इसे डिलीट न कर सकें तो यह स्थिति गंभीर डिजिटल खतरा बन सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कोई एप अनिवार्य रूप से डिवाइस में शामिल किया जाता है, तो उसकी अनुमतियों और डेटा एक्सेस को लेकर पारदर्शिता अनिवार्य हो जाती है। इसके अभाव में निगरानी या दुरुपयोग की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
इस मुद्दे पर दो बिल्कुल अलग राय सामने आई हैं।
सरकार का पक्ष:
• एप नागरिकों को सुरक्षा खतरे, फ्रॉड और फोन चोरी से बचाने के लिए है।
• यह केवल यूज़र की सहमति से काम करता है।
• कोई निगरानी उद्देश्य नहीं।
विपक्ष और आलोचक:
• प्री-इंस्टॉल और अनिवार्य करने का फैसला गलत।
• यह सरकार को व्यापक डिजिटल एक्सेस दे सकता है।
• पारदर्शिता की कमी और गोपनीयता पर खतरा।
डिजिटल विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी सुरक्षा एप को अनिवार्य बनाने से पहले स्पष्ट डेटा नीति, ओपन सोर्स कोड, और स्वतंत्र ऑडिट आवश्यक हैं। इनकी अनुपस्थिति में विवाद स्वाभाविक है।
जैसे-जैसे विवाद बढ़ रहा है, सरकार पर दबाव है कि वह एप को लेकर विस्तृत दिशानिर्देश और तकनीकी विवरण सार्वजनिक करे। दूसरी ओर, विपक्ष इस मुद्दे को नागरिक आजादी और डिजिटल अधिकारों से जोड़कर लगातार हमला तेज कर रहा है।
अब निगाह इस बात पर है कि क्या सरकार अपने निर्देशों में बदलाव करती है, या फिर इस मुद्दे पर व्यापक बहस के बाद कोई बड़ा निर्णय लिया जाता है।
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