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बांग्लादेश में शेख हसीना को हटे एक साल: यूनुस शासन में बढ़े हत्या-दुष्कर्म जैसे अपराध, जानें आर्थिक हालात
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Tue, 05 Aug 2025 08:50 PM IST
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सार
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बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस।
- फोटो :
अमर उजाला
विस्तार
बांग्लादेश में पिछले साल यानी 5 अगस्त 2024 को छात्र संगठनों और विपक्षी पार्टियों के प्रदर्शन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भारत आना पड़ा था। तीन दिन बाद यानी 8 अगस्त 2024 को देश में छात्र संगठनों ने अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में नई अंतरिम सरकार के गठन का एलान किया था। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित यूनुस ने खुद शेख हसीना के हटने की घटना को बांग्लादेश के लिए नई शुरुआत करार दिया था और देश में तुरंत सुधार और जल्द से जल्द चुनाव कराने की बात कही थी।शेख हसीना को सत्ता से हटे हुए अब एक साल हो चुका है। बांग्लादेश में इस पूरे दौर में कई बड़े फैसले भी लिए गए हैं। इनमें अर्थव्यवस्था से लेकर विदेश नीति और कानून व्यवस्था बनाए रखने से जुड़ी अहम पहल शामिल हैं। हालांकि, जमीनी स्तर पर देखा जाए तो शेख हसीना बांग्लादेश को बीते साल जिस स्थिति में छोड़कर भारत आई थीं, कई क्षेत्रों में स्थिति अब उससे भी बदतर हो चुकी है। सरकार की एक के बाद एक कोशिशों के बावजूद अपराध के बढ़ते मामलों से लेकर आर्थिक स्तर पर यूनुस सरकार की चुनौतियां बढ़ती ही जा रही हैं।
ऐसे में यह जानना अहम है कि मोहम्मद यूनुस की तरफ से अंतरिम सरकार के गठन के वक्त जो वादे और दावे किए गए थे, उनका क्या हुआ? बांग्लादेश में नागरिकों की आंतरिक सुरक्षा को लेकर अभी क्या स्थिति है? इसके अलावा वहां राजनीतिक स्तर पर हालात क्या हैं और चुनावी प्रक्रिया को कैसे किनारे रख दिया गया है? बांग्लादेश में जिस तरह की आर्थिक प्रगति आने का दावा किया गया था, उसे लेकर क्या नया सामने आया है? आइये जानते हैं...
पहले जानें- बांग्लादेश में क्या है यूनुस सरकार के वादों की स्थिति?
बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस ने जब सत्ता हासिल की थी तो उनके दो वादे प्रमुख थे। इनमें एक वादा शेख हसीना के शासनकाल में अव्यवस्था का आरोप लगाते हुए देश में कानून व्यवस्था को दोबारा स्थापित करने का था। वहीं, दूसरा वादा बांग्लादेश में जल्द से जल्द चुनाव कराने का था। हालांकि, अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो इन दोनों ही क्षेत्रों में यूनुस सरकार पूरी तरह से नाकाम साबित हुई है। यह आंकड़े खुद अंतरिम सरकार के शासन में ही जारी हुए हैं।
1. अस्थिरता में बदली राजनीतिक स्थिरता
बांग्लादेश में जुलाई-अगस्त में हुई क्रांति के बाद अंतरिम सरकार के प्रमुख यूनुस ने सभी दलों को साथ लाने की बात कही थी। लेकिन मौजूदा स्थिति को देखा जाए तो जहां शेख हसीना की आवामी लीग पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो वहीं खालिदा जिया की बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) अलग-अलग समय पर यूनुस सरकार की नीतियों के विरोध में प्रदर्शन करती रही है। इसके अलावा अंतरिम सरकार की तरफ से पाकिस्तान समर्थक इस्लामवादी संगठन के नेताओं की रिहाई के बाद जमात-ए-इस्लामी (जेआई) और बीएनपी के बीच सियासी टकराव भी जारी है।
बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस ने जब सत्ता हासिल की थी तो उनके दो वादे प्रमुख थे। इनमें एक वादा शेख हसीना के शासनकाल में अव्यवस्था का आरोप लगाते हुए देश में कानून व्यवस्था को दोबारा स्थापित करने का था। वहीं, दूसरा वादा बांग्लादेश में जल्द से जल्द चुनाव कराने का था। हालांकि, अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो इन दोनों ही क्षेत्रों में यूनुस सरकार पूरी तरह से नाकाम साबित हुई है। यह आंकड़े खुद अंतरिम सरकार के शासन में ही जारी हुए हैं।
1. अस्थिरता में बदली राजनीतिक स्थिरता
बांग्लादेश में जुलाई-अगस्त में हुई क्रांति के बाद अंतरिम सरकार के प्रमुख यूनुस ने सभी दलों को साथ लाने की बात कही थी। लेकिन मौजूदा स्थिति को देखा जाए तो जहां शेख हसीना की आवामी लीग पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो वहीं खालिदा जिया की बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) अलग-अलग समय पर यूनुस सरकार की नीतियों के विरोध में प्रदर्शन करती रही है। इसके अलावा अंतरिम सरकार की तरफ से पाकिस्तान समर्थक इस्लामवादी संगठन के नेताओं की रिहाई के बाद जमात-ए-इस्लामी (जेआई) और बीएनपी के बीच सियासी टकराव भी जारी है।
मौजूदा समय की बात करें तो बाहर से भले ही सभी राजनीतिक दल यूनुस की अंतरिम सरकार का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन कई योजनाओं के विरोध में भी जुटे हैं। खासकर यूनुस की तरफ से प्रस्तावित प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर सीमा लगाने की योजना के खिलाफ। इसके अलावा कई अहम नियुक्तियों की जिम्मेदारी सरकार से लेकर एक राष्ट्रीय संवैधानिक परिषद को सौंपना चाहती है। हालांकि, इसे लेकर बीएनपी समेत कुछ पार्टियां सहमत नहीं हैं। यहां तक कि जमात-ए-इस्लामी और एनसीपी जैसे दलों ने संविधान में बदलाव को लेकर जनमत संग्रह कराने और नए संविधान को लिखे जाने के लिए संविधान सभा के गठन तक की मांग कर दी है। हालांकि, बीएनपी इसके सख्त खिलाफ है।
विश्लेषकों का मानना है कि जहां कट्टरवादी जमात-ए-इस्लामी पार्टी की वापसी और पहले से मौजूद ढांचे को बदलवाने की मांग बांग्लादेश को और कट्टरपंथ की तरफ धकेल सकती है तो वहीं एनसीपी को फिलहाल बांग्लादेश में यूनुस की तरफ से खुला समर्थन हासिल करते देखा जाता है। इसके चलते एनसीपी को बादशाह की पार्टी (किंग्स पार्टी) तक बुलाया गया है। कई अनुभवी नेताओं ने एनसीपी को अनुभवहीन और सत्ता की ताकत एकत्रित करने वाली पार्टी करार दिया है।
इसके अलावा बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के बीच तनाव भड़का है। जमात के नेता खालिदा जिया की पार्टी पर भ्रष्टाचार और उगाही के आरोप लगाते हैं। वहीं, बीएनपी ने जमात को 1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता आंदोलन में पाकिस्तान समर्थक पार्टी बताकर घेरा है। इसके चलते बांग्लादेश में कुछ मौकों पर दोनों पार्टियों के बीच टकराव की स्थिति बनी है।
विश्लेषकों का मानना है कि जहां कट्टरवादी जमात-ए-इस्लामी पार्टी की वापसी और पहले से मौजूद ढांचे को बदलवाने की मांग बांग्लादेश को और कट्टरपंथ की तरफ धकेल सकती है तो वहीं एनसीपी को फिलहाल बांग्लादेश में यूनुस की तरफ से खुला समर्थन हासिल करते देखा जाता है। इसके चलते एनसीपी को बादशाह की पार्टी (किंग्स पार्टी) तक बुलाया गया है। कई अनुभवी नेताओं ने एनसीपी को अनुभवहीन और सत्ता की ताकत एकत्रित करने वाली पार्टी करार दिया है।
