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MGNREGA खत्म, 'जी राम जी' शुरू: 125 दिन के काम की गारंटी; लेकिन राज्यों की जेब पर भारी नया कानून, जानें सबकुछ

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कुमार विवेक Updated Sat, 27 Dec 2025 06:16 PM IST
सार

MGNREGA vs VB-G RAM G: मनरेगा (MGNREGA) की जगह अब नया 'जी राम जी' (VB-G RAM G) कानून लागू है। इसमें 125 दिन की रोजगार की गारंटी तो दी गई है, लेकिन राज्यों पर 40% मजदूरी का भारी बोझ भी डाला गया है। जानिए नए ग्रामीण रोजगार मिशन के 7 बड़े बदलाव और आपकी जेब पर इसका क्या असर पड़ेगा।

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MGNREGA vs VB-G RAM G New Law on Rural Employment Know All Answers about new Law
मनरेगा - फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
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भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिहाज से 21 दिसंबर, 2025 का दिन एक बड़े 'टर्निंग पॉइंट' के रूप में दर्ज हो गई। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही 'विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) अधिनियम, 2025' यानी VB-G RAM G (जी राम जी) अब देश का कानून बन चुका है।

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यह केवल एक योजना का नाम बदलना नहीं है, बल्कि यह देश की सबसे बड़ी कल्याणकारी योजना-महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)- का बुनियादी ढांचा बदलने जैसा है। 20 साल पुराने 'मांग आधारित अधिकार' (Right based) मॉडल को अब 'बजट-सीमित अवसंरचना मिशन' (Budget-capped Infrastructure Mission) में तब्दील कर दिया गया है।
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आइए सवाल-जवाब से समझें कि क्या नया कानून पुराने मनरेगा से आर्थिक और व्यावहारिक तौर पर कितना अलग है और इसका आपकी जेब व राज्य के खजाने पर क्या असर होगा।

सवाल: सबसे बुनियादी बदलाव क्या है? क्या काम के दिन बढ़े हैं या घटे हैं?

जवाब: कागज पर देखें तो गारंटी बढ़ी है, लेकिन शर्तों के साथ।

पुराना (MGNREGA 2005): इसमें 100 दिन के रोजगार की गारंटी थी। सबसे अहम बात यह थी कि यह 'मांग आधारित' (Demand Driven) था। यानी अगर मजदूर काम मांगे, तो सरकार को काम देना ही होगा।
नया (VB-G RAM G 2025): इसमें वैधानिक गारंटी को बढ़ाकर 125 दिन कर दिया गया है। लेकिन, अब यह मांग पर नहीं, बल्कि केंद्र सरकार द्वारा तय "नॉर्मेटिव एलोकेशन" (Normative Allocation) पर निर्भर करेगा। यानी काम उतना ही मिलेगा जितना बजट पहले से आवंटित है।

सवाल: राज्यों के वित्त (State Finances) पर इसका क्या असर होगा? सबसे बड़ा विवाद क्यों है?

जवाब: यह इस कानून का सबसे बड़ा 'पेच' है। केंद्र ने मजदूरी का बड़ा बोझ राज्यों पर डाल दिया है।

पुराना नियम: अकुशल मजदूरी (Unskilled Wages) का 100% पैसा केंद्र सरकार देती थी। राज्यों पर मजदूरी का कोई बोझ नहीं था।
नया नियम: अब यह 60:40 का फॉर्मूला है। मजदूरी का 60% केंद्र देगा और 40% राज्य सरकार को देना होगा।

अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक, नई योजना की कुल सालाना लागत लगभग ₹1.51 लाख करोड़ होगी। इसमें से राज्यों को अब हर साल ₹55,000 करोड़ से अधिक का इंतजाम करना होगा, जो पहले शून्य था। यह राज्य के बजट पर सीधा और भारी झटका है।

सवाल: अगर सूखे या संकट के समय काम की मांग अचानक बढ़ गई, तो पैसा कौन देगा?

उत्तर: नए कानून ने 'ओपन-एंडेड' फंडिंग (असीमित निधि) का रास्ता बंद कर दिया है।

पुराना नियम: मनरेगा 'ओपन-एंडेड' थी। अगर सूखा पड़ा और मांग बढ़ी, तो केंद्र को कानूनी रूप से अतिरिक्त पैसा जारी करना पड़ता था।
नया नियम (अतिरिक्त व्यय प्रावधान): अब साल की शुरुआत में ही 'लिमिट' तय होगी। अगर किसी राज्य में मांग, केंद्र द्वारा तय आवंटन (Normative Allocation) से ज्यादा होती है, तो उस अतिरिक्त खर्च का 100% भुगतान राज्य को खुद करना होगा। केंद्र एक पैसा ज्यादा नहीं देगा।

सवाल: क्या मजदूरों को अब साल भर काम मिल सकेगा?

उत्तर: नहीं, नए कानून में 'अनिवार्य छुट्टी' का प्रावधान है।

पुराना नियम: यह एक सुरक्षा जाल था, साल भर काम उपलब्ध रहता था।
नया नियम: कटाई और बुवाई के पीक सीजन (Peak Season) के दौरान 60 दिनों का अनिवार्य विराम (Mandatory Break) लागू किया गया है।

तर्क: सरकार का कहना है कि इससे खेती के समय किसानों/जमींदारों को मजदूरों की कमी नहीं होगी। आलोचकों का कहना है कि यह भूमिहीन मजदूरों की आय सुरक्षा को खतरे में डालता है।

सवाल: गांव में कौन सा काम होगा, यह फैसला अब कौन लेगा?

उत्तर: सत्ता का विकेंद्रीकरण (Decentralization) खत्म होकर केंद्रीकरण (Centralization) की ओर बढ़ गया है।

पुराना नियम: ग्राम सभा सुप्रीम थी। गांव के लोग तय करते थे कि उन्हें तालाब चाहिए या सड़क।
नया नियम: ग्राम पंचायतें योजना बनाएंगी, लेकिन उसे "विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक" के हिसाब से होना चाहिए।

 यह स्टैक चार क्षेत्रों पर फोकस करता है- जल सुरक्षा, कोर इंफ