जिले के ककोड़ कस्बे में राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय में एक कक्षा की छत मंगलवार सुबह अचानक भरभराकर गिर गई। हादसे के समय पास ही में कक्षा 9 और 10 की छात्राएं टेस्ट दे रही थीं। तेज धमाके और धूल के गुबार से छात्राओं और शिक्षकों में दहशत फैल गई। गनीमत रही कि कमरे के साथ लगी दीवार नहीं गिरी, वरना हादसा और बड़ा हो सकता था।
सूचना मिलते ही उनियारा एसडीएम शत्रुघ्न गुर्जर, मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी सुशीला करणानी और अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। बताया जा रहा है कि जिस कमरे की छत गिरी, उसे पहले से जर्जर घोषित कर उस पर ताला लगाया गया था। बाद में वहां रस्सी भी बांधी गई थी ताकि बच्चे अंदर न जा सकें।
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मीडिया जांच में सामने आया कि केवल यह विद्यालय ही नहीं बल्कि बाहर की तरफ स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय का भवन भी जर्जर हालत में है। यहां भी छोटे बच्चों की जान खतरे में डाली जा रही है। हालात यह है कि ककोड़ में राजकीय प्राथमिक विद्यालय, सीनियर सेकंडरी बालिका विद्यालय और सीनियर सेकंडरी विद्यालय तीनों ही भवन जर्जर व खस्ताहाल स्थिति में हैं। इतना ही नहीं कस्बे के तीन आंगनबाड़ी केंद्र भी बेहाल स्थिति में हैं। हाल ही में एक केंद्र का छज्जा टूटकर गिर गया था, जिसमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घायल हो गई थी।
गौरतलब है कि झालावाड़ हादसे के बाद राज्य सरकार ने सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश दिए थे कि जर्जर स्कूल भवनों का सर्वे कराया जाए। टोंक जिले में 130 से अधिक प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल जर्जर और कंडम घोषित किए गए थे। मरम्मत या भवनों को जमींदोज करने की सिफारिश भी की गई थी। इसी स्कूल की रिपोर्ट में भी 10 में से 7 कमरों को अनुपयोगी घोषित किया गया था, जिसकी सूचना जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग को भेजी गई थी।
इसके बावजूद यहां 125 छात्राओं की जान जोखिम में डालकर शिक्षण कार्य कराया जा रहा था। हादसे के बाद अधिकारी एक बार फिर जांच और कार्रवाई का आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन अब तक किसी जिम्मेदार अधिकारी की जवाबदेही तय नहीं की गई है। सवाल यह है कि आखिर इस लापरवाही की जिम्मेदारी कौन लेगा और दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों पर कार्रवाई कब होगी?