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Study: आसमान में 'हीरे की धूल' के छिड़काव से कम होगी धरती की गर्मी, वैश्विक अर्थव्यवस्था से दोगुना आएगा खर्च

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ज्यूरिख Published by: निर्मल कांत Updated Thu, 24 Oct 2024 09:37 PM IST
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सार

Study: शोधकर्ता एस. के. केस्लिन ने बताया कि हीरे के कण सूर्य के प्रकाश व गर्मी को परावर्तित करने में सबसे ज्यादा प्रभावी थे। वायुमंडल में लंबे वक्त तक रह सकते थे। साथ ही रासायनिक रूप से निष्क्रिय होने से वे अम्लीय बारिश बनाने के लिए प्रतिक्रिया नहीं कर सकते।

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ग्लोबल वार्मिंग। - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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औद्योगीकरण के बाद भले ही दुनिया के हर क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिले हैं। हालांकि, इसका एक नकारात्मक प्रभाव हमारे पर्यावरण के ऊपर पड़ा है। कार्बन उत्सर्जन बढ़ने के कारण पृथ्वी का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिसका बुरा असर धरती के दोनों ध्रुवों पर देखने को मिल रहा है। आर्कटिक ग्लेशियर चार गुना ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है, जिसके चलते समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी हो रही है। इन सब के अलावा दुनियाभर के मौसम चक्र में भी अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कहीं पर सूखा पड़ रहा है, तो कहीं पर तबाही मचा देने वाली बारिश हो रही है। इस बीच, वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए अनोखा तरीका सुझाया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती के ऊपरी वायुमंडल में हर साल लाखों टन हीरे की धूल का छिड़काव करने से धरती को ठंडा रखने में मदद मिल सकती है। 

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वैज्ञानिकों का यह सुझाव किसी फिल्म की कहानी की तरह लग सकता है। लेकिन उनको लगता है कि यह काम कर सकता है। दरअसल, जलवायु वैज्ञानिकों, मौसम विज्ञानियों और पृथ्वी वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम ने अध्ययन किया। उनका यह अध्ययन 'जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स' में प्रकाशित हुआ है। इस टीम का नेतृत्व जलवायु विज्ञानी सैंड्रो वाटियोनी ने किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक तापमान तेजी से बढ़ रहा है। हम पहले ही महत्वपूर्ण बिंदु पर पहुंच चुके हैं। सिर्फ कार्बन उत्सर्जन घटाकर इस पर नियंत्रण संभव नहीं है। अध्ययन में वायुमंडल में एरोसोल इंजेक्ट करके गर्मी घटाने का समाधान दिया गया है। इस प्रक्रिया को जियोइंजीनियरिंग कहा जाता है। 
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वैज्ञानिकों ने हीरे का ही सुझाव क्यों दिया
शोधकर्ता एस.के. केस्लिन ने बताया कि हीरे के कण सूर्य के प्रकाश व गर्मी को परावर्तित करने में सबसे ज्यादा प्रभावी थे। वायुमंडल में लंबे वक्त तक रह सकते थे। साथ ही रासायनिक रूप से निष्क्रिय होने से वे अम्लीय बारिश बनाने के लिए प्रतिक्रिया नहीं कर सकते। अध्ययन में आगे कहा गया है कि विमान के जरिए हीरे की धूल को वायुमंडल में छोड़ा जाएगा। सूरज की किरणे इनसे टकराएंगी और अंतरिक्ष में लौट जाएंगी। इस प्रक्रिया से धरकी को गर्म होने से बचाया जा सकता है। 

वहीं, शोधकर्ता जे. ए. डायकेमा ने बताया, हर साल 50 लाख टन सिंथेटिक हीरे की धूल वायुमंडल में डालने से 45 वर्षों में तापमान 1.6 सेल्सियस तक ठंडा हो सकता है। यह कूलिंग इफेक्ट समुद्र के बढ़ते स्तर, तीव्र तूफान जैसे जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभाव को घटाने में मदद कर सकता है। जलवायु विज्ञानी वाटियोनी बताते हैं कि अध्ययन में अंतरिक्ष में आने वाली सौर किरणों को परावर्तित करने औ उन्हें धरती तक पहुंचने से रोकने के लिए सामग्री तलाशने पर फोकस किया गया। इस दौरान कैल्साइट, हीरा, एल्युमिनियम, सिलिकॉन कार्बाइड, एनाटेस और रूटाइल से 3डी मॉडल बनाया। इसमें प्रकाश परावर्तन क्षमता, कणों की वायुमंडल में बने रहने की समयसीमा और उनका आपस में चिपकना जैसे कारकों पर फोकस किया गया। इस दौरान हीरे का प्रदर्शन बेहतर रहा। 

इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं
विशेषज्ञ बताते हैं कि इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी चुनौती खर्च की होगी। सिंथेटिक हीरे के उत्पादन और वितरण पर अनुमानित खर्च 16,816 लाख करोड़ रुपये होगा। इसका मतलब है कि यह वैश्विक अर्थव्यवस्था का दोगुना है। इसके अलावा, हीरे की धूल के छिड़काव से प्राकृतिक प्रक्रियाओं में बड़े पैमाने पर दखल से अप्रत्याशित नतीजे देखने को मिल सकते हैं। इससे मौसम प्रणाली और बारिश पर भी असर पड़ सकता है। 

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