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Bihar: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान बोले- राम की प्रतिष्ठा के बाद मिथिला के बगैर अयोध्या की कल्पना नहीं
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, दरभंगा
Published by: हिमांशु प्रियदर्शी
Updated Sat, 10 Feb 2024 06:12 PM IST
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सार
Governor Arif Mohammad Khan: राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि मिथिला ज्ञान का केंद्र है तो एक तरह से यह भारत को इसमें सामूहिक कर दिया गया है। इस धरती को ध्यान रखिएगा कि केवल ज्ञान की धरती भी नहीं, बल्कि कहना चाहिए कि पूरे ज्ञान की धरती है। इसमें कर्तव्य परायणता है और साथ में यह कर्म योग भी।

दरभंगा में एक कार्यक्रम में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान तथा अन्य
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
बिहार के दरभंगा के लहेरियासराय समाहरणालय के प्रेक्षागृह में शनिवार को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का आगमन हुआ। इस दौरान राज्यपाल आरिफ खान का मिथिला की धरती दरभंगा में मखाने की माला, पाग और मधुबनी पेंटिंग से सम्मान किया गया। राज्यपाल यहां एक समारोह ‘भारतीय संस्कृति एवं सारभौमिक महत्व’ विषय पर आयोजित सेमिनार में सम्मिलित होने दरभंगा आए हैं। इस मौके पर उन्होंने कहा कि पूरे राष्ट्र में उत्सव और खुशी का माहौल है। अयोध्या में राम प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या की कल्पना मिथिला के बगैर नहीं की जा सकती है। भारत की पहचान ही ज्ञान है। एक तरह से देखें तो मिथिला और भारत की पहचान ही ज्ञान है।

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राज्यपाल खान ने कहा कि मिथिला ज्ञान का केंद्र है तो एक तरह से यह भारत को इसमें सामूहिक कर दिया गया है। इस धरती को ध्यान रखिएगा कि केवल ज्ञान की धरती भी नहीं, बल्कि कहना चाहिए कि पूरे ज्ञान की धरती है। इसमें कर्तव्य परायणता है और साथ में यह कर्म योग भी। यह मिथिला की विशेषता है और ऐसी विशेष जगह पर इतने अच्छे लोगों के बीच में अपनी बात कहने का मौका मिला।
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उन्होंने कहा कि लेकिन आज का यूनान, आज का मिस्त्र, आज का वह क्षेत्र जहां सुमेरियन और लांनियन सभ्यता थी, उस प्राचीन सभ्यता से उनका संबंध कट गया। प्राचीन सभ्यता के क्या आदर्श मूल्य थे, उस भाषा को भी समझने में विशेषण लगे हुए हैं। भारतीय संस्कृति की खास बात यह है कि इसकी निरंतरता बनी हुई है। वे आदर्श, वे मूल्य जो आज से हजारों साल पहले भारतीयों के मानस को प्रेरित करते थे। आज भी वह जिंदा हैं और आज भी हमारे मानस को प्रेरित करते हैं। निरंतर जो है इसे भी समझने की जरूरत है।
राज्यपाल ने कहा कि बहुत दफा लोग कोट करते हैं कि इकबाल ने कहा- ‘सब मिट गए जहां से, बाकी मगर है अब तक निशां हमारा। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहां हमारा’। उन्होंने कहा कि अब इसमें क्या-क्या चीज स्वीकार की गई है। कुछ बात है कि हमारी संस्कृति हमारी हस्ती मिटती नहीं। वह क्या बात है, वह नहीं पता। वह हमें मिलती है और भी जगह मिलती होगी।
उन्होंने कहा कि मुझे भारत से प्रेम इसलिए नहीं है कि मैं भौगोलिक मूर्ति बनाकर उसकी पूजा-अर्चना करना चाहता हूं, मेरा सौभाग्य है कि मैं भारत भूमि में पैदा हुआ हूं। मुझे भारत से प्रेम इसलिए है कि भारत में उन आलौकिक शब्दों को जो उसके बच्चों की चेतना से निकले थे। उन विषम परिस्थितियों में भी बचा कर रखा है, जिसे कल का स्वर्णिम काल कहा जाता है। स्वर्णिम काल की शुरुआत कैसे हुई, इसकी शुरुआत हुई भारतीय पुस्तकों के अरबी में अनुवाद से। भारत ऐसा ज्ञान का केंद्र जहां दुनिया के विभिन्न देशों के लोग आएंगे। हमारे बारे में अध्ययन करने के लिए नहीं बल्कि खुद अपनी संस्कृति, अपने आदर्श, अपने मूल्य और अपने ज्ञान के अध्ययन के लिए आएंगे। उन्होंने कहा कि हमारे पास ऐसे टीचर होंगे, ऐसे गुरुजन होंगे कि दूसरे देशों के लोग अपना-अपना इतिहास और अपना ज्ञान जानने के लिए भारत आया करेंगे।