Bank Account : आपकी पहचान के कागज जहां-तहां नहीं कराएं कॉपी; बैंक में म्यूल अकाउंट खोल कर रहे खेल
Bihar News : केंद्रीय जांच ब्यूरो ने दो दिन पहले एक विज्ञप्ति जारी की थी, जिसपर यह खबर बनी कि बिहार से दो बैंकर्स गिरफ्तार किए गए हैं। यहां जानिए कि केनरा बैंक अधिकारी बिहार नहीं, यूपी से गिरफ्तार हुई। कैसे हम-आप आ रहे ऐसी धोखाधड़ी की चपेट में?
विस्तार
केनरा बैंक और एक्सिस बैंक ने अब तक अपने कर्मचारियों-अधिकारियों को यह सूचना औपचारिक तौर पर आंतरिक ईमेल से नहीं दी है कि उनके एक अधिकारी-कर्मचारी को केंद्रीय जांच ब्यूरो ने फर्जी खाता खोलकर साइबर अपराधियों की मदद के मामले में गिरफ्तार किया है। सीबीआई की प्रेस विज्ञप्ति में केनरा बैंक अधिकारी शालिनी सिन्हा को पटना से गिरफ्तार किए जाने की सूचना दी गई, इसलिए हंगामा बिहार में ज्यादा मचा। लेकिन, हकीकत यह है कि शालिनी की गिरफ्तारी यूपी से हुई। यह दो गिरफ्तारी क्यों हुई और कैसे बैंक खातों का खेल चल रहा है, यह समझने के लिए पढ़ें इस खबर को।
पहले शालिनी सिन्हा के बारे में जानें
सीबीआई की प्रेस विज्ञप्ति में शालिनी सिन्हा, केनरा बैंक पटना की जानकारी दी गई है। इस खेल में शालिनी सिन्हा से जुड़ी जानकारी पांच साल पहले की भी सामने आई है, इसलिए उसे पटना केनरा बैंक का सहायक प्रबंधक बताया गया। शालिनी करीब पांच साल से वाराणसी के चितईपुर शाखा प्रबंधक के रूप में सेवा दे रही है। वहीं से शालिनी को सीबीआई ने गिरफ्तार किया। एक्सिस बैंक के बिजनेस डेवलपमेंट एसोसिएट अभिषेक कुमार को भी फर्जी बैंक खाते, जिन्हें म्यूल एकाउंट कहते हैं- उसी की जालसाजी में गिरफ्तार किया गया है। सीबीआई के अनुसार, इन दोनों ने साइबर अपराधियों के लिए उनके दलालों से मिलकर म्यूल खाते अपने बैंक में खुलवाए। देश में एक रिकॉर्ड के अनुसार करीब साढ़े आठ लाख म्यूल बैंक खाते हैं। समझा जा सकता है कि यह दो कितनी छोटी मछलियां होंगे।
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म्यूल अकाउंट का क्या होता है खेल, जिसके खिलाड़ी निकले यह दो
म्यूल खाता का सीधा मतलब है, किसी और के नाम पर खाता खोलकर ऑपरेट करना। साइबर अपराधी बिहार के विभिन्न बैंकों में हर महीने 20 हजार से अधिक म्यूल अकाउंट खुलवा रहे हैं। इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर की रिपोर्ट के आधार पर बिहार में आर्थिक अपराध इकाई चिह्नित कर हर महीने करीब छह हजार ऐसे खातों को बंद करा रही है। ईओयू इस रिपोर्ट के आधार पर जांच के बाद आरबीआई से इसके लिए समन्वय कर रहा है। ईओयू की जांच में यह भी सामने आ रहा है कि बिहार में 15 ट्रस्ट अपने खातों को साइबर अपराधियों को दे रहे हैं। मतलब, यह खाते इनके हैं, लेकिन किराये पर साइबर अपराधियों को दिए जा रहे हैं। ऐसे खातों की जांच के दौरान पिछले दिनों 13 जालसाजों-दलालों को गिरफ्तार किया गया था, जिनकी निशानदेही पर यूपी और बिहार में शालिनी सिन्हा और अभिषेक कुमार को सीबीआई ने अब जाकर दबोचा है। इन दोनों की गिरफ्तारी साइबर क्राइम के लिए किराये पर खाता दिलाने में नहीं, बल्कि म्यूल खाते खोलने के मामले में हुई है। शालिनी के अधिवक्ताओं की तरफ से अदालत में कहा गया कि वह निर्दोष है, जबकि सीबीआई ने उसे इस आर्थिक अपराध में शामिल बताते हुए प्रमाण होने की जानकारी कोर्ट में दी है।