इसके अलावा बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के बीच तनाव भड़का है। जमात के नेता खालिदा जिया की पार्टी पर भ्रष्टाचार और उगाही के आरोप लगाते हैं। वहीं, बीएनपी ने जमात को 1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता आंदोलन में पाकिस्तान समर्थक पार्टी बताकर घेरा है। इसके चलते बांग्लादेश में कुछ मौकों पर दोनों पार्टियों के बीच टकराव की स्थिति बनी है।
2. कानून व्यवस्था के खराब हालात
यूनुस का सत्ता में आने के बाद दूसरा बड़ा वादा कानून व्यवस्था को बेहतर ढंग से स्थापित करना था। हालांकि, तबसे लेकर स्थितियां लगातार बिगड़ी हैं। फिर चाहे हत्या के केस हों या दुष्कर्म, अपहरण और चोरी के। इन सभी के आंकड़ों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
Bangladesh: बांग्लादेश में अगले साल फरवरी में होंगे आम चुनाव, अंतरिम सरकार के सलाहकार मोहम्मद यूनुस का एलान
यूनुस का सत्ता में आने के बाद दूसरा बड़ा वादा कानून व्यवस्था को बेहतर ढंग से स्थापित करना था। हालांकि, तबसे लेकर स्थितियां लगातार बिगड़ी हैं। फिर चाहे हत्या के केस हों या दुष्कर्म, अपहरण और चोरी के। इन सभी के आंकड़ों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
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बांग्लादेश में बीते साल और उससे एक साल पहले यानी 2023 के आंकड़ों की 2025 के अपराध के आंकड़ों से तुलना की जाए तो सामने आता है कि 2025 में हर दिन लगभग 11 लोगों की हत्या हुई, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 8 हत्या प्रतिदिन का था। इसी तरह 2025 में हर दिन 15 से ज्यादा महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं सामने आईं, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 14 के करीब था। सबसे बुरी स्थिति नाबालिगों की रही। सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2025 में जनवरी से जून के बीच बच्चों के साथ हिंसा की 2159 घटनाएं सामने आईं। यानी हर दिन 12 बच्चों का उत्पीड़न हुआ, जबकि पूरे 2023 में इन घटनाओं की संख्या 2713 थी। यानी हर दिन 7-8 केस।
इन आंकड़ों से साफ है कि मोहम्मद यूनुस ने शेख हसीना के शासनकाल के दौरान जिस कानून व्यवस्था के बिगड़े होने और उसे सुधारने का दावा किया था, उसमें उनकी सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। उल्टा अंतरिम सरकार के शासन में स्थितियां और खराब हो गई हैं। इससे जुड़ी कुछ घटनाओं ने हाल ही में दुनियाभर में लोगों को चौंकाया था। बीते हफ्ते ढाका में एक व्यापारी की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद उसे पत्थरों से कुचला गया था। इसके अलावा इस साल की शुरुआत में पहले एक आठ साल की बच्ची के दुष्कर्म और उसके बाद कुमिला जिले के मुरादनगर में हिंदू महिलाओं के सामूहिक दुष्कर्म के मामलों ने भी बांग्लादेश में खराब होती स्थितियों को उजागर किया था।
इन आंकड़ों से साफ है कि मोहम्मद यूनुस ने शेख हसीना के शासनकाल के दौरान जिस कानून व्यवस्था के बिगड़े होने और उसे सुधारने का दावा किया था, उसमें उनकी सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। उल्टा अंतरिम सरकार के शासन में स्थितियां और खराब हो गई हैं। इससे जुड़ी कुछ घटनाओं ने हाल ही में दुनियाभर में लोगों को चौंकाया था। बीते हफ्ते ढाका में एक व्यापारी की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद उसे पत्थरों से कुचला गया था। इसके अलावा इस साल की शुरुआत में पहले एक आठ साल की बच्ची के दुष्कर्म और उसके बाद कुमिला जिले के मुरादनगर में हिंदू महिलाओं के सामूहिक दुष्कर्म के मामलों ने भी बांग्लादेश में खराब होती स्थितियों को उजागर किया था।
