क्या बिहार में आज के बाद 'ऊंट' आ जाएगा पहाड़ के नीचे? सभी को उम्मीद- कम होगी सुशासन बाबू की अकड़
- संघ के जुड़े नेताओं के चेहरे खिले
- सबको उम्मीद कि कम हो जाएगी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अकड़
- सुशील मोदी का पर कतरना भी जरूरी था
विस्तार
आज बिहार के निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चौथी बार एनडीए के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। बतौर बिहार के मुख्यमंत्री वह सातवीं बार पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे। बिहार के मुख्यमंत्री के साथ राज्य के दो डिप्टी सीएम रेणु देवी और तारकेश्वर प्रसाद का भी शपथ ग्रहण होगा। नीतीश कुमार की इच्छा के बाद भी जेपी आंदोलन के दौर से निकले आरएसएस स्कूल के पुराने छात्र सुशील कुमार मोदी उप मुख्यमंत्री पद के लायक नहीं समझे गए। बिहार की राजनीति के जानकारों का मानना है कि यह पद ग्रहण समारोह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को काफी तसल्ली देगा। माना यह भी जा रहा है कि इसके बाद ऊंट के पहाड़ से नीचे आने की शुरुआत हो जाएगी।
नीतीश कुमार से अभी कुछ कहते नहीं बन रहा है
नैतिकता की दुहाई देने में कभी पीछे न रहने वाले नीतीश कुमार बिहार विधानसभा चुनाव-2020 के नतीजे आने के बाद से काफी झेंप रहे हैं। वह पिछले दिनों मीडिया से मुखातिब थे और उनकी झेंप साफ देखी जा रही थी। जद(यू) के कुछ पुराने नेता हैं। दो पूर्व राज्यसभा सदस्य भी हैं, वह तो देखना चाहते थे कि नीतीश कुमार चुनाव में 43 सीटें पाने के बाद क्या लाइन लेते हैं? हालांकि एक राज्यसभा सदस्य ने कहा कि नीतीश दिखावे का ढोंग करते हैं। इसका एक उदाहरण पहले जीतन राम मांझी को सीएम बनाना और फिर उन्हें पद से उतारकर दोबारा मुख्यमंत्री बनना था। दूसरा उदाहरण पूरी तरह यू टर्न लेकर महागठबंधन में जाना और उसे छोड़कर एनडीए में लौटना है। सही बात यह है कि उन्हें मुख्यमंत्री का पद ही नहीं स्वीकारना चाहिए। कभी नीतीश के करीबी रहे सूत्र का कहना है कि लेकिन मुख्यमंत्री का पद ऐसा है कि कोई भी नैतिकता ताक पर रखी जा सकती है।
संघ नेताओं के चेहरे खिले
भवानी सिंह, रत्नाकर, धर्मपाल सिंह, पवन शर्मा ये चार संघ के स्कूल से निकले सेनापति हैं। बिहार चुनाव में इन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। उत्तर प्रदेश के करीब 200 संघ के कार्यकर्ताओं, प्रचारकों और नेताओं ने पूरे बिहार में भाजपा को राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन सभी के चेहरे खिले हैं। यह अंदर की बात है कि नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने की सूचना मिलने के बाद इनकी खुशी दोगुनी हो गई है। बिहार के ही नीतीश सरकार में मंत्री रहे भाजपा के एक नेता का कहना है कि आखिर कब तक राज्य में सुशील कुमार मोदी ही एक पद पर बने रहेंगे। अब तो बिहार में कुछ कदम और आगे चलने का समय आया है। ईशारा साफ है कि यह विधानसभा चुनाव और बिहार में मुख्यमंत्री का पद दोनों नीतीश कुमार का आखिरी है।
क्या आज से हो जाएगी शुरुआत?
आज नई सरकार के गठन का दिन है। लेकिन आरसीपी सिंह और जद(यू) महासचिव केसी त्यागी जैसे नेताओं के मन में जश्न के साथ कई सवाल जरूर चल रहे होंगे। केसी त्यागी इसलिए कि उन्होंने 70 के दशक से राजनीति के चूल्हों पर कई पापड़ सिकते हुए देखा है। दांव-पेंच की समझ रखते हैं। आरसीपी सिंह इसलिए कि नीतीश कुमार इस समय सबसे करीबी नेताओं में एक हैं। दो नेता और हैं। वह पाले के बाहर बैठे हैं। पूर्व राज्यसभा सदस्य पवन वर्मा और चुनाव प्रचार अभियान के रणनीतिकार प्रशांत किशोर। इन लोगों को भी बड़ी राहत मिल रही होगी।
संघ के नेता भी इसे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का अच्छा कदम बता रहे हैं। उनका मानना है कि बिहार के मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार हैं और राज्य की सरकार भाजपा की आशाओं के अनुरूप चलेगी। यानी नीतीश कुमार की आंत में दांत की तरह भाजपा का एजेंडा चुभता रहेगा। अब वह बिहार में बड़े भाई से छोटे भाई के रुतबे में आ गए हैं और इस अभियान में भाजपा को शानदार सफलता मिली है। सही माने में यह सफलता प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के मार्ग दर्शन में राज्य के प्रभारी भूपेंद्र यादव और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस की है।
नीतीश कुमार को ही भाजपा ने क्यों स्वीकार किया मुख्यमंत्री?
भाजपा नेताओं के दो तर्क हैं। पहला तर्क है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनाव प्रक्रिया के दौरान ही स्थिति स्पष्ट कर दी थी। वैसे भी नीतीश कुमार अनुभवी नेता है। बिहार और बिहार के विकास के बारे में अच्छा समझ रखते हैं। 2005 से 2020 (2013-17 के समय को छोड़कर) तक दोनों दलों में लगातार विश्वसनीय रिश्ता बना रहा। मंत्रिपरिषद में पदों के बंटवारे को लेकर भी कोई दिक्कत नहीं आई। इसलिए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने से भाजपा की छवि सुंदर बनेगी।
दूसरा तर्क अंदरखाने से जुड़ा है। बताते हैं कि नरेंद्र मोदी के बाद राष्ट्रीय स्तर पर नीतीश कुमार ही भाजपा के सामने खड़ा होने वाला चेहरा हैं। बिहार में मोदी और केंद्र में मोदी यह भी ठीक बात नहीं है। नीतीश कुमार को किनारे रखकर विपक्ष को किसी तरह का अवसर देना भी अच्छा नहीं माना जाएगा। इसलिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नीतीश कुमार को भी नाराज करने के पक्ष में बिल्कुल नहीं है।
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