Bhumihar Brahmin: बाभन हैं 'भूमिहार' नहीं, इस बात पर बिहार में क्यों नहीं थम रहा हंगामा? सिन्हा का मरहम नाकाफी
Bihar News : दो दिन पहले बतौर राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री बिहार के उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने अपनी जाति की एक आवाज पर ध्यान दिया। मौके पर मरहम भी लगाया। मगर, बिहार की बाभन जाति का हंगामा थम नहीं रहा। शुरुआत दो साल पहले हुई। अंत कब होगा?
विस्तार
केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, बिहार के उप मुख्यमंत्री विजय सिन्हा, जेल में बंद चर्चित बाहुबली विधायक अनंत सिंह, अपने भाई की हत्या का सदमा झेलते हुए कल देवघर बंद कराने वाले भाजपा नेता आशुतोष... सब बोलचाल की भाषा में 'भूमिहार' हैं। इनकी जाति की आबादी 2023 की जातीय जनगणना में हिंदुओं के अंदर आठवें नंबर पर बताई गई- करीब 2.89 प्रतिशत। लेकिन, दो साल पहले इस जाति के वास्तविक नाम में की गई छेड़छाड़ पर अब भी हंगामा चल रहा है। 2027 में जब जनगणना होगी और जातियों का नाम आएगा, तब भी बिहार में हंगााम हो सकता है। इससे पहले चूंकि राज्य सरकार ने ही विवाद की शुरुआत की थी तो फैसला उसे ही लेना है। भाजपाई उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने मरहम तो लगाया है, लेकिन वह नाकाफी है। इंतजार है, महागठबंधन सरकार के समय मिले 'घाव' पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सर्जरी की। इस स्टोरी में जानते हैं मौजूदा विवाद से लेकर इतिहास तक की बात, ताकि समझ सकें- बिहार में चल क्या रहा है?
जातीय जनगणना के समय लगा घाव
बिहार में जातीय जनगणना कराने का फैसला 2020 के जनादेश से बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में हुआ था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे। जातीय जनगणना हुई 2023 में, जब सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार आई थी। इस जातीय जनगणना में बिहार की अगड़ी जातियों को घाव मिले। कई जातियों की उप जातियों और यहां तक के गोत्र को भी अलग जाति के रूप में कोड दे दिया गया। 'अमर उजाला' ने तब लगातार इस मुद्दे को उठाया। हरेक पर अलग खबर प्रकाशित की। सारे तथ्य रखे। बाकी जातियां तो शांत हो गईं, लेकिन पहली पंक्ति में जिन दिग्गज नेताओं का जिक्र है; उनकी जाति ने झंडा थाम लिया।
इन लोगों ने मुखर होकर भले कुछ नहीं किया, लेकिन इनकी जाति के कई सामाजिक कार्यकर्ता कोर्ट में सरकार के पीछे पड़ गए। सबसे कड़ा विरोध 1931 की अंतिम जातीय जनगणना में बाभन / भूमिहार ब्राह्मण के रूप में दर्ज जाति को 'भूमिहार' घोषित करने को लेकर था। इन्हें ब्राह्मण से अलग रखा गया और कोड जारी करते समय 'भूमिहार' लिखकर इनकी ब्राह्मण पहचान भी छीन ली गई। यह घाव ऐसा था कि इस जाति के लोगों ने पटना हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ने में कसर नहीं छोड़ी। हालत यह रही कि जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर आननफानन में तत्कालीन महागठबंधन सरकार ने आरक्षण का दायरा बदला भी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से अंतत: रोक लग गई।
अब जाति का यह जिन्न जागा तो क्यों?