ढाका यूनिवर्सिटी में सामाजिक कल्याण संस्थान में आपराधिक मामलों के विश्लेषक डॉ. तौहीद हक के मुताबिक, लोगों में पुलिस का डर खत्म हो गया है। उनका कहना है कि पुलिस और न्यायपालिका के बीच सामंजस्य की कमी भी इस समस्या के लिए जिम्मेदार है। खासकर जब आरोपियों को जमानत दी जाती है तो हाई-प्रोफाइल संदिग्धों को कोर्ट से रिहाई मिलने के दौरान पुलिस को जानकारी न मिलना एक बड़ी समस्या है।
बांग्लादेश : हिंसक विद्रोह के एक वर्ष बाद भी राजनीतिक स्थिरता कोसों दूर; तमाम वादों के बाद भी हालात जस के तस
बांग्लादेश : हिंसक विद्रोह के एक वर्ष बाद भी राजनीतिक स्थिरता कोसों दूर; तमाम वादों के बाद भी हालात जस के तस
3. चुनाव की तारीखों और प्रक्रिया को लेकर भी विवाद
बांग्लादेश में बीएनपी समेत कई दलों ने जल्द से जल्द चुनाव कराने की मांग की है। यहां तक कि बांग्लादेश की सेना भी यूनुस से जल्द लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराने और एक चुनी हुई सरकार को बिठाने की मांग कर चुकी है। इस संबंध में पहले 2025 के अंत तक चुनाव कराने की मांग की गई थी। हालांकि, बाद में इसे फरवरी 2026 तक के लिए टाल दिया गया। बीएनपी इस मुद्दे पर लगातार प्रदर्शनों की धमकी देती रही है।
इसके अलावा चुनावी स्तर पर भी बदलावों का विरोध किया जा रहा है। दरअसल, अंतरिम सरकार सीधे चुनाव की जगह अब अनुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था लाना चाहती है। दूसरी तरफ बांग्लादेश में एक बार फिर राजनीतिक परिदृश्य में लौटी जमात-ए-इस्लामी और छात्रों के बने नए संगठन- नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) ने बांग्लादेश के पुरानी चुनावी प्रणाली से लेकर स्थानीय संस्थानों तक में बदलाव की मांग उठाई है। बीएनपी ने इन मांगों का पुरजोर विरोध किया है।
बांग्लादेश में बीएनपी समेत कई दलों ने जल्द से जल्द चुनाव कराने की मांग की है। यहां तक कि बांग्लादेश की सेना भी यूनुस से जल्द लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराने और एक चुनी हुई सरकार को बिठाने की मांग कर चुकी है। इस संबंध में पहले 2025 के अंत तक चुनाव कराने की मांग की गई थी। हालांकि, बाद में इसे फरवरी 2026 तक के लिए टाल दिया गया। बीएनपी इस मुद्दे पर लगातार प्रदर्शनों की धमकी देती रही है।
इसके अलावा चुनावी स्तर पर भी बदलावों का विरोध किया जा रहा है। दरअसल, अंतरिम सरकार सीधे चुनाव की जगह अब अनुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था लाना चाहती है। दूसरी तरफ बांग्लादेश में एक बार फिर राजनीतिक परिदृश्य में लौटी जमात-ए-इस्लामी और छात्रों के बने नए संगठन- नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) ने बांग्लादेश के पुरानी चुनावी प्रणाली से लेकर स्थानीय संस्थानों तक में बदलाव की मांग उठाई है। बीएनपी ने इन मांगों का पुरजोर विरोध किया है।
4. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी खतरे में
बांग्लादेश में बीते साल 5 अगस्त के बाद से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं। दरअसल, बीते एक साल में बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ भीड़ हिंसा के कई मामले सामने आए हैं। अगस्त 2024 के बाद से ही बांग्लादेश में रहने वाले सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा की 157 से ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं। इनमें हिंदू त्योहारों के दौरान उनकी बस्ती में आग लगाने से लेकर पिछले हफ्ते एक पोस्ट से भड़की मुस्लिमों की भीड़ के द्वारा हिंदुओं के घरों में तोड़फोड़ और हिंसा की घटनाएं तक शामिल हैं।
