Crude Oil: ग्रीन एनर्जी को तेल ने दिखाई अपनी 'धार', जानें 2025 में भारत ने कैसे बदला ऊर्जा खपत का पूरा खेल
2025 में भारत वैश्विक ऊर्जा बाजार का सबसे अहम केंद्र बनकर उभरा। नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार के बावजूद देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और परिवहन-उद्योग की जरूरतों ने तेल और गैस की खपत को नई ऊंचाई दी। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुसार, तेल मांग में भारत की वृद्धि चीन से भी तेज रही और आने वाले दशक में वैश्विक मांग बढ़ोतरी का बड़ा हिस्सा भारत से आएगा।
विस्तार
कई वर्षों तक नवीकरणीय ऊर्जा की तेज रफ्तार के बीच तेल की मांग के शिखर पर पहुंचने की भविष्यवाणियों के उलट, 2025 में तेल और गैस ने एक बार फिर दमदार वापसी की। वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में इस वापसी का सबसे बड़ा केंद्र भारत बनकर उभरा, जहां ऊर्जा की भूख न केवल बढ़ी, बल्कि चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया की संयुक्त वृद्धि से भी आगे निकल गई।
बीपी, मैकिंन्से और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) जैसे प्रमुख वैश्विक संस्थानों ने अपने आउटलुक में ‘पीक ऑयल’ को 2030 के दशक में खिसकाया और 2050 तक तेल मांग के अनुमानों को ऊपर की ओर संशोधित किया। सभी रिपोर्टों में एक बात समान रही कि आने वाले वर्षों में वैश्विक तेल मांग की धुरी भारत होगा।
तेल की वापसी के पीछे के मुख्य कारण
2025 में तेल की वापसी के पीछे नीतिगत देरी, इंफ्रास्ट्रक्चर की सीमाएं और भू-राजनीतिक तनाव अहम वजह रहे। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप, जो लंबे समय से स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण का अगुवा रहा है, आपूर्ति संकट और ऊंची कीमतों के कारण दोबारा जीवाश्म ईंधन पर अधिक निर्भर होता दिखा। वहीं अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप की जीवाश्म ईंधन समर्थक नीतियों ने इस रुझान को और मजबूती दी।
ये भी पढ़ें: Startups: निवेशकों के भरोसे पर खरे उतरे भारतीय टेक स्टार्टअप, फंड जुटाने की होड़ में चीन-जर्मनी को भी पछाड़ा
भारत: आयात निर्भरता और रणनीतिक संतुलन
भारत की तेल-गैस कहानी 2025 में आयात, नीति सुधार, बढ़ती मांग और ऊर्जा सुरक्षा के इर्द-गिर्द घूमती रही। कच्चे तेल के मामले में रूस भारत का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना रहा, अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद। अमेरिका ने रूसी तेल खरीद घटाने के लिए नई दिल्ली पर दबाव बढ़ाया और भारतीय वस्तुओं पर 50 फीसदी टैरिफ तक लगाया, फिर भी साल के अधिकांश हिस्से में भारत के कुल आयात का एक-तिहाई से अधिक रूसी तेल रहा।
हालांकि नवंबर के अंत में जब रूस की बड़ी कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लागू हुए, तब आयात में गिरावट आई और यह 17-18 लाख बैरल प्रतिदिन से घटकर 10 लाख बैरल प्रतिदिन से नीचे आ गया। चूंकि रूसी कच्चे तेल पर सीधा प्रतिबंध नहीं है, इसलिए भारत का आयात शून्य होने की आशंकाएं अब भी अव्यावहारिक मानी जा रही हैं।
विविधीकरण की दिशा में कदम
2025 में भारत ने कच्चे तेल के स्रोतों में विविधता भी बढ़ाई। अमेरिकी कच्चे तेल का आयात खासतौर पर ट्रंप के टैरिफ के बाद तेज हुआ। साथ ही एलएनजी और एलपीजी व्यापार का विस्तार हुआ, ताकि किसी एक देश पर निर्भरता कम की जा सके।
नीतिगत सुधार और उत्पादन की चुनौती
सरकार ने पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियम, 2025 अधिसूचित किए, जिससे अन्वेषण और उत्पादन के लिए लाइसेंस प्रक्रिया सरल हुई और निवेश आकर्षित करने का प्रयास किया गया। इसके बावजूद घरेलू उत्पादन उम्रदराज क्षेत्रों के कारण दबाव में रहा। उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकारी कंपनी तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने मुंबई हाई क्षेत्र के पुनरुद्धार के लिए सुपरमेजर बीपी को तकनीकी साझेदार बनाया।
मांग और रिफाइनिंग में मजबूती
तेल की खपत के मोर्चे पर भारत ने 2025 में चीन से तेज वृद्धि दर्ज की। अनुमान है कि अगले दशक में वैश्विक तेल मांग में बढ़ोतरी का बड़ा हिस्सा भारत से आएगा। रिफाइनिंग क्षमता में निरंतर विस्तार से भारत एक वैश्विक रिफाइनिंग हब के रूप में और मजबूत हुआ। वहीं प्राकृतिक गैस की खपत पाइपलाइन नेटवर्क और सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन के विस्तार से बढ़ी, जो संक्रमण ईंधन की रणनीति के अनुरूप है।
कीमतों में असामान्य शांति
2025 तेल बाजार के लिए असाधारण रूप से शांत साल रहा। ब्रेंट क्रूड अधिकांश समय 60-70 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहा और दिसंबर के मध्य तक 59-60 डॉलर पर आ गया। युद्ध, प्रतिबंध, टैरिफ और शिपिंग बाधाओं के बावजूद कीमतों में तीव्र उछाल नहीं दिखा।
इस स्थिरता के पीछे अमेरिका, ब्राजील, गुयाना और कनाडा जैसे गैर-ओपेक देशों से बढ़ी आपूर्ति, ओपेक+ का अनुशासित उत्पादन प्रबंधन, चीन और यूरोप में कमजोर मांग और फ्लोटिंग स्टोरेज में वृद्धि जैसे कारक रहे।
भारत को राहत, सरकार को राजस्व
तेल कीमतों की इस स्थिरता ने भारत जैसे बड़े आयातकों को राहत दी। कोविड काल की तरह सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया, लेकिन खुदरा कीमतें नहीं बढ़ाईं। तेल कीमतों में आई गिरावट से मिलने वाली राहत को टैक्स बढ़ोतरी से समायोजित कर सरकार ने अतिरिक्त राजस्व जुटाया, जो आयकर राहत के बाद महत्वपूर्ण माना गया।
आगे का रास्ता
जैसे-जैसे 2025 समाप्त हो रहा है, तेल और गैस उद्योग एक जटिल मोड़ पर खड़ा है। भू-राजनीतिक जोखिम, बदलती मांग, जलवायु दबाव और वैश्विक ऊर्जा कंपनियों की रणनीतिक दिशा- ये सभी संकेत देते हैं कि 2026 की ओर बढ़ते हुए यह सेक्टर संक्रमण के दौर में रहेगा, जहां 'तेल की वापसी' और 'ऊर्जा परिवर्तन' साथ-साथ चलेंगे।