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India-New Zealand Trade Deal: सेब और कीवी पर ड्यूटी छूट अब 'शर्तों' के साथ, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर टिका सौदा

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कुमार विवेक Updated Tue, 23 Dec 2025 03:27 PM IST
सार

India-New Zealand Trade Deal: भारत-न्यूजीलैंड एफटीए के तहत सेब और कीवी पर ड्यूटी छूट अब 'एग्री एक्शन प्लान' से जुड़ी है। जानें कैसे जेएपीसी इसकी निगरानी करेगी और कोटा व एमआईपी के जरिए भारतीय किसानों के हितों की रक्षा सुनिश्चित होगी।

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India-New Zealand Trade Deal, Apple Kiwi Duty Free Terms Tchnology Transfer in Agriculture Sector
भारत-न्यूजीलैंड। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी व्यापारिक कूटनीति में एक नया और रणनीतिक अध्याय जोड़ते हुए न्यूजीलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया है। भारत ने साफ किया है कि न्यूजीलैंड से आने वाले सेब, कीवी और प्रीमियम 'मानुका हनी' (शहद) को भारतीय बाजार में शुल्क (Duty) रियायतें तभी मिलेंगी, जब वह भारत के कृषि क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने के अपने वादों को धरातल पर उतारेगा। केंद्र सरकार ने इन रियायतों को सीधे तौर पर 'कृषि उत्पादकता एक्शन प्लान' से लिंक कर दिया है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि विदेशी माल के साथ-साथ विदेशी तकनीक भी भारतीय खेतों तक पहुंचे।

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वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, इस पूरे तंत्र की निगरानी के लिए एक विशेष 'संयुक्त कृषि उत्पादकता परिषद' (JAPC) का गठन किया जाएगा। यह परिषद देखेगी कि न्यूज़ीलैंड समझौते के तहत किए गए वादों- जैसे कि बागवानी में तकनीकी सुधार और क्षमता निर्माण- को पूरा कर रहा है या नहीं। यह कदम घरेलू कृषि क्षेत्रों की सुरक्षा और बाजार पहुंच के बीच संतुलन बनाने के उद्देश्य से उठाया गया है।

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तकनीक के बदले बाजार: क्या है न्यूजीलैंड का वादा?

समझौते की शर्तों के मुताबिक, न्यूज़ीलैंड ने भारत में सेब, कीवी और शहद उत्पादन की गुणवत्ता और क्षमता बढ़ाने के लिए 'फोकस्ड एक्शन प्लान' पर सहमति जताई है। इसके तहत न्यूज़ीलैंड भारत में 'सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस' (उत्कृष्टता केंद्र) स्थापित करने में मदद करेगा। सहयोग के इस ढांचे में बागान मालिकों के लिए बेहतर पौध सामग्री (planting material) उपलब्ध कराना, क्षमता निर्माण, बागान प्रबंधन में तकनीकी सहायता, फसल कटाई के बाद के प्रबंधन (post-harvest practices), सप्लाई चेन को मजबूत करना और खाद्य सुरक्षा के मानक तय करना शामिल है।


प्रीमियम सेब की खेती और टिकाऊ मधुमक्खी पालन (sustainable beekeeping) के लिए शुरू की जाने वाली परियोजनाएं भारत में उत्पादन की गुणवत्ता को वैश्विक मानकों तक ले जाने में मदद करेंगी। मंत्रालय ने अपने बयान में साफ कहा है, "सेब, कीवी और मानुका हनी के लिए सभी टैरिफ रेट कोटा (TRQ) कृषि उत्पादकता कार्य योजनाओं की डिलीवरी से जुड़े हैं और JAPC इसकी सख्त निगरानी करेगी।"

सेब के व्यापार का गणित: कोटा और न्यूनतम आयात मूल्य

न्यूजीलैंड आधिकारिक तौर पर ऐसा "पहला" देश है जिसे भारत ने इस समझौते के तहत अपने सेब निर्यात के लिए ड्यूटी में रियायत दी है। हालांकि, यह छूट असीमित नहीं है। वर्तमान में, भारत आयातित सेब पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाता है। घरेलू किसानों के हितों की रक्षा के लिए भारत ने 'कोटा' और 'न्यूनतम आयात मूल्य' (MIP) का एक मजबूत सुरक्षा ढांचा तैयार किया है।

समझौते के तहत, पहले वर्ष में न्यूजीलैंड को 32,500 टन (MT) सेब के आयात पर शुल्क में रियायत दी जाएगी। छठे वर्ष तक इस कोटे को बढ़ाकर 45,000 टन कर दिया जाएगा, इस पर केवल 25 प्रतिशत शुल्क लगेगा। लेकिन, शर्त यह है कि आयातित सेब का मूल्य (MIP) 1.25 डॉलर प्रति किलोग्राम से कम नहीं होना चाहिए। यदि आयात इस तय कोटे से अधिक होता है, तो उस पर 50 प्रतिशत शुल्क लागू होगा।

घरेलू बाजार को बचाने के लिए क्या फैसला?

आंकड़ों के अनुसार, भारत में न्यूजीलैंड से वार्षिक सेब आयात लगभग 31,392.6 टन है, जिसका मूल्य 32.4 मिलियन डॉलर है। जबकि देश का कुल सेब आयात 5,19,651.8 टन (424.6 मिलियन डॉलर) है। इस लिहाज से न्यूज़ीलैंड का हिस्सा अभी सीमित है, लेकिन नई रियायतों से इसमें बढ़ोतरी की संभावना है।

इस समझौते में कृषि उत्पादों (सेब, कीवी, मानुका हनी) और एल्ब्यूमिन के लिए बाजार पहुंच को 'टैरिफ रेट कोटा' (TRQ) प्रणाली के माध्यम से प्रबंधित किया जाएगा। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि भारतीय उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण विकल्प मिलें, लेकिन साथ ही 'न्यूनतम आयात मूल्य' जैसे उपाय यह गारंटी देते हैं कि सस्ता आयात भारतीय किसानों की आय पर चोट न पहुंचाए।

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