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चिंताजनक: दुनिया खाद्य संकट की ओर, भूमि क्षरण से 1.7 अरब लोग प्रभावित; कुपोषण से जुझ रहे 4.7 करोड़ बच्चे

अमर उजाला नेटवर्क Published by: शुभम कुमार Updated Wed, 05 Nov 2025 06:53 AM IST
सार

संयुक्त राष्ट्र की एफएओ रिपोर्ट 'द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर 2025' के अनुसार, मानव गतिविधियों से भूमि क्षरण बढ़ने से वैश्विक खाद्य सुरक्षा खतरे में है। 1.7 अरब लोग प्रभावित हैं और 5 वर्ष से कम उम्र के 4.7 करोड़ बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। असतत कृषि, वनों की कटाई और रसायनों का अत्यधिक प्रयोग मुख्य कारण हैं।

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A new FAO report claims that land degradation has reduced crop production by 10 percent News In Hindi
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : Google Gemini
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विस्तार
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मानव गतिविधियों से बिगड़ती मिट्टी अब दुनिया को खाद्य संकट के मुहाने पर खड़ा कर चुकी है। विश्व में लगभग 1.7 अरब लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां भूमि क्षरण के कारण औसतन 10 प्रतिशत फसल उत्पादन घट चुका है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रोम से जारी नई रिपोर्ट द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर-2025 में कहा है कि इसका सबसे गंभीर प्रभाव बच्चों के पोषण पर पड़ रहा है।

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अनुमान है कि 5 वर्ष से कम आयु के  लगभग 4.7 करोड़ बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं। यह स्थिति बताती है कि भूमि का क्षरण केवल पर्यावरणीय नुकसान नहीं बल्कि खाद्य सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और सामाजिक संतुलन के लिए गंभीर चुनौती बन चुका है। रिपोर्ट कहती है कि भूमि क्षरण किसी एक कारण से नहीं बल्कि कई कारकों से होता है। प्राकृतिक प्रक्रियाओं जैसे अपरदन (इरोजन) और लवणीकरण (सैलिनाइजेशन) के साथ आज मानव-जनित कारण सबसे बड़ा बन चुके हैं।
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वनों की बड़े स्तर पर कटाई, अत्यधिक चराई, असंतुलित सिंचाई और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर असतत (अनसस्टेनेबल) कृषि प्रथाओं ने मिट्टी की संरचना और पोषण-संतुलन को गहरा नुकसान पहुंचाया है। रिपोर्ट मापदंडों के आधार पर बताती है कि भूमि के कार्बनिक कार्बन, जल-संतुलन और अपरदन की स्थिति प्राकृतिक अवस्था की तुलना में बेहद पीछे जा चुकी है। एफएओ के मुताबिक इस क्षरण का प्रभाव सीधे ग्रामीण आजीविका, कृषि आय और वैश्विक खाद्य आपूर्ति पर पड़ा है।

मानव सभ्यता के भविष्य को चुनौती
एफएओ की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से बताती है कि भूमि क्षरण मानव सभ्यता के भविष्य को चुनौती देने वाला संकट है। मिट्टी केवल एक भौतिक संसाधन नहीं, बल्कि खाद्य, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी की नींव है। इसे बचाना सिर्फ पर्यावरणीय कर्तव्य ही नहीं आने वाली पीढ़ियों के जीवन और स्थिरता की शर्त है। मिट्टी की रक्षा अभी नहीं की गई तो भोजन, पानी और स्थिर समाज सभी खतरे में पड़ जाएंगे।

भू-प्रबंधन की जरूरत
रिपोर्ट उम्मीद की किरण भी दिखाती है। यदि मौजूदा कृषि भूमि के केवल 10 प्रतिशत हिस्से को पुनर्जीवित कर दिया जाए, तो वैश्विक स्तर पर हर वर्ष लगभग 15.4 करोड़ अतिरिक्त लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है। पुनर्योजी (रेजेनरेटिव) खेती तकनीकें, फसल चक्र प्रणाली, आवरण फसलें यानी कवर कॉर्पिंग, कार्बन-समृद्ध जैविक विधियां और जल संरक्षण आधारित खेती मिट्टी की उर्वरता को फिर से जीवित करने में सक्षम हैं। सतत भूमि प्रबंधन को अपनाना अब विकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता है। रिपोर्ट जारी होने के बाद कई देशों ने मिट्टी-संरक्षण को मुख्य कृषि-नीति और जलवायु रणनीति से जोड़ने पर जोर दिया।

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