बजट 2020: एक्सपर्ट की राय, मिडिल क्लास को नहीं मिली कोई खास राहत
सदी का पहला बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश कर चुकीं हैं। इस बजट से मिडिल क्लास को बहुत आस थी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती और बढ़ती महंगाई का असर उन पर पड़ रहा था। लेकिन बजट भाषण के बाद मिडिल क्लास को निराशा ही हाथ लगी है। जहां एक तरफ करदाताओं पर दोहरी मार पड़ी है, वहीं इससे उनके द्वारा किए निवेश पर भी असर पड़ेगा। एलआईसी और आईडीबीआई में विनिवेश करने का फैसला भी लोगों को रास नहीं आ रहा है। एक्सपर्ट की माने तो इन सभी का प्रभाव कही न कहीं देखने को मिलेगा।
बचत प्रभावित हुई तो निवेश के लिए पैसा कहां से आएगा
सरकार ने राजकोषीय घाटा बढ़ाकर निवेश और खपत को बढ़ावा दिया है, लेकिन आयकर छूट के लिहाज से सही फैसला नहीं लिया है। इससे बचत योजनाएं प्रभावित होंगी। आज बचत नहीं करेंगे तो कल निवेश के लिए पैसा कहां से लाएंगे।
आर्थिक सर्वे में नॉमिनल जीडीपी 10 फीसदी रहने का अनुमान था। इसमें छह फीसदी जीडीपी और चार फीसदी राजकोषीय घाटा है। जाहिर है कि अर्थव्यवस्था इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ेगी, जितनी पहले उम्मीद थी। कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया है, लेकिन यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि इस क्षेत्र में निवेश का लाभ ट्रेडर्स के हाथों में सीमित न रह जाए। किसानों को उनके उत्पादों का बेहतर दाम मिलना चाहिए। आयकर छूट से जुड़े बदलाव से बचत योजनाओं को झटका लग सकता है। सरकार ने आयकर की पुरानी या नई दरें चुनने का विकल्प दिया है, लेकिन जो नया विकल्प चुनेगा उसे छूट का लाभ नहीं मिलेगा। ऐसे में वह जमा योजनाओं में क्यों पैसा लगाएगा।
टैक्स में छूट लंबी अवधि की बचत को प्रोत्साहित करने के लिए दी जाती है। छूट नहीं मिलेगी तो दीर्घ अवधि की बचत प्रभावित होगी। इसी बचत से विकास के लिए पैसा आता है। सरकार एलआईसी और आईडीबीआई में हिस्सेदारी बेचकर पैसा जुटाएगी। कुछ सफल संचालित हो रही कंपनियां भी बेची जाएंगी। इससे सरकार पैसा जुटाकर दूसरी योजनाओं में लगाएगी। एक्सपोर्ट एग्रीमेंट पर पुनर्विचार करने का फैसला अच्छा है। कई विदेशी कंपनियां भारत में अपने प्रोडक्ट को डंप कर रही हैं। इससे मैन्युफैक्चरिंग प्रभावित हो रही है। रोजगार पैदा करने के लिए स्टार्टअप, स्किल डेवलेपमेंट और टैक्नोलॉजी के अपग्रेडेशन पर खास जोर दिया है। इससे फार्मा, टेक्सटाइल, ऑटो जैसे श्रम आधारित उद्योगों में रोजगार सृजन होगा। एमएसएमई, हेल्थ केयर और पर्यटन के लिए भी बजट अच्छा है।
----बृंदा जागीरदार, अर्थशास्त्री (लेखिका बैंकिंग व वित्तीय मामलों की जानकार)
करदाताओं पर दोहरी मार निवेश को भी झटका
अमरीश गुप्ता, आयकर मामलों के जानकार
कपड़ा कारोबारियों के लिए झुनझुना
घरेलू कपड़ा उद्योग को मजबूत करने और आयात घटाने के मकसद से बजट में राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन का प्रस्ताव किया है। इसके लिए चार साल में 1,480 करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान किया गया है। यह उम्मीद से काफी कम है। एक तरह से सरकार ने झुनझुना थमा दिया है।
---विजय कुमार लोहिया, अध्यक्ष, भारत मर्चेंट्स
रोजगार देने वाला क्षेत्र निराश