जाति का नाम बदलने ही नहीं, जातियों के वर्गीकरण से लेकर जातीय जनगणना (जिसे सरकार सर्वे कहती है) के अधिकार तक पर सवाल सुप्रीम कोर्ट गया था। सुप्रीम कोर्ट में अब भी वह लड़ाई जारी है। मतलब, जिन्न सोया नहीं था। हां, सुर्खियों में इस समय इसलिए आ गया है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में और मजबूत होकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनने के बाद राज्य सवर्ण आयोग ने एक पत्र जारी कर 'भूमिहार ब्राह्मण' लिखना सही बता दिया। इसके बाद सवर्ण आयोग के अंदर ही गतिरोध शुरू हो गया। कहा गया कि सदस्यों से राय लिए बगैर ही यह पत्र जारी किया गया। फिर आम सहमति बनाने की कोशिश हुई, लेकिन आयोग इसपर दो टुकड़ों में बंट गया। इसके बाद सवर्ण आयोग ने राज्य सरकार को अंतिम फैसला लेने कहा।
इसी बीच, विजय सिन्हा का यह आदेश आया
यह हंगामा चल ही रहा था और साथ-साथ बाभन जाति के लोग सवर्ण आयोग को लेकर सवाल कर ही रहे थे कि राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री के रूप में एक जनसंवाद के दौरान उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने विभागीय अधिकारियों को स्पष्ट आदेश दे दिया कि जमीन के दस्तावेजों में पहले की तरह 'भूमिहार ब्राह्मण' ही दर्ज करें, भूमिहार नहीं। मुजफ्फरपुर में यह जनसंवाद था, जहां एक फरियादी ने जाति की बात उठाई। सिन्हा ने कहा कि यहां जाति की बात नहीं होगी, लेकिन साथ ही यह भी आदेश दे दिया कि जाति का नाम नहीं बदलें। मतलब, सिर्फ भूमिहार न लिखकर पहले की तरह 'भूमिहार ब्राह्मण' ही दर्ज करें। जहां गलती हुई है, वहां भी सुधारें। राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री विजय कुमार सिन्हा का यह आदेश गजट नोटिफिकेशन या अधिसूचना के रूप में आए, अब इसका इंतजार हो रहा है।
अब यह भी जानिए, कब-कैसे चिह्नित हुई यह जाति
अंग्रेजों के जमाने में हुई जातीय जनगणना (1931) में भूमिहार ब्राह्मण या बाभन के रूप में दर्ज की गई जाति के लोग सन् 1872 के पहले ऐतिहासिक रिकॉर्ड में ब्राह्मण लिखे गए हैं। बिहार की जातीय जनगणना के दौरान 'अमर उजाला' ने ऐसे दो दर्जन पन्नों के साथ यह तथ्य सामने लाया था कि इस जाति को ब्राह्मण और आगे भूमिहार ब्राह्मण या बाभन कब से और क्यों लिखा गया। गुलामी के समय 1931 की अंतिम जातीय जनगणना के बावजूद भूमिहार ब्राह्मण खुद को ब्राह्मण से अलग नहीं मानते हैं और अन्य ब्राह्मणों के साथ इनका बेटी-रोटी का रिश्ता भी है। लेकिन, ब्राह्मण इन्हें बोलचाल की भाषा में 'बाभन या भूमिहार' ही बोलते हैं। सवर्ण आयोग के अंदर का ताजा विवाद इसी पर है।
संग्रहालय विज्ञानी डॉ. आनंदवर्द्धन बिहार की जातीय जनगणना के समय 'अमर उजाला' से कही बातों को लेकर आज भी कागजातों के साथ तथ्य सामने लाने को तैयार हैं। डॉ. आनंदवर्द्धन के अनुसार- "अंग्रेजों ने शुरुआती दस्तावेजों में मिलिट्री ब्राह्मण लिखा। अंग्रेजों ने ही 1872 में पहली बार जमींदार और सैन्य क्षमतावान ब्राह्मण के लिए 'भूमिहार ब्राह्मण' शब्द का प्रयोग किया। 'फूट डालो और राज करो' की नीति काम कर गई और ब्राह्मण और बाभन धीरे-धीरे खुद को अलग दिखाने लगे, हालांकि बेटी-रोटी का संबंध बनता रहा। 1931 की जातीय जनगणना में अंग्रेजों ने 'भूमिहार ब्राह्मण / ब्राह्मण' शब्द जाति के रूप में दर्ज कराया और यही आज तक के सारे रिकॉर्ड में है, क्योंकि संविधान की मूल भावना के मद्देनजर विभाजनकारी नीति से बचने के लिए जातीय जनगणना को गलत माना जाता रहा।"
