सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   World ›   Rest of World ›   Why controversy over Sanjay Mishra's tenure who showed the ED office to opposition leaders

Sanjay Mishra: विपक्षी नेताओं को ईडी का दफ्तर दिखाने वाले संजय मिश्रा के कार्यकाल पर क्यों मची थी रार

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Wed, 26 Mar 2025 04:09 PM IST
विज्ञापन
सार

Sanjay Mishra: ईडी के पूर्व निदेशक संजय कुमार मिश्रा को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का पूर्णकालिक सदस्य नियुक्त किया है। पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले संजय मिश्रा के कार्यकाल के दौरान कई बड़े नेताओं को प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ का सामना करना पड़ा था। 
 

Why controversy over  Sanjay Mishra's tenure who showed the ED office to opposition leaders
संजय मिश्रा - फोटो : ANI
loader
Trending Videos

विस्तार
Follow Us

ईडी के पूर्व निदेशक संजय कुमार मिश्रा को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का पूर्णकालिक सदस्य नियुक्त किया गया है। शीर्ष विपक्षी नेताओं को ईडी का दफ्तर दिखाने वाले मिश्रा के कार्यकाल को लेकर खूब रार मची थी। यहां तक कि उनके सेवा विस्तार से जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया था। चार बार सेवा विस्तार लेने वाले मिश्रा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था वे किसी भी सूरत में 15 सितंबर 2023 के बाद अपने पद पर नहीं रहेंगे। सर्वोच्च अदालत की टिप्पणियों पर खुशी जाहिर करने वाले विपक्षी नेताओं को केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने जवाब देते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी मना रहे लोग विभिन्न कारणों से 'भ्रम' में हैं। 
Trending Videos


मिश्रा के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम, मल्लिकार्जुन खरगे, पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कर्नाटक के डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार, राकांपा संस्थापक शरद पवार, महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सहित कई बड़े नेताओं को प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ का सामना करना पड़ा था। 
विज्ञापन
विज्ञापन


बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल 15 सितंबर 2023 को समाप्त हो गया था। चार बार सेवा विस्तार लेने वाले मिश्रा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ कर दिया था कि वे किसी भी सूरत में 15 सितंबर के बाद अपने पद पर नहीं रहेंगे। 'विपक्ष' के टॉप लीडर्स, 'ईडी' के पूर्व निदेशक मिश्रा को भुला नहीं सकेंगे। वजह, दर्जनों नेताओं को विभिन्न मामलों में पूछताछ के लिए ईडी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़े थे। 

1984-बैच के आईआरएस अधिकारी, संजय मिश्रा को 19 नवंबर, 2018 को दो साल के कार्यकाल के लिए ईडी प्रमुख नियुक्त किया गया था। उनका कार्यकाल 13 नवंबर, 2020 को समाप्त होना था, मगर केंद्र सरकार ने मिश्रा की नियुक्ति को लेकर नियमों में संशोधित कर दिया। नतीजा, ईडी निदेशक का कार्यकाल, दो से तीन वर्ष हो गया। नवंबर 2021 में मिश्रा के पद छोड़ने से पहले, राष्ट्रपति ने दो अध्यादेश जारी किए थे। इनमें से एक 'दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम', 1946 और दूसरा 'केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम', 2003 था। 
इनमें संशोधन होने के बाद ईडी व सीबीआई निदेशक का कार्यकाल, उनकी नियुक्ति से पांच साल की अवधि तक बढ़ाने का प्रावधान हो गया। 

यानी दो साल के कार्यकाल से अलग तीन साल के विस्तार की अनुमति दे दी गई। बाद में यह संशोधन, संसद में भी पारित हो गया। संजय मिश्रा को नवंबर 2021 में सेवा विस्तार मिल गया। इसके बाद नवंबर 2022 में दोबारा से मिश्रा को एक साल का सेवा विस्तार दे दिया गया। मिश्रा के सेवा विस्तार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला, जया ठाकुर, साकेत गोखले और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा आदि शामिल थे। 

जुलाई 2023 में इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की जमकर खिंचाई की थी। उस वक्त विपक्ष को केंद्र के खिलाफ बोलने का मौका मिल गया, जब सर्वोच्च अदालत ने मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को 'अवैध' करार दे दिया। साथ ही यह भी कह दिया कि मिश्रा 31 जुलाई तक पद पर रहेंगे। इसके बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में संजय मिश्रा के कार्यकाल को 15 अक्टूबर तक बढ़ाने की मांग की। सर्वोच्च अदालत ने 27 जुलाई को बड़े सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए मिश्रा का कार्यकाल 15 सितंबर तक बढ़ा दिया। 

केंद्र ने अपनी याचिका में यह दलील दी थी कि वैश्विक मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण निगरानी संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा समीक्षा के लिए उनकी सेवाओं की आवश्यकता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था, क्या विभाग में कोई और काबिल व्यक्ति नहीं है। संजय मिश्रा को 45 दिनों का सेवा विस्तार जो कि 15 सितंबर को खत्म होना था, दे दिया गया। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि इसके बाद मिश्रा के सेवा विस्तार के आवेदन पर विचार नहीं होगा। संजय मिश्रा, 15-16 सितंबर, 2023 की मध्यरात्रि से प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक पद पर नहीं रहेंगे। 