टैक्स स्लैब को चेक करें तो बचत को हतोत्साहित किया गया है। टेक्सटाइल उद्योग को बजट से बहुत उम्मीद थी पर निराशा ही हाथ लगी। कपड़ा उद्योग कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार प्रदान करता है। कृषि को 2.83 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, पर कपड़ा उद्योग की अनदेखी की गई है।
---राजीव सिंघल, कपड़ा कारोबारी
कहानी को फिर से लिखें
---आनंद महिंद्रा, चेयरमैन, महिंद्रा ग्रुप
डाटा अर्थव्यवस्था की महाशक्ति
बजट ने भारत में फाइबर को घर तक पहुंचाने से देश में डिजिटल पैठ को बढ़ावा मिलोगा। भारतनेट एक लाख ग्राम पंचायतों तक पहुंच गया है। निजी क्षेत्र के लिए डाटा सेंटर पार्क बनाने का निर्णय भारत को डाटा अर्थव्यवस्था की महाशक्ति बनाने की दिशा में एक और कदम है।----सीपी गुरनानी, एमडी और सीईओ, टेक महिंद्रा
अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र का ध्यान रखा गया
वित्तमंत्री ने अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र का ध्यान रखा है। यह निवेश को आगे बढ़ाने वाला बजट है, जिसकी इस समय अर्थव्यवस्था को सख्त जरूरत है। पिछले कुछ साल से देखें तो यहां निवेश कम हो गया था, इसे अब बजट के जरिये बढ़ावा देने का प्रयास हुआ है। बिजली क्षेत्र में नए निवेशकों को सिर्फ 15 फीसदी का कारपोरेट कंपनी कर चुकाना होगा। इस बजट में ग्रामीण मांग बढ़ाने के साथ साथ निवेश बढ़ाने के लिए कदम उठाये गए हैं। सरकार ने कहा है कि उनके बनाये तीन नए कानून, जिसे कि नीति आयोग ने एक तरह से तैयार किया है, उसे लागू करने पर केंद्र सरकार द्वारा दी गई राशि पर कुछ प्रोत्साहन मिलेगा।---राजीव कुमार, उपाध्यक्ष, नीति आयोग
नहीं मिला जवाब, कैसे बढ़े विकास दर व निवेश
बजट सामान्य है। कई चीजें अच्छी हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि भारत की विकास दर कैसे बढ़े, निवेश कैसे आए?, बजट इसका जवाब नहीं दे पा रहा। जो घोषणाएं हैं, उनसे बहुत सुधार की उम्मीद नहीं है।
निवेश के लिए किसी का आगे न आना बड़ी मुश्किल है। बैंकों से लोन भी नहीं मिल पा रहे। पहले टू व्हीलर, फोर व्हीलर खरीदने वालों को आॅटोमोबाइल कंपनी से ही लोन मिल जाता था, लेकिन अब बैंक पैसा नहीं दे रहे। बड़े निवेश में समस्या और बड़ी है। वित्त मंत्री समस्या को अच्छी तरह से नहीं सुलझा पाईं। उन्होंने छह-साढ़े छह फीसदी विकास दर की बात कही है, लेकिन इतनी विकास दर की उम्मीद नहीं लगती। सामान्य विकास दर दस फीसदी रहने का आकलन किया है, जो विकास दर और इनफ्लेशन को मिलाकर तय होती है। इसके आठ फीसदी के आसपास रहने का अनुमान है।
पंडित नेहरू के जमाने में लोग मानते थे कि तमाम सुविधाएं सरकार उपलब्ध कराएगी। अब प्राइवेट सेक्टर आधारित इकोनॉमी है। सरकार मजबूती दे सकती है लेकिन अर्थव्यवस्था की गाड़ी को प्राइवेट सेक्टर ही चलाता है। इस बजट में साफ नहीं है कि प्राइवेट सेक्टर कैसे निवेश बढ़ाएगा। कॉर्पोरेट टैक्स कम करने के बाद भी इन्वेस्टमेंट नहीं हुआ। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए था। हो सकता है कि रिजर्व बैंक 15 दिन बाद कोई घोषणा करे, लेकिन अभी इन्वेस्टर्स को मजबूत भरोसा नहीं मिला है।
