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चिंताजनक: वैश्विक समुद्री जल स्तर 1.4 मीटर तक बढ़ने का खतरा, तटीय शहरों के भविष्य पर मंडराता संकट
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: लव गौर
Updated Thu, 25 Dec 2025 05:38 AM IST
सार
शोध के अनुसार जब गर्म अटलांटिक महासागरीय पानी इस ग्राउंडिंग लाइन तक पहुंचता है तो बर्फ नीचे से तेजी से पिघलने लगती है। इससे बर्फ की चादर कमजोर होती है और उसके टूटने या पीछे हटने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों ने पाया कि लगभग 20,300 से 17,600 वर्ष पहले एनईजीआईएस का पहला बड़ा पीछे हटना इसी प्रक्रिया के कारण शुरू हुआ।
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प्रतीकात्मक तस्वीर
- फोटो : फ्रीपिक
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विस्तार
ग्रीनलैंड की सबसे विशाल बर्फीली धारा नॉर्थ ईस्ट ग्रीनलैंड आइस स्ट्रीम (एनईजीआईएस) पर महासागर की बढ़ती गर्मी का प्रभाव केवल एक क्षेत्रीय पर्यावरणीय बदलाव नहीं, बल्कि वैश्विक समुद्र-स्तर के लिए गंभीर खतरे का संकेत है। ताजा वैज्ञानिक शोध बताता है कि अतीत में भी एनईजीआईएस का तेजी से पीछे हटना मुख्य रूप से गर्म अटलांटिक महासागरीय पानी के कारण हुआ था, न कि केवल वायुमंडलीय तापमान बढ़ने से। यह समझ भविष्य के जलवायु मॉडल और समुद्र-स्तर की सटीक भविष्यवाणी के लिए निर्णायक मानी जा रही है।
एनईजीआईएस ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर से निकलने वाली सबसे बड़ी आइस स्ट्रीम है। इसमें संचित बर्फ की मात्रा इतनी अधिक है कि यदि यह पूरी तरह पिघल जाए तो वैश्विक समुद्र स्तर लगभग 1.1 से 1.4 मीटर तक बढ़ सकता है। यही कारण है कि वैज्ञानिक इसे ग्रीनलैंड की बर्फीली चादर की स्थिरता का सबसे संवेदनशील और निर्णायक हिस्सा मानते हैं। इसकी हलचल सीधे-सीधे तटीय शहरों, द्वीपीय देशों और करोड़ों लोगों के भविष्य से जुड़ी है।
न्यूकैसल विश्वविद्यालय और डरहम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में पिछले 20,000 वर्षों के दौरान एनईजीआईएस के व्यवहार का विश्लेषण किया गया। यह अवधि अंतिम हिमयुग के अंत से लेकर आधुनिक काल तक फैली हुई है। शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं।
शोध के अनुसार जब गर्म अटलांटिक महासागरीय पानी इस ग्राउंडिंग लाइन तक पहुंचता है तो बर्फ नीचे से तेजी से पिघलने लगती है। इससे बर्फ की चादर कमजोर होती है और उसके टूटने या पीछे हटने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों ने पाया कि लगभग 20,300 से 17,600 वर्ष पहले एनईजीआईएस का पहला बड़ा पीछे हटना इसी प्रक्रिया के कारण शुरू हुआ। उस समय वायुमंडलीय तापमान आज की तुलना में 15 से 20 डिग्री सेल्सियस कम था, यानी वातावरण बेहद ठंडा था। इसके बावजूद बर्फ का पिघलना यह साफ संकेत देता है कि उस दौर में गर्म महासागरीय पानी बर्फ के नीचे तक पहुंच चुका था।
15,000 साल पहले टूटी बर्फ की शेल्फ
करीब 15,000 वर्ष पहले हालात और अधिक गंभीर हो गए। गर्म अटलांटिक पानी आगे बढ़कर तैरती हुई बर्फीली शेल्फ के नीचे तक पहुंच गया। इसी समय वैश्विक स्तर पर हवा का तापमान भी तेजी से बढ़ने लगा। महासागर की गर्मी और बढ़ते वायुमंडलीय तापमान के संयुक्त प्रभाव ने बर्फ की शेल्फ को कमजोर कर दिया। नतीजतन शेल्फ टूट गई, ग्राउंडिंग लाइन अस्थिर हो गई और एनईजीआईएस ने बेहद तेजी से पीछे हटना शुरू कर दिया। यह अध्ययन ग्रीनलैंड के भूवैज्ञानिक और तलछटी रिकॉर्ड में दर्ज बर्फ की शेल्फ टूटने के शुरुआती और सबसे ठोस प्रमाणों में से एक माना जा रहा है।