'भूमिहार ब्राह्मण' के लिए लड़ने वाले क्या दे रहे तर्क
शैडो गवर्नमेंट बिहार के स्वास्थ्य मंत्री और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. रत्नेश चौधरी कहते हैं कि जाति का नाम बदलना इतना आसान नहीं है। वह कई उदाहरण देते हैं। कहते हैं- "1784 में जब ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध युद्ध आरंभ हुआ तो नेतृत्वकर्ता फतह बहादुर शाही थे। फतेह बहादुर शाही से ही आज का हथुआ राज है। पूर्वज ब्राह्मण दर्ज थे, 1931 के अनुसार यह लोग भूमिहार ब्राह्मण हैं। इसी तरह 'गोल्डन बुक ऑफ इंडिया' में बेतिया और काशी के राजा ब्राह्मण बताए गए हैं। इनकी वर्तमान जाति भूमिहार ब्राह्मण है। दरअसल, 1901 में जब अंग्रेजों ने पुरोहित-कर्मकांडी ब्राह्मण और गैर-पुरोहित ब्राह्मण के बीच भेद किया, तब बाभन / भूमिहार ब्राह्मण संज्ञा का उल्लेख हुआ। इसके बाद, 1911, 1921 और 1931 की जनगणना रिपोर्ट में अंग्रेजों ने 'भूमिहार ब्राह्मण' शब्द को स्थापित कर दिया।"
कोर्ट में 'भूमिहार ब्राह्मण' के लिए लड़ रहे डॉ. रत्नेश आगे यह कहते हैं- "कन्नौज के ब्राह्मण कान्यकुब्ज, तिवार ग्राम (जबलपुर ) के ब्राह्मण तिवारी सरनेम वाले हो गए तो प्रतापी राज्य मगध के ब्राह्मण कहां गए? यही तो भूमिहार ब्राह्मण हैं। मिथिला वाले मैथिल ब्राह्मण तो अंग प्रदेश के अयाचक ब्राह्मण कहां गए? यही तो भूमिहार ब्राह्मण हैं। उत्तर प्रदेश के त्यागी, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ आदि के नियोगी, महाराष्ट्र के चितपावन, देसाई सरनेम आदि भी यही हैं। पंजाब, हिमाचल के मोहियाल ही भूमिहार ब्राह्मण हैं।"
भूमिहार ब्राह्मण की राजनीतिक हैसियत देखें
बहुत नाम की चर्चा न भी करें तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की केंद्र सरकार में जनता दल यूनाईटेड कोटे से बिहार के कद्दावर नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह और भारतीय जनता पार्टी कोटे के राज्य के चर्चित बाभन नेता गिरिराज सिंह मंत्री हैं। बिहार में भी उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विजय कुमार सिन्हा हैं, जो इसी जाति के हैं। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव का गणित भी देखें तो राजग में अगड़ी जातियों के विधायकों ने नया रिकॉर्ड बनाया। पिछली बार से 20 अधिक अगड़े विधायक चुने गए और इनकी संख्या 70 है इस बार। इनमें राजपूत 32 के बाद भूमिहार ब्राह्मण 23 और ब्राह्मण 14 हैं। बाकी, एक कायस्थ नितिन नवीन हैं, जिन्हें भाजपा का कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के बाद राज्यसभा भेजे जाने की तैयारी है।
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