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Shubhanshu Shukla: 'अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए निकलवाने पड़ते हैं दांत', शुभांशु शुक्ला ने साझा किए अनुभव
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई
Published by: पवन पांडेय
Updated Thu, 25 Dec 2025 02:04 PM IST
सार
भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने आईआईटी बॉम्बे में एक कार्यक्रम में अपना अंतरिक्ष अनुभव साझा किया है। इस दौरान उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष मिशन की तैयारी के दौरान उनके दो अक्ल दाढ़ निकलवाए गए थे, ताकि उड़ान के समय किसी तरह की दिक्कत न हो। उनके अनुसार, अंतरिक्ष यात्रियों के लिए दांतों की सेहत बेहद अहम होती है।
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शुभांशु शुक्ला, भारतीय अंतरिक्ष यात्री
- फोटो : ANI
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विस्तार
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पहुंचने वाले पहले भारतीय शुभांशु शुक्ला ने बुधवार को अंतरिक्ष यात्रियों के कड़े स्वास्थ्य मानकों पर रोचक जानकारी साझा की है। आईआईटी बॉम्बे में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष यात्रा पर जाने से पहले उन्होंने अपने दो अक्ल दाढ़ (विजडम टीथ) निकलवा दिए थे।
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'अंतरिक्ष में डेंटल सर्जरी करना संभव नहीं'
शुभांश शुक्ला ने आगे बताया कि अंतरिक्ष में मेडिकल इमरजेंसी से निपटने के लिए प्रशिक्षण तो दिया जाता है, लेकिन वहां डेंटल सर्जरी करना संभव नहीं है। इसलिए, यह सुनिश्चित किया जाता है कि भविष्य में दांतों की कोई समस्या न हो। उन्होंने बताया कि ग्रुप कैप्टन नायर ने अपने तीन और अंगद प्रताप ने चार दाढ़ निकलवाए हैं। शुभांशु ने मजाक में कहा कि यदि आप अंतरिक्ष यात्री बनना चाहते हैं, तो आपको अपनी अक्ल की दाढ़ (विजडम) छोड़नी होगी। बता दें कि, भारतीय वायु सेना के टेस्ट पायलट शुक्ला इसी साल एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रा पूरी कर लौटे हैं।
'अंतरिक्ष यात्री बनना है, तो अक्ल छोड़नी पड़ेगी'
उन्होंने कहा, 'हम किसी भी मेडिकल आपात स्थिति से निपटने की ट्रेनिंग लेते हैं, लेकिन एक चीज जो नहीं की जा सकती, वह है डेंटल सर्जरी। इसलिए लॉन्च से पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कि भविष्य में दांतों से जुड़ी कोई परेशानी न हो।' उन्होंने बताया कि चयन प्रक्रिया के दौरान कई उम्मीदवारों के दांत निकलवाए गए। इस पर मजाकिया अंदाज में शुक्ला ने कहा, 'अगर आपको अंतरिक्ष यात्री बनना है, तो अपनी 'अक्ल' छोड़नी पड़ेगी।'
गगनयान के लिए कड़ी जांच
शुभांशु शुक्ला ने बताया कि गगनयान मिशन के लिए चुने गए भारतीय वायुसेना के पायलटों को कठिन शारीरिक और मानसिक जांच से गुजरना पड़ा। ग्रुप कैप्टन प्रशांत नायर ने बताया कि 2019 के अंत में उन्हें रूस भेजा गया, जहां रूसी डॉक्टरों ने भी मेडिकल जांच की।
यह भी पढ़ें - अरावली पर कितना खतरा: कांग्रेस बोली- नई परिभाषा के बाद खतरे में 90% हिस्सा, संरक्षण को लेकर सरकार पर लगाए आरोप
टेस्ट पायलट ही क्यों बनते हैं अंतरिक्ष यात्री?
ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप ने बताया कि जिन देशों के पास मजबूत अंतरिक्ष कार्यक्रम हैं, जैसे अमेरिका, रूस, चीन, वे सभी टेस्ट पायलटों को ही अंतरिक्ष मिशन के लिए चुनते हैं। उन्होंने कहा कि टेस्ट पायलट अपने आप में बेहद चुनिंदा होते हैं। हर साल 200 वायुसेना अधिकारी टेस्ट पायलट बनने के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन सिर्फ पांच का चयन होता है। गगनयान कार्यक्रम के लिए 75 टेस्ट पायलटों पर विचार किया गया, जिनमें से सिर्फ चार चुने गए।
ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप ने स्पष्ट किया कि, 'हमें सीधे अंतरिक्ष में भेजने के लिए नहीं चुना गया है, बल्कि हमें जमीन पर रहकर सिस्टम के डिजाइनरों के साथ काम करने और मिशन को विकसित करने के लिए चुना गया है।' उन्होंने कहा कि टेस्ट पायलटों की ट्रेनिंग का 70 से 80 प्रतिशत हिस्सा अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण से मेल खाता है, इसलिए उन्हें इस भूमिका में जल्दी ढाला जा सकता है।
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'अंतरिक्ष में डेंटल सर्जरी करना संभव नहीं'
शुभांश शुक्ला ने आगे बताया कि अंतरिक्ष में मेडिकल इमरजेंसी से निपटने के लिए प्रशिक्षण तो दिया जाता है, लेकिन वहां डेंटल सर्जरी करना संभव नहीं है। इसलिए, यह सुनिश्चित किया जाता है कि भविष्य में दांतों की कोई समस्या न हो। उन्होंने बताया कि ग्रुप कैप्टन नायर ने अपने तीन और अंगद प्रताप ने चार दाढ़ निकलवाए हैं। शुभांशु ने मजाक में कहा कि यदि आप अंतरिक्ष यात्री बनना चाहते हैं, तो आपको अपनी अक्ल की दाढ़ (विजडम) छोड़नी होगी। बता दें कि, भारतीय वायु सेना के टेस्ट पायलट शुक्ला इसी साल एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रा पूरी कर लौटे हैं।
'अंतरिक्ष यात्री बनना है, तो अक्ल छोड़नी पड़ेगी'
उन्होंने कहा, 'हम किसी भी मेडिकल आपात स्थिति से निपटने की ट्रेनिंग लेते हैं, लेकिन एक चीज जो नहीं की जा सकती, वह है डेंटल सर्जरी। इसलिए लॉन्च से पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कि भविष्य में दांतों से जुड़ी कोई परेशानी न हो।' उन्होंने बताया कि चयन प्रक्रिया के दौरान कई उम्मीदवारों के दांत निकलवाए गए। इस पर मजाकिया अंदाज में शुक्ला ने कहा, 'अगर आपको अंतरिक्ष यात्री बनना है, तो अपनी 'अक्ल' छोड़नी पड़ेगी।'
गगनयान के लिए कड़ी जांच
शुभांशु शुक्ला ने बताया कि गगनयान मिशन के लिए चुने गए भारतीय वायुसेना के पायलटों को कठिन शारीरिक और मानसिक जांच से गुजरना पड़ा। ग्रुप कैप्टन प्रशांत नायर ने बताया कि 2019 के अंत में उन्हें रूस भेजा गया, जहां रूसी डॉक्टरों ने भी मेडिकल जांच की।
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टेस्ट पायलट ही क्यों बनते हैं अंतरिक्ष यात्री?
ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप ने बताया कि जिन देशों के पास मजबूत अंतरिक्ष कार्यक्रम हैं, जैसे अमेरिका, रूस, चीन, वे सभी टेस्ट पायलटों को ही अंतरिक्ष मिशन के लिए चुनते हैं। उन्होंने कहा कि टेस्ट पायलट अपने आप में बेहद चुनिंदा होते हैं। हर साल 200 वायुसेना अधिकारी टेस्ट पायलट बनने के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन सिर्फ पांच का चयन होता है। गगनयान कार्यक्रम के लिए 75 टेस्ट पायलटों पर विचार किया गया, जिनमें से सिर्फ चार चुने गए।
ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप ने स्पष्ट किया कि, 'हमें सीधे अंतरिक्ष में भेजने के लिए नहीं चुना गया है, बल्कि हमें जमीन पर रहकर सिस्टम के डिजाइनरों के साथ काम करने और मिशन को विकसित करने के लिए चुना गया है।' उन्होंने कहा कि टेस्ट पायलटों की ट्रेनिंग का 70 से 80 प्रतिशत हिस्सा अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण से मेल खाता है, इसलिए उन्हें इस भूमिका में जल्दी ढाला जा सकता है।
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