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Pakistan: आसिम मुनीर को ज्यादा शक्तियां देने वाले कानून के खिलाफ हाईकोर्ट के चार जज, चुनौती देने की इजाजत नही
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Fri, 21 Nov 2025 12:33 PM IST
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इस्लामाबाद हाईकोर्ट
- फोटो : एएनआई
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पाकिस्तान में फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को ज्यादा शक्तियां प्रदान करने वाले संविधान के 27वें संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट के बाद देश की हाईकोर्ट के जजों ने भी आपत्ति जताई है। बताया गया है कि इस्लामाबाद हाईकोर्ट के चार जज शहबाज शरीफ सरकार की तरफ से लाए गए 27वें संविधान संशोधन को चुनौती देना चाहते थे, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ही इन जजों को इजाजत नहीं दी और इन सभी को हाल ही में बनाए गए संघीय संविधान अदालत (एफसीसी) जाने के निर्देश दिए।
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क्या है पाकिस्तान के संविधान का 27वां संशोधन, जिसे लेकर नाखुश जज?
पाकिस्तान में एक हफ्ते पहले ही संविधान के 27वें संशोधन को अंजाम दिया गया। संसद के दोनों सदनों में इसे मंजूरी मिलने के बाद अब देश में ‘चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज’ के नए पद के सृजन हुआ है। इसके अलावा फील्ड मार्शल को आजीवन पद पर बने रहने देने की शक्तियां मिल गई हैं। दूसरी तरफ सांविधानिक अदालत की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है। इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद से फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की शक्तियों में इजाफा हो गया है व अब आजीवन फील्ड मार्शल बने रहेंगे। यहां तक कि सेवानिवृत्ति के बाद भी वे रक्षा मामलों में सरकार के सलाहकार के तौर पर भूमिका निभाते रहेंगे और उन्हें किसी भी मामले में संरक्षण (इम्युनिटी) दी गई है।
पाकिस्तान में एक हफ्ते पहले ही संविधान के 27वें संशोधन को अंजाम दिया गया। संसद के दोनों सदनों में इसे मंजूरी मिलने के बाद अब देश में ‘चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज’ के नए पद के सृजन हुआ है। इसके अलावा फील्ड मार्शल को आजीवन पद पर बने रहने देने की शक्तियां मिल गई हैं। दूसरी तरफ सांविधानिक अदालत की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है। इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद से फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की शक्तियों में इजाफा हो गया है व अब आजीवन फील्ड मार्शल बने रहेंगे। यहां तक कि सेवानिवृत्ति के बाद भी वे रक्षा मामलों में सरकार के सलाहकार के तौर पर भूमिका निभाते रहेंगे और उन्हें किसी भी मामले में संरक्षण (इम्युनिटी) दी गई है।
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अब जानें- 27वें संशोधन को लेकर जजों ने क्या राय दी
पाकिस्तान के अखबार द डॉन की खबर के मुताबिक, इस्लामाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस मोहसिन अख्तर कयानी, जस्टिस बाबर सत्तार, जस्टिस सरदार एजाज इशाक खान और जस्टिस समन रिफत इम्तियाज ने संविधान के अनुच्छेद 184(3) के तहत अपनी आपत्तियां सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को भेजी थीं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि जिस अनुच्छेद 184(3) के तहत सर्वोच्च न्यायालय पहले मौलिक अधिकारों को लागू कराने की जिम्मेदारी लेता था, उससे अब वह शक्तियां ही छीन ली गई हैं।
द डॉन के सूत्रों के मुताबिक, यह सभी जज सुप्रीम कोर्ट के सामने निजी तौर पर याचिका के साथ पेश नहीं हुए थे। न ही इनमें से किसी ने भी अपना बायोमेट्रिक सत्यापन कराया था। हालांकि, वे संविधान के 27वें संशोधन को लेकर लंबे समय से चिंता जताते आ रहे थे और इसे पहले से तय न्यायिक स्वतंत्रता की प्रणाली को तोड़ने की बढ़ी हुई कोशिशें करार दे रहे थे। इन जजों का आरोप था कि संविधान के 26वें संशोधन से ही न्यापालिका की स्वतंत्रता को छीनने की कोशिश की जा रही थी और अब यह और तेज कर दी गई।
पाकिस्तान के अखबार द डॉन की खबर के मुताबिक, इस्लामाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस मोहसिन अख्तर कयानी, जस्टिस बाबर सत्तार, जस्टिस सरदार एजाज इशाक खान और जस्टिस समन रिफत इम्तियाज ने संविधान के अनुच्छेद 184(3) के तहत अपनी आपत्तियां सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को भेजी थीं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि जिस अनुच्छेद 184(3) के तहत सर्वोच्च न्यायालय पहले मौलिक अधिकारों को लागू कराने की जिम्मेदारी लेता था, उससे अब वह शक्तियां ही छीन ली गई हैं।
द डॉन के सूत्रों के मुताबिक, यह सभी जज सुप्रीम कोर्ट के सामने निजी तौर पर याचिका के साथ पेश नहीं हुए थे। न ही इनमें से किसी ने भी अपना बायोमेट्रिक सत्यापन कराया था। हालांकि, वे संविधान के 27वें संशोधन को लेकर लंबे समय से चिंता जताते आ रहे थे और इसे पहले से तय न्यायिक स्वतंत्रता की प्रणाली को तोड़ने की बढ़ी हुई कोशिशें करार दे रहे थे। इन जजों का आरोप था कि संविधान के 26वें संशोधन से ही न्यापालिका की स्वतंत्रता को छीनने की कोशिश की जा रही थी और अब यह और तेज कर दी गई।
हालांकि, इस पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जजों को बताया गया कि मामला उसके क्षेत्राधिकार में नहीं है, क्योंकि यह संवैधानिक संशोधन से जुड़ा है। कोर्ट ने सलाह दी कि इस याचिका की समीक्षा के लिए संघीय सांविधानिक अदालत का रुख किया जा सकता है, जो इन मामलों की सुनवाई के लिए ही गठित है। हालांकि, 27वें संशोधन को चुनौती देने वाले जजों का तर्क है कि जिस एफसीसी को सांविधानिक मामलों की सुनवाई के लिए बनाया गया है, उसका खुद का जन्म 27वें संशोधन से हुआ है। ऐसे में एफसीसी में उसके जन्म के लिए जिम्मेदार कानून को कैसे चुनौती दी जा सकती है।