बजट में टैक्स का सरलीकरण किया गया है। यह इतना सरल होना चाहिए कि करदाता को टैक्स असेसमेंट के लिए किसी विशेषज्ञ के पास न जाना पड़े। सरकार ने किसानों के लिए कुछ अच्छी बातें कही हैं। किसान रेल और किसान उड़ान का जिक्र किया है, लेकिन कृषि विकास दर भी बहुत कम है। प्रधानमंत्री ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया है। इस बजट में कुछ ऐसा नहीं है, जिससे लगे कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी। किसान के पास पैसा नहीं है। आप उन्हें पैसा दो, वे पैसे से पैसा बनाएंगे, जिसके खर्च होने पर व्यापार करने वालों की आय बढ़ेगी। गांवों में खुशहाली आएगी।
--- मेघनाद देसाई, ब्रिटिश मूल के भारतीय अर्थशास्त्री
अर्थव्यवस्था में जान डालने की कोशिश
पर्सनल इनकम टैक्स के नए प्रावधान सही तस्वीर विस्तार से गणना के बाद ही सामने आएगी। पांच से दस लाख तक आय सीमा वालों को टैक्स दर में बदलाव से लाभ होगा। उन्हें टैक्स छूट के लिए निवेश नहीं करना पड़ेगा। आयात शुल्क बढ़ाने से भारतीय उत्पाद निर्माताओं को लाभ मिलेगा। विदेशी निवेशकों को जमीन सहित कई अन्य सुविधाएं देने की घोषणाएं की गई हैं। घोषणाओं का अमल हो तभी वास्ताविक लाभ मिलेगा। अच्छी बात यह है कि सरकार कारोबार के लिए अनुकूल वातावरण बनाने जा रही है।
एमएसएमई के लिए कई घोषणाएं की गईं हैं। इनसे नोटबंदी के बाद संकट से जूझ रही लघु व मध्यम उद्यमों की हालत में सुधार होगा। रोजगार सृजित होंगे। काॅरपोरेट के लिए भी बजट निराशाजनक नहीं है। उन्हें पहले ही टैक्स छूट दी जा चुकी है। सरकार ने नॉमिनल जीडीपी दस प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। अनुमान सही नहीं लगता, यह आंकड़ा आठ प्रतिशत के आसपास रह सकता है। सरकार व्यापार की सुगमता बढ़ाना चाहती है। इसके लिए उपाय किए हैं। इनसे राजस्व बढ़ेगा। मौजूदा हालात में बजट में गरीब की भी चिंता है और विदेशी निवेशकों की भी।
---कुंज बी बंसल, आर्थिक मामलों के जानकार
लोगों की बचत को खपत में लगाना चाहती है सरकार
पैसे की कमी से जूझ रही सरकार ने राजस्व प्राप्ति के लिए अजीबोगरीब योजनाएं बनाई हैं। बजट में सरकार का आर्थिक विजन नहीं दिखा। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की अनदेखी की गई। इन्फ्रास्ट्रक्चर और ग्रामीण क्षेत्र के लिए पिछले बजट से कम आवंटन हुआ है। हालांकि, स्वास्थ्य और शिक्षा में मामूली बढ़त है।
सरकार ने पिछले बजट में विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। एक फरवरी तक केवल 18,700 करोड़ रुपये ही जुटा पाई। सरकार ने 2020-21 के लिए 2.10 लाख करोड़ विनिवेश का लक्ष्य और रख दिया। सरकार ने कहा है कि एलआईसी का आईपीओ लाएंगे। इससे मिलने वाला पैसा पब्लिक योजनाओं पर खर्च किया जाएगा। यह तर्क समझ में नहीं आता। भारत बचत करने वालों का देश है। आयकर छूट के लिए लोग एलआईसी में निवेश करते हैं, जबकि सरकार बचत को खपत में लगाना चाहती है। चार साल पहले तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि आईडीबीआई बैंक का निजीकरण होगा, जिसके बाद सरकार इस फैसले से पीछे हट गई। लेकिन अब फिर इसके विनिवेश की घोषणा की गई है।
मेडिकल उपकरणों में घरेलू मैन्युफैक्चरिंग प्रोत्साहन अच्छी बात है। लड़की की शादी की उम्र तय करने के लिए कमीशन बनाने की घोषणा भी स्वागत योग्य है। लगता है कि सरकार लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 साल करना चाहती है।