ये भी पढ़ें: चिंताजनक: सदी के अंत तक 8000 प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा, जैव विविधता के अस्तित्व पर गंभीर संकट
आज की स्थिति डराने वाली
आज वैज्ञानिक फिर से वही संकेत देख रहे हैं। गर्म अटलांटिक महासागरीय पानी एक बार फिर ग्रीनलैंड की बर्फ के नीचे तक पहुंच रहा है। यह स्थिति अतीत से मिलती-जुलती है, जब बड़े पैमाने पर बर्फ पिघली थी और समुद्र-स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी। शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि मौजूदा जलवायु परिवर्तन की गति इसी तरह बनी रही, तो एनईजीआईएस भविष्य में फिर से अस्थिर हो सकती है और समुद्र-स्तर में तेज़ वृद्धि का जोखिम वास्तविकता बन सकता है।
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न्यूकैसल विश्वविद्यालय और डरहम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में पिछले 20,000 वर्षों के दौरान एनईजीआईएस के व्यवहार का विश्लेषण किया गया। यह अवधि अंतिम हिमयुग के अंत से लेकर आधुनिक काल तक फैली हुई है। शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं।
शोध के अनुसार जब गर्म अटलांटिक महासागरीय पानी इस ग्राउंडिंग लाइन तक पहुंचता है तो बर्फ नीचे से तेजी से पिघलने लगती है। इससे बर्फ की चादर कमजोर होती है और उसके टूटने या पीछे हटने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों ने पाया कि लगभग 20,300 से 17,600 वर्ष पहले एनईजीआईएस का पहला बड़ा पीछे हटना इसी प्रक्रिया के कारण शुरू हुआ। उस समय वायुमंडलीय तापमान आज की तुलना में 15 से 20 डिग्री सेल्सियस कम था, यानी वातावरण बेहद ठंडा था। इसके बावजूद बर्फ का पिघलना यह साफ संकेत देता है कि उस दौर में गर्म महासागरीय पानी बर्फ के नीचे तक पहुंच चुका था।
15,000 साल पहले टूटी बर्फ की शेल्फ
करीब 15,000 वर्ष पहले हालात और अधिक गंभीर हो गए। गर्म अटलांटिक पानी आगे बढ़कर तैरती हुई बर्फीली शेल्फ के नीचे तक पहुंच गया। इसी समय वैश्विक स्तर पर हवा का तापमान भी तेजी से बढ़ने लगा। महासागर की गर्मी और बढ़ते वायुमंडलीय तापमान के संयुक्त प्रभाव ने बर्फ की शेल्फ को कमजोर कर दिया। नतीजतन शेल्फ टूट गई, ग्राउंडिंग लाइन अस्थिर हो गई और एनईजीआईएस ने बेहद तेजी से पीछे हटना शुरू कर दिया। यह अध्ययन ग्रीनलैंड के भूवैज्ञानिक और तलछटी रिकॉर्ड में दर्ज बर्फ की शेल्फ टूटने के शुरुआती और सबसे ठोस प्रमाणों में से एक माना जा रहा है।
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आज की स्थिति डराने वाली
आज वैज्ञानिक फिर से वही संकेत देख रहे हैं। गर्म अटलांटिक महासागरीय पानी एक बार फिर ग्रीनलैंड की बर्फ के नीचे तक पहुंच रहा है। यह स्थिति अतीत से मिलती-जुलती है, जब बड़े पैमाने पर बर्फ पिघली थी और समुद्र-स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी। शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि मौजूदा जलवायु परिवर्तन की गति इसी तरह बनी रही, तो एनईजीआईएस भविष्य में फिर से अस्थिर हो सकती है और समुद्र-स्तर में तेज़ वृद्धि का जोखिम वास्तविकता बन सकता है।