संजय मिश्रा के कार्यकाल के दौरान ईडी के निशाने पर आने वाले विपक्षी नेताओं में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पी.चिदंबरम, मल्लिकार्जुन खरगे, पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल, पूर्व सीएम भूपेश बघेल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कर्नाटक के डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार, राकांपा संस्थापक शरद पवार, महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती आदि शामिल रहे। रणदीप सुरजेवाला ने कहा था, प्रधानमंत्री मोदी ईडी जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ करते आ रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को प्रताड़ित किया गया है। 

ईडी के निशाने पर लालू प्रसाद यादव, मायावती, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और तेलंगाना के सीएम की बेटी के.कविता से लेकर कई दूसरे विपक्षी भी नेता रहे हैं। वे साढ़े चार साल तक ईडी के निदेशक के पद पर कार्यरत रहे। इस दौरान पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम, दिल्ली के तत्कालीन सीएम अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, मंत्री सत्येंद्र जैन सहित करीब दो दर्जन चेहरों को सलाखों के पीछे जाना पड़ा था। तमिलनाडु सरकार के मंत्री सेंथिल बालाजी, बंगाल के मंत्री पार्थ चैटर्जी और दर्जनभर से अधिक आईएएस अधिकारी भी संजय मिश्रा के कार्यकाल के दौरान जेल गए थे।

केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली कई विपक्षी पार्टियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी थी। इनमें टीएमसी, आप, आरजेडी, नेशनल कांफ्रेंस, केसीआर की पार्टी, सपा और उद्धव बालासाहेब ठाकरे (यूबीटी) आदि दल शामिल थे। इन सभी दलों के नेता, जांच एजेंसियों के निशाने पर रहे थे। अरविंद केजरीवाल ने कहा था, हमारे देश के प्रधानमंत्री ने ठान लिया है कि अगर बीजेपी को वोट नहीं दोगे और किसी दूसरी पार्टी को वोट दोगे तो उस सरकार को किसी भी हाल में काम नहीं करने दिया जाएगा। किसी राज्य में दूसरी पार्टी की सरकार बनती है तो उसके नेताओं के पीछे ईडी और सीबीआई छोड़ दी जाती है। 

SC: भ्रामक विज्ञापनों को लेकर सख्त हुआ सुप्रीम कोर्ट, दो महीने के भीतर शिकायत निवारण तंत्र बनाने का दिया निर्देश

पश्चिम बंगाल सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे पार्थ चटर्जी को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया था। शिवसेना के संजय राउत भी ईडी मामले में जेल गए थे। टीएमसी सांसद अभिषेक से भी पूछताछ हुई। महाराष्ट्र में पूर्व मंत्री नवाब मलिक, ईडी मामले में गिरफ्तार हुए थे। यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव का नाम भी माइनिंग घोटाले में आया था। पंजाब के पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी से अवैध रेत खनन मामले में ईडी ने पूछताछ की थी। चारा घोटाले में सजा होने के बाद लालू प्रसाद यादव पर रेलवे में जमीन लेकर नौकरी देने का मामले की जांच ईडी कर रही है। आरजेडी नेता सुनील सिंह, अशफाक करीम, फैयाज अहमद और पूर्व एमएलसी सुबोध राय भी जांच एजेंसी की रडार पर रहे। ममता बनर्जी के खिलाफ चिट फंड मामले की जांच ईडी ने की थी। राजस्थान के तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत के भाई पर भी जांच एजेंसी का शिकंजा कसा था। 

कांग्रेस नेता अजय माकन ने 2023 में कहा था, कई विपक्षी नेताओं के पीछे जांच एजेंसी पड़ी रहती है। नतीजा, वे भाजपा की शरण में चले गए। माकन ने एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था, आठ वर्ष में लगभग 225 चुनावी उम्मीदवारों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। उनमें से 45 फीसदी नेताओं ने भाजपा ज्वाइन की है। पार्टी छोड़ने वालों में हार्दिक पटेल, अश्विनी कुमार, आरपीएन सिंह, गुलाम नबी आजाद, जयवीर शेरगिल, ज्योतिरादित्या सिंधिया, सुनील जाखड़, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, कीर्ति आजाद, अदिति सिंह, कैप्टन अमरिंदर सिंह, उर्मिला मातोंडकर, हिमंत बिस्व सरमा, हरक सिंह रावत, जयंती नटराजन, एन बिरेन सिंह और दिवंगत अजित जोगी आदि शामिल हैं। 

Judge Cash Discovery Row: उपराष्ट्रपति धनखड़ बोले- कार्यपालिका और न्यायपालिका एक दूसरे के खिलाफ नहीं

अजय माकन का कहना था कि मोदी सरकार में ईडी ने जिन राजनेताओं के यहां पर रेड की है या उनसे पूछताछ की है, उनमें 95 फीसदी विपक्ष के नेता हैं। इसमें सबसे ज्यादा रेड तो कांग्रेस पार्टी के नेताओं के घरों और दफ्तरों पर की गई हैं। माकन ने कहा था, ईडी ने असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा, नारायण राणे, रमन सिंह, मुकुल रॉय और सुवेंदु अधिकारी, आदि नेताओं के पीछा क्यों छोड़ दिया, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। 
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

एप में पढ़ें

Followed