इस समय वास्तविक जीडीपी 4.20 फीसदी है। अटल सरकार ने 2003 में राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण के लिए एफआरपीएम कानून बनाया था। इस सरकार ने उससे हटकर राजकोषीय घाटे को 3.80 कर दिया। सरकार के पास आर्थिक विजन दिखाने का मौका था। यह बता सकते थे कि भाजपा का आर्थिक मॉडल कैसा है। अटल सरकार ने सार्वजननिक क्षेत्र की कई कंपनियों को बेचा था, लेकिन यह सरकार एक को भी नहीं बेच पा रही है।
--- संदीप बामजई, वरिष्ठ पत्रकार और आर्थिक मामलों के जानकार
डीडीटी हटने से विदेशी निवेश में आएगी तेजी
डायरेक्ट टैक्स कोड टास्क फोर्स की कुछ सिफारिशें स्वीकार किया जाना संतोष की बात है। 1997 के बाद आयकर के ढांचे में बदलाव किया गया है। टास्क फोर्स ने टैक्स पर मिलने वाले रिबेट और एग्जमशन को समाप्त करने का सुझाव नहीं दिया था लेकिन सरकार ने कुछ सोचकर इसे खत्म किया है। टैक्स दर में कमी से आम आदमी पहले के मुकाबले ज्यादा बचत कर सकेगा।
पहले जो लोग टैक्स की छूट का लाभ लेने के लिए डेढ़ लाख रुपये तक प्रोविडेंट फंड में जमा कराते थे, टैक्स की दर कम होने पर शायद वे अब न जमा कराएं। इस पैसे से मांग और खपत बढ़ेगी। खरीदारी बढ़ेगी।
डिविडेंट डिस्ट्रीब्यूशन (डीडी) टैक्स समाप्त करने की टास्क फोर्स की सिफारिश को मान लिया गया है। कॉरपोरेट टैक्स कम करने और अब बजट में डिविडेंट डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स को समाप्त करने से विदेशी कंपनियां आएंगी, जिससे विदेशी निवेश में तेजी आएगी। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए विदेशी कंपनियों को कुछ और छूट देने की शुरुआत अच्छी है।
टैक्स से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए योजना की घोषणा की गई है। इससे पहले भी ऐसी योजनाएं आई हैं लेकिन ज्यादा सफल नहीं रहीं। नई योजना से छोटे-छोटे विवाद सुलझ सकते हैं। अलबत्ता टास्क फोर्स ने टैक्स संबंधी विवादों के समाधान के लिए कई सिफारिशें की थीं, इस बजट में उन पर अभी ज्यादा गौर नहीं किया गया है।
टैक्सपेयर चार्टर बनाने की सरकार की यह घोषणा अच्छा कदम है। इसके लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस अधिसूचना जारी करेगी। टास्क फोर्स की सिफारिश थी कि करदाताओं के मामले में विभाग की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए।
इसके बाद अब करदाताओं के अधिकारों को कानूनी रूप मिल जाएगा। खुशी है कि टास्क फोर्स की कई सिफारिशों को स्वीकार करने योग्य माना गया है। मैं इससे संतुष्ट हूं कि सरकार कर सुधारों की ओर कदम बढ़ा रही है। जहां तक शेयर मार्केट के गिरने का सवाल है तो इस पर सही तस्वीर सोमवार तक ही सामने आ पाएगी।
---अखिलेश रंजन, सीबीडीटी के सदस्य और डीटीसी टास्क फोर्स के पूर्व अध्यक्ष
जीडीपी का 6% शिक्षा पर होना चाहिए खर्च
शिक्षा का बजट ठीक है पर बहुत अच्छा नहीं। अभी भी बहुत काम करने की जरूरत है। इसे बढ़ाया जाना चाहिए। मैं केंद्र सरकार से उम्मीद करता हूं कि वे कुल जीडीपी का छह फीसदी शिक्षा पर खर्च करे। क्योंकि, जब तक आंकड़ा चार से छह फीसदी तक नहीं पहुंचेगा, कुछ न कुछ कमी दिखेगी। सरकारी स्कूलों का जो हाल है उसे देखते हुए उनकी दशा सुधारने की बेहद जरूरत है। इसके लिए केंद्र सरकार को राज्यों की मदद करनी होगी। दरअसल, असली शिक्षा का आधार सरकारी स्कूल हैं। इसलिए उच्च शिक्षा में सुधार के साथ-साथ सरकारी स्कूलों को सुधारना जरूरी है। उम्मीद करता हूं कि नई शिक्षा नीति जल्द लागू होगी।
----प्रो. जेएस राजपूत, शिक्षाविद्