क्या बिहार में प्रशांत किशोर बन जाएंगे नीतीश कुमार की चुनौती, जदयू बोली मुंह की खाएंगे!
- पूरे बिहार में खड़ा करेंगे जन जागरण, पूर्व सांसद पवन वर्मा कर रहे हैं समर्थन
- पवन वर्मा ने कहा अभी इसे राजनीति से मत जोड़िए, बाद में देखेंगे
- प्रशांत किशोर और पवन वर्मा दोनों को निष्कासित कर चुकी है जद (यू)
विस्तार
राजनीति पर नजर रखने वालों को लग रहा है कि प्रशांत किशोर के पास समय है और इस तरह से वह धीरे-धीरे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती बन जाएंगी।
चाहते हैं बिहार का विकास
जद (यू) के निष्कासित राज्यसभा सांसद पवन वर्मा ने कहा कि प्रशांत किशोर ने मंगलवार को अपनी योजना के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि बिहार में सकारात्मक परिवर्तन हो तो वह भला इसका विरोध क्यों करेंगे? वर्मा ने कहा कि बिहार में परिवर्तन आए, राज्य विकास करे, युवा आगे बढ़ें, किसान समृद्ध हों, कल कारखाने लगे, शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ हो, देश का अग्रणी राज्य बने। उन्होंने कहा कि हम तो यही चाहते हैं।
उनका कहना है कि इस तरह के हर अभियान को हमारा समर्थन है। पवन वर्मा ने कहा कि प्रशांत किशोर लोगों के बीच में जाएंगे। बिहार की बात करेंगे। लोगों में जागरुकता फैलाएंगे। उन्हें अपने साथ जोड़ेंगे। उन्होंने इसे किसी राजनीतिक अभियान का नाम नहीं दिया है। इसलिए आप भी अभी राजनीति से मत जोड़िए। पूर्व राज्यसभा सांसद ने कहा कि जब एक करोड़ लोग जुड़ जाएंगे, तब देखा जाएगा कि आगे क्या करना है।
संभल कर खेल रहे हैं प्रशांत
चुनाव प्रबंधन के रणनीतिकार ने भले ही कोई नई पार्टी न बनाई हो, किसी राजनीति अभियान से न जोड़ा हो, लेकिन उनका प्रयास राजनीतिक पहल के जरिए ही बिहार को बदलने का है।
दरअसल प्रशांत किशोर को पता है कि शुरुआत में ही नीतीश कुमार पर राजनीतिक हमला बोलना कितना खतरनाक हो सकता है। वह भी उस बिहार में जहां जातिवाद की राजनीति ने 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के धर्म की राजनीति को पछाड़ दिया था।
इसलिए प्रशांत किशोर 15-16 फीसदी वोट पर अपना दम ठोकने वाले नीतीश कुमार के सामने बिना तैयारी के खड़ा नहीं होना चाहते। वह अभी से राजद, लोजपा, भाजपा और अन्य दलों के निशाने पर नहीं आना चाहते।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि प्रशांत किशोर ने विकास में नीतीश कुमार के राज में विकास होने की बात कहते हुए बिहार में परिवर्तन लाने का मुद्दा उठाया है।
बनेंगे नीतीश कुमार के गले का कांटा
अरविंद केजरीवाल और प्रशांत किशोर की कोशिश में कोई बड़ा अंतर नहीं है। सूचना के अधिकार कार्यकर्ता के माध्यम से भ्रष्टाचार के विरोध में पहचान बनाने वाले केजरीवाल ने दिल्ली में परिवर्तन का उद्देश्य साधने के लिए भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया था। जनलोकपाल आंदोलन के बल पर दिल्ली आंदोलित हुई थी।
चेहरा महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता और साफ सुथरी छवि के अन्ना हजारे का था। अन्ना स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की वेश भूषा में दूसरी आजादी की थीम पर जंतर-मंतर पर आ धमके। केजरीवाल सेकेंड लेफ्टिनेंट के तौर पर आगे बढ़े, छवि बनाई, प्रतीक बने और राजनीति में उतरने की घोषणा कर दी।
प्रशांत किशोर की राजनीतिक पगडंडी थोड़ा अलग है। वह राजनीति में चुनाव प्रबंधन रणनीतिकार रहे हैं, हैं। कभी राजनीतिक धरना, मांग, प्रदर्शन में शामिल नहीं हुए हैं। राजनीति में आने, जद (यू) का उपाध्यक्ष बनने से पहले वह किसी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं रहे हैं। उनकी ख्याति कुशल राजनीतिक चुनाव प्रबंधन रणनीतिकार की ही है।
जद (यू) से निकाले जाने के बाद वह अपनी इस छवि को अगले फेज में ले जाना चाहते हैं। लोगों से जुड़कर, जमीन तैयार कर वह भविष्य में बिहार में परिवर्तन का चेहरा बन सकते हैं। अच्छी बात यह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल उनके अच्छे मित्र हैं।
प्रशांत किशोर का कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से भी संवाद है।
क्या कहते हैं जद (यू) के केसी त्यागी?
दिल्ली में केसी त्यागी मुख्यमंत्री और जद(यू) के प्रमुख नीतीश कुमार की आवाज हैं। त्यागी का कहना है कि प्रशांत किशोर न नेता थे, न राजनीतिक दल में थे, न राजनीति में कुछ किए हैं, न ही कोई योगदान है। वह केवल चुनाव प्रचार की रणनीति में पैसा लेकर हिस्सा बनते थे।
लेकिन हमारे नेता ने उन्हें खूब मान दिया, पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया और अब प्रशांत किशोर का दिमागी संतुलन बिगड़ गया है। वह उसी नीतीश कुमार को चुनौती देने निकलेंगे।
त्यागी का कहना है कि वे मुंह की खाएंगे। त्यागी कहते हैं पवन वर्मा भी उनके साथ हैं। दोनों जद (यू) से निष्कासित हैं, लेकिन दो राजनीति में समाप्त प्राय हो चुके लोग, क्या कर लेंगे? समय का इंतजार कीजिए।
क्या आसमान से तारे तोड़ पाएंगे प्रशांत किशोर?
यह तो समय बताएगा। केसी त्यागी को उम्मीद कम है। त्यागी का कहना है कि बिहार में चुनाव दो मुद्दों पर होगा। एक नीतीश कुमार के राज पर ध्रुवीकरण होगा या फिर दूसरा मुद्दा नीतीश कुमार के विरोध का रहेगा। यदि प्रशांत किशोर विरोध की मुहिम में शामिल होकर राजद के लालू प्रसाद के साथ गए, तो उनकी बची-खुची छवि भी खत्म हो जाएगी।
इसके लिए केसी त्यागी एक वाकया सुनाते हैं। त्यागी कहना है कि वह बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के सिलसिले में अरविंद केजरीवाल को पटना ले गए थे। केजरीवाल लालू प्रसाद यादव से दूरी बनाना चाहते थे, लेकिन लालू ने ही उठकर गले लगा लिया। इतने भर से केजरीवाल का चेहरा उतर आया था। अब आप समझ लीजिए।
त्यागी का कहना है कि बिहार की राजनीति में जातिवाद चरम पर है। चुनाव में हावी रहती है। बिहार की राजनीति को ढंग से समझने वालों का भी कहना है कि प्रशांत किशोर का रास्ता असंभव नहीं कहा जा सकता। बिहार ने हमेशा देश के बदलाव में भूमिका निभाई है। जेपी आंदोलन को याद कीजिए। लेकिन ऐसा होना कठिन जरूर है।