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Labour Codes: देश की आधी आबादी को और सशक्त बनाने के लिए तैयार नई श्रम संहिताएं; महिलाओं के लिए बड़ा बदलाव
अमर उजाला ब्यूरो
Published by: शिवम गर्ग
Updated Sun, 23 Nov 2025 06:01 AM IST
सार
पूर्व श्रम सचिव आरती आहूजा और रणनीति विशेषज्ञ कार्तिक एमपी के अनुसार, ये संहिताएं महिलाओं, गिग वर्कर्स और असंगठित क्षेत्र के करोड़ों श्रमिकों के लिए सिर्फ कानूनी परिवर्तन नहीं, बल्कि एक नई सामाजिक-आर्थिक संरचना की शुरुआत हैं।
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दफ्तर में काम करती महिला
- फोटो : Adobe
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विस्तार
भारत को 2047 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना अनिवार्य है। फिलहाल श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी 41.7 प्रतिशत है और विकसित भारत का लक्ष्य इसे बढ़ाकर 70 प्रतिशत तक ले जाना है। लगभग 30-अंकों के इस अंतराल को पाटने का मूल मकसद राष्ट्रीय उत्पादकता को बढ़ाना तथा यह सुनिश्चित करना है कि भारत की विकास गाथा को सिर्फ आधे लोग ही नहीं, बल्कि सभी लोग आकार दें।
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शिक्षा, डिजिटल सुलभता और उद्यमिता के मामले में हुई प्रगति के बावजूद, अभी भी बहुत सी संभावनाओं का दोहन बाकी है। भारत को एक ऐसा श्रम इकोसिस्टम तैयार करना होगा जो महिलाओं को प्रवेश करने, टिके रहने तथा आगे बढ़ने में समर्थ बनाए और भारत के एकीकृत श्रम संहिताओं का कार्यान्वयन इन प्रणालीगत बाधाओं को दूर करने और समावेशन को उत्पादकता में बदलने का एक दुर्लभ मौका देता है। जरा गौर करें-ई-श्रम पर पंजीकृत सीता नाम की उत्तर प्रदेश की एक श्रमिक बच्चों की देखभाल की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं होने के चलते अपने दो बच्चों का पालन-पोषण करते हुए, घर बैठकर एक ठेकेदार के लिए कपड़े सिलती है। इससे उसे एक अनियमित आय होती है। उनके जैसी महिलाओं के लिए, नई श्रम संहिताएं एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम साबित हो सकती हैं। पास की एक कपड़ा फैक्ट्री अब औपचारिक अनुबंधों के साथ अलग-अलग पालियों में काम करने के लिए महिलाओं की भर्ती कर रही है।
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पहली बार, भारत के श्रम कानूनों का ढांचा सीता जैसी लाखों महिलाओं के लिए बाधक होने के बजाय उनका संबल बनने के लिए तैयार है। वर्ष 2019-2020 के बीच अधिनियमित श्रम संहिताएं 29 बिखरे कानूनों को चार सुव्यवस्थित ढांचों, मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, पेशेगत सुरक्षा और औद्योगिक संबंध संहिताओं-में समेकित करती हैं। यह विधायी मंशा साहसिक है और अब अनेक राज्य तेजी से इन्हें लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। भारत के पास इस मंशा को प्रभाव में बदलने का एक महत्वपूर्ण मौका है।
जीवन के बदलावों में मददगार
पहले कदम के रूप में दृश्यता सामाजिक सुरक्षा संहिता मातृत्व, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और बच्चों की देखभाल से जुड़े पहलुओं को शामिल करते हुए गिग और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड की स्थापना करती है। ई-श्रम पोर्टल पर 30.6 करोड़ से अधिक श्रमिक पंजीकृत हैं, जिनमें से 53 प्रतिशत यानी 16 करोड़ महिलाएं हैं। इस पोर्टल और आधार आधारित यूएएन के बीच का जुड़ाव (लिंकेज) इन हकों को किसी भी स्थान पर और किसी भी क्षेत्र (सेक्टर) में दिलाया जाना संभव बनाता है। यह बुनियादी ढांचा बच्चे के जन्म या देखभाल जैसे जीवन के प्रमुख बदलवों के दौरान होने वाली क्षति को कम कर सकता है। दृश्यता तो महज पहला कदम भर है। पंजीकरण को कल्याणकारी वितरण प्रणालियों से जोड़ने की प्रक्रिया में तेजी लाई जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिलाओं के पास सिर्फ पहचान पत्र ही नहीं हो, बल्कि उन्हें वास्तविक सहायता भी मिले।
इससे महिलाओं को उनके रोजगार चक्र में सुरक्षित व टिकाए रखने के तौर-तरीकों को नए सिरे से परिभाषित किया जा सकेगा। आर्थिक अवसंरचना के रूप में देखभाल किसी भी महिला से अगर नौकरी छोड़ने की वजहों के बारे में पूछिए, तो अक्सर एक ही जवाब मिलेगा-बच्चों की देखभाल। पेशेगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाज की स्थिति से संबंधित संहिता इसी समस्या से निपटती है।
मेज पर एक जगह : महिलाओं की आवाज को संस्थागत बनाना
मजदूरी संहिता, जो सर्वाधिक विचारपूर्ण सुधारों में से एक है, सभी केंद्रीय और राज्य सलाहकार बोर्डों में एक तिहाई महिला सदस्यों का होना अनिवार्य करती है। यह संस्थागत डिजाइन ऐसी नीतियों के निर्माण के लिए आवश्यक है जो विविध प्रकार के श्रमिकों की हकीकतों को दर्शाएं और समावेशन को एक सोची-समझी चीज के बजाय आधारभूत तत्व बनाएं। जैसे-जैसे ज्यादा से ज्यादा राज्य इन बोर्डों को सक्रिय करेंगे, लैंगिक रूप से संवेदनशील नीति निर्माण हाशिये से उठकर मुख्यधारा में आ जाएगा।
नई श्रम संहिताएं एक आधारभूत अवसर प्रदान करती हैं और अब जबकि केंद्र ने आधार तैयार कर दिया है, तो असली बदलाव राज्यों के स्तर पर होगा तथा हमारी क्षमता भी बढ़ेगी। जो राज्य तेजी से नियमों को सुसंगत बनाएंगे, सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को समन्वित करेंगे, सलाहकार बोर्डों को सक्रिय करेंगे तथा लिंग-आधारित परिणामों पर नजर रखेंगे, वे रोजगार के मानकों के मामले में अग्रणी होंगे। ये संहिताएं कोई अचूक उपाय भले ही न हों, लेकिन ये संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने के दमदार उपाय जरूर हैं। सही तरीके से क्रियान्वित किए जाने पर, वे देश की प्रतिभा पाइपलाइन का विस्तार कर सकती हैं और हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश को तेजी से बढ़ा सकती हैं।