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कैसे खुलता है म्यूल एकाउंट, यह जानना जरूरी
आप अपनी पहचान से जुड़े दस्तावेजों को अगर संवेदनशील मानकर उनका विशेष ख्याल नहीं रखते तो आप ऐसे जालसाजों के खतरे में फंस जाते हैं। जालसाज उन जगहों से दस्तावेज जुटाते हैं, जहां लोगों के पहचान से जुड़े दस्तावेज की प्रति मिल जाए, खासकर आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि। एक बार आधार-पैन मिल गया तो उसी से तस्वीर स्कैन कर बनवाते हैं और फिर दलालों के जरिए बैंकर्स तक पहुंचकर उस नाम से खाता खुलवाते हैं। खाता खोलते समय ऑपरेशन जालसाज या दलाल के हाथ में होता है। जैसे ही ऐसा खाता खुलता है तो जालसाजों का नेटवर्क किसी भी फर्जी कॉल, ई-कॉमर्स या धमकी के जरिए इन खातों में पैसा मंगाते हैं। जैसे ही राशि आती है, कुछ ही समय बाद निकाल ली जाती है या दूसरे खाते में भेज दी जाती है। शालिनी और अभिषेक के मामले में ऐसे खातों में अमूमन 25-30 हजार आ रहे थे और तुरंत निकाल लिए जा रहे थे। इनकी जांच के दौरान सामने आया कि दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड के खातों में राशि ट्रांसफर की गई। शालिनी और अभिषेक पर भ्रष्टाचार निरोधी अधिनियम के धाराओं में केस दर्ज किया गया है।
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बैंक कैसे रखता है ऐसे खातों पर नजर
अगर किसी खाते मैं आमतौर पर यूपीआई से रकम आए और उसी दिन बहुत जल्द उसे निकाल लिया जाए या किसी दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया जाए तो कई बैंक ऐसी गतिविधि पर नजर रखने के लिए ऑटोमेटेड सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहे हैं। एचडीएफसी बैंक में ऐसे सॉफ्टवेयर का नाम सर्च इंजन ही रख दिया गया है। जैसे ही किसी खाते में बार-बार ऐसा ट्रांजेक्शन दिखता है तो सर्च इंजन उसकी निगरानी करने लगता है और फिर समेकित रूप से इसका डेटा बनाकर तकनीकी टीम को जांच के लिए दिया जाता है। यह टीम अगर देखती है कि सॉफ्टवेयर ने सही शिकार को खोजा है तो उस अकाउंट को ब्लॉक कर दिया जाता है। अमूमन ऐसे खातों को ऑपरेशनल कराने के लिए कोई नहीं आता है। कोई आया तो तमाम दस्तावेजों की जांच शाखा प्रबंधक के स्तर से की जाती है और अंतिम तौर पर उस जांच के सभी बिंदुओं का रिव्यू क्लस्टर हेड को करना होता है। यानी, एक तरह से क्षेत्रीय प्रबंधक स्तर तक जांच के बाद ही ऐसे बंद खाते वापस ऑपरेशन होते हैं। कई बैंकों ने म्यूल अकाउंट के खतरे को देखकर ही नए खाते को खोलने में दस्तावेज और बाकी प्रक्रिया को जटिल बना दिया है, जिसके कारण आम उपभोक्ताओं को भी कई तरह की जांच से गुजरना होता है।
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