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Bihar : सासाराम में रंजन की यूं गई जान, 40-42 डिग्री तापमान में 24 घंटे शरीर डिहाइड्रेट हुआ; उपाय नाकाफी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, रोहतास Published by: आदित्य आनंद Updated Fri, 09 Jun 2023 01:22 PM IST
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सार

Bihar News : सासाराम में पुल के गैप में फंसे बच्चे की जान जाने की एक वजह सिर्फ दम घुटना नहीं। कई वजह रहे। सिस्टम का भी दोष था और तमाशबीनों का भी। जो हुआ, वह गलत हुआ। 

Bihar: Child dies after getting trapped in a bridge in Sasaram, scorching heat, sunlight, body dehydrated
29 घंटे बाद बच्चे ने दम तोड़ दिया। - फोटो : अमर उजाला
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बिहार में हीट वेव का कई दिनों से अलर्ट है। यह पूरा हफ्ता इसी अलर्ट के बीच है। सासाराम में भी इस हफ्ते तापमान 40-42 डिग्री के आसपास रहा। इस तापमान पर सीमेंट-लोहे की गरम होने का अंदाजा खाली पांव सीमेंट की सड़क पर पैदल चलकर लगाया जा सकता है। और, इस हालत में मंगलवार को दिन के चार घंटे, बुधवार को 10 घंटे और गुरुवार को 10 घंटे मिलाकर करीब 24 घंटे 11 साल का बच्चा फंसा रहा सीमेंट-लोहे के गैप में। इतनी गर्मी में किसी को सीमेंट-लोहे की दीवारों से बने 6x6 के एक कमरे में रख दिया जाए तो वह डिहाइड्रेट होकर जान गंवा सकता है। यह बच्चा तो 24 घंटे धूप और बाकी करीब 28 घंटे उसी गर्मी से राहत की उम्मीद में छटपटाता रहा।

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दम घुटने से मौत मानी जाए तो क्यों?
प्रशासन के अनुसार बच्चे की मौत दम घुटने से हुई। यह दस्तावेजों में तो दर्ज हो सकता है, लेकिन बच्चे के शव की हालत देखने और अस्पताल ले जाने के लिए निकलते समय तक उसके जिंदा रहने के कारण सिर्फ दम घुटने को कारण मानना उचित नहीं लगता है। यहां बचाव के लिए किए गए उपायों को नाकाफी मानना मजबूरी है। बच्चा मंगलवार को दोपहर करीब 12 बजे के बाद से गायब था। उसके घर से पुल की दूरी को देखते हुए फ्लाईओवर के गैप में फंसने का समय करीब दो बजे माना जा सकता है। इस हिसाब से मंगलवार को वह चार घंटे भीषण धूप में रहा, फिर बुधवार सुबह आठ बजे से शाम छह बजे तक और गुरुवार को भी इसी समय तक धूप में रहा। 
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जिंदा रखने का उपाय भी नहीं हो सका
सीनियर फिजिशियन डॉ. दिवाकर तेजस्वी कहते हैं- “इस तापमान में इतनी गर्मी के बीच उसे कम-से-कम रोज तीन लीटर ओआरएस घोल देकर ही डिहाइड्रेट होने से बचाया जा सकता था।" इसपर बचाव दल का कहना है कि बच्चा इतना अंदर था कि यह संभव नहीं हो सका। तीन दिनों के दरम्यान उसके शरीर में कितना पानी गया, यह प्रशासन की ओर से कोई नहीं बता रहा। सिर्फ यही कहा जा रहा है कि बिस्कुट के साथ पानी की बौछार दी जा रही थी। बौछार से पानी कितना मुंह में गया होगा और कितना नाक में, यह भी समझा जा सकता है।

29 घंटे ऑपरेशन और भीड़ से भी संकट
बिहार के सासराम में सोन नदी पर बने पुल के पिलर और अप्रोच रोड के बीच गैप में 29 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला। रेस्क्यू ऑपरेशन NDRF के 25 और SDRF के 15 जवान पुलिस-प्रशासन के अफसरों के साथ बचाव में लगे थे। वहां पर 13 घंटे दो पोकलन मशीनें चल रही थीं। यह तो राहत एवं बचाव के लिए थी। इसके अलावा सैकड़ों लोग तमाशा देख रहे थे और मीडियाकर्मियों की संख्या भी सौ से पार हो गई थी। सीमेंट-लोहे के निर्माण के बीच एक फीट चौड़े गैप में ऑक्सीजन कितना कम होगा, गर्मी कितनी ज्यादा; उसपर कोलाहल भरी भीड़ का घेरा एक बीमार और हिलने-डुलने से लाचार बच्चे के लिए किस तरह परेशानी का कारण बन रहा होगा- कोई आम आदमी अंदाजा नहीं लगा सकता है। यहां आने वाली गाड़ियों ने ऑक्सीजन पर भी आफत किया होगा और गर्मी भी बढ़ाई होगी।

चोट और दर्द ने भी मौत तक पहुंचाया
दो पोकलन मशीनों से रास्ता नहीं बना, लेकिन उसके वाइब्रेशन से बच्चे को कितनी परेशानी हुई होगी! फिर स्लैब काटकर उसे निकाला गया। इसमें भी उसे चोट लगती रही होगी। यह सब भी तुरंत फैसला ले लिया गया होता तो शायद बच्चे का शरीर बर्दाश्त कर भी लेता। इतनी गर्मी, सांस लेने पर आफत, पानी नहीं, खाना नहीं और अंत में इस हालत से जर्जर हुए शरीर पर चोट झेलने के बाद रंजन को बाहर निकालकर अस्पताल तक तो ले जाया गया, लेकिन जान नहीं बचाई जा सकी।

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