इस बीच एक और चौंकाने वाला आंकड़ा पत्रकारों पर हमले का है। स्वतंत्र संस्थान राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) के मुताबिक, बांग्लादेश में यूनुस सरकार के दौरान अगस्त 2024 से जुलाई 2025 के बीच 878 पत्रकारों को निशाना बनाया गया है। यह अगस्त 2023 से जुलाई 2024 के बीच पत्रकारों पर हमले के 383 मामलों से 230 फीसदी ज्यादा है। इस दौरान पत्रकारों पर आपराधिक केस 2023-24 के 35 केसों के मुकाबले 2024-25 में 195 केस तक पहुंच चुके हैं।
बांग्लादेश में बीते साल 5 अगस्त के बाद से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं। दरअसल, बीते एक साल में बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ भीड़ हिंसा के कई मामले सामने आए हैं। अगस्त 2024 के बाद से ही बांग्लादेश में रहने वाले सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा की 157 से ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं। इनमें हिंदू त्योहारों के दौरान उनकी बस्ती में आग लगाने से लेकर पिछले हफ्ते एक पोस्ट से भड़की मुस्लिमों की भीड़ के द्वारा हिंदुओं के घरों में तोड़फोड़ और हिंसा की घटनाएं तक शामिल हैं।
इस बीच एक और चौंकाने वाला आंकड़ा पत्रकारों पर हमले का है। स्वतंत्र संस्थान राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) के मुताबिक, बांग्लादेश में यूनुस सरकार के दौरान अगस्त 2024 से जुलाई 2025 के बीच 878 पत्रकारों को निशाना बनाया गया है। यह अगस्त 2023 से जुलाई 2024 के बीच पत्रकारों पर हमले के 383 मामलों से 230 फीसदी ज्यादा है। इस दौरान पत्रकारों पर आपराधिक केस 2023-24 के 35 केसों के मुकाबले 2024-25 में 195 केस तक पहुंच चुके हैं।
5. बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति खस्ता
बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त वीणा सीकरी ने हाल ही में एक भारतीय मीडिया संस्थान को बताया कि बांग्लादेश यूनुस सरकार के आने के बाद से पड़ोसी देश के आर्थिक हालात खराब हुए हैं। बीते एक साल में बांग्लादेश की विकास दर शेख हसीना के दौर की छह फीसदी विकास दर के आंकड़े से आधी हो चुकी है। सप्लाई चेन में गड़बड़ियों और खराब प्रबंधन की वजह से पड़ोसी मुल्क में इस वक्त बेरोजगारी दर उच्च स्तर पर है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक, बांग्लादेश के 30 फीसदी युवा न तो रोजगार पा सके हैं और न ही शिक्षा से जुड़े हैं। फैक्टरियों के बंद होने और अमेरिका की तरफ से टैरिफ लगाए जाने के बाद 40 लाख लोगों के जीवनयापन पर संकट पैदा होने की आशंका है। इतना ही नहीं बांग्लादेश में जुलाई 2024 के करीब जो महंगाई दर 11.7 फीसदी पर आ गई थी, वह अब थोड़ी कम होकर 8.5 फीसदी पर है। लेकिन अभी भी यह काफी ज्यादा है।
बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त वीणा सीकरी ने हाल ही में एक भारतीय मीडिया संस्थान को बताया कि बांग्लादेश यूनुस सरकार के आने के बाद से पड़ोसी देश के आर्थिक हालात खराब हुए हैं। बीते एक साल में बांग्लादेश की विकास दर शेख हसीना के दौर की छह फीसदी विकास दर के आंकड़े से आधी हो चुकी है। सप्लाई चेन में गड़बड़ियों और खराब प्रबंधन की वजह से पड़ोसी मुल्क में इस वक्त बेरोजगारी दर उच्च स्तर पर है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक, बांग्लादेश के 30 फीसदी युवा न तो रोजगार पा सके हैं और न ही शिक्षा से जुड़े हैं। फैक्टरियों के बंद होने और अमेरिका की तरफ से टैरिफ लगाए जाने के बाद 40 लाख लोगों के जीवनयापन पर संकट पैदा होने की आशंका है। इतना ही नहीं बांग्लादेश में जुलाई 2024 के करीब जो महंगाई दर 11.7 फीसदी पर आ गई थी, वह अब थोड़ी कम होकर 8.5 फीसदी पर है। लेकिन अभी भी यह काफी ज्यादा है।