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PM E-Drive: पीएम ई-ड्राइव ने फेम-II से आधी सब्सिडी में रचा रिकॉर्ड, पहले ही साल में हुई 11.3 लाख ईवी बिक्री
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Tue, 16 Dec 2025 07:57 PM IST
सार
भारत की इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) नीति एक नए चरण में प्रवेश कर चुकी है। नए स्वतंत्र अध्ययन के अनुसार, पीएम ई-ड्राइव योजना ने अपने पहले वर्ष में फेम II की तुलना में प्रति वाहन आधी सब्सिडी के साथ 11.3 लाख इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में सहायता दी।
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विस्तार
भारत की इलेक्ट्रिक वाहन नीति अब केवल बाजार को प्रोत्साहित करने तक सीमित नहीं रही, बल्कि एक परिपक्व और टिकाऊ ढांचे की ओर बढ़ती दिख रही है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के ग्रीन फाइनेंस सेंटर द्वारा जारी एक नए स्वतंत्र अध्ययन के मुताबिक, पीएम ई-ड्राइव योजना ने अपने पहले ही वर्ष में 11.3 लाख इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री को सहारा दिया।
यह उपलब्धि तब और अहम हो जाती है, जब यह देखा जाए कि प्रति वाहन दी जाने वाली सब्सिडी, फेम-II योजना की तुलना में लगभग आधी रही। इसके बावजूद बिक्री में यह उछाल संकेत देता है कि भारत का ईवी बाजार अब सब्सिडी पर निर्भर शुरुआती चरण से आगे बढ़कर दीर्घकालिक एकीकरण की दिशा में कदम रख चुका है।
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फेम-II से पीएम ई-ड्राइव तक का बदलाव
सीईईडब्ल्यू-जीएफसी की रिपोर्ट बताती है कि पीएम ई-ड्राइव के तहत सालाना ईवी बिक्री, फेम-II की तुलना में 3.4 गुना अधिक रही। कम प्रोत्साहन के बावजूद तेज वृद्धि यह दर्शाती है कि ईवी सेक्टर में मांग अब कहीं अधिक मजबूत और आत्मनिर्भर हो चुकी है। फेम-II ने भारत में ईवी बाजार की नींव रखी थी। जबकि पीएम ई-ड्राइव उसी आधार को आगे बढ़ाते हुए दक्षता और निरंतरता पर जोर देती है।
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सीईईडब्ल्यू-जीएफसी की रिपोर्ट बताती है कि पीएम ई-ड्राइव के तहत सालाना ईवी बिक्री, फेम-II की तुलना में 3.4 गुना अधिक रही। कम प्रोत्साहन के बावजूद तेज वृद्धि यह दर्शाती है कि ईवी सेक्टर में मांग अब कहीं अधिक मजबूत और आत्मनिर्भर हो चुकी है। फेम-II ने भारत में ईवी बाजार की नींव रखी थी। जबकि पीएम ई-ड्राइव उसी आधार को आगे बढ़ाते हुए दक्षता और निरंतरता पर जोर देती है।
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तेजी से बदलता ऑटोमोटिव परिदृश्य
भारत का ऑटोमोटिव सेक्टर, जो जीडीपी में 7.1 प्रतिशत योगदान देता है और तीन करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देता है, तेजी से इलेक्ट्रिफिकेशन की ओर बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2014-15 में जहां ईवी बिक्री महज 2,000 यूनिट थी, वहीं वित्त वर्ष 2024-25 में यह बढ़कर करीब 19.6 लाख यूनिट तक पहुंच गई। कुल वाहन बिक्री में ईवी की हिस्सेदारी अब 7.49 प्रतिशत हो चुकी है। यह बदलाव न सिर्फ तकनीकी, बल्कि संरचनात्मक भी है।
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ईवी सेगमेंट में संरचनात्मक बदलाव
रिपोर्ट के अनुसार, शुरुआती वर्षों में ईवी बाजार में ई-रिक्शा का दबदबा था, लेकिन यह तस्वीर अब बदल चुकी है। वित्त वर्ष 2021-22 के बाद इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों में तेज उछाल आया और वित्त वर्ष 2024-25 तक 11.5 लाख से अधिक यूनिट की बिक्री के साथ यह सबसे बड़ा ईवी सेगमेंट बन गया।
यह बदलाव संकेत देता है कि ईवी अब केवल अनौपचारिक या व्यावसायिक उपयोग तक सीमित नहीं, बल्कि घरेलू और उद्यम स्तर पर भी तेजी से अपनाए जा रहे हैं। इसी तरह, कमर्शियल इलेक्ट्रिक चारपहिया वाहनों और ई-बसों में भी स्थिर लेकिन स्पष्ट वृद्धि देखी जा रही है।
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नीति निर्माताओं के सामने नई चुनौती
सीईईडब्ल्यू के फेलो और डायरेक्टर कार्तिक गणेशन के अनुसार, प्रति यूनिट कम प्रोत्साहन के बावजूद इतनी बड़ी बिक्री यह दिखाती है कि बाजार के कुछ हिस्से अपने दम पर खड़े होने लगे हैं। हालांकि, राज्यों और वाहन श्रेणियों के बीच अपनाने की गति में बड़ा अंतर यह भी बताता है कि आगे का रास्ता समान नीतियों से नहीं, बल्कि लक्षित हस्तक्षेपों और बुनियादी ढांचे की तैयारी से तय होगा।
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राज्यों और श्रेणियों में असमानता
राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे प्रदर्शन के बावजूद, ईवी अपनाने में क्षेत्रीय असमानता बनी हुई है। दिल्ली, गोवा और कर्नाटक जैसे उच्च आय वाले राज्यों में इलेक्ट्रिक दोपहिया और चारपहिया वाहनों की हिस्सेदारी कम आय वाले राज्यों की तुलना में कहीं अधिक है। इसके विपरीत, बिहार और त्रिपुरा जैसे राज्य अब भी बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहनों पर निर्भर हैं। पीएम ई-ड्राइव के तहत भी यह अंतर साफ दिखता है, जहां कुछ श्रेणियां लक्ष्य से आगे निकल गईं, जबकि कुछ काफी पीछे रहीं।
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आगे की राह और नीतिगत सुझाव
सीईईडब्ल्यू-जीएफसी का मानना है कि ईवी अपनाने की गति बनाए रखने के लिए 2030 तक 30 प्रतिशत ईवी लक्ष्य को औपचारिक रूप से राष्ट्रीय नीति ढांचे में शामिल करना जरूरी है। इसके साथ ही, श्रेणी-वार उप-लक्ष्य, राज्यों के बीच बेहतर तालमेल, डेटा पारदर्शिता और वास्तविक उपयोग आधारित प्रोत्साहन संरचना की जरूरत है।
अध्ययन यह भी सुझाव देता है कि पीएम ई-ड्राइव के तहत संसाधनों का आवंटन मांग के अनुसार लचीला होना चाहिए, ताकि भारत का ईवी ट्रांजिशन न सिर्फ तेज, बल्कि संतुलित और समावेशी बन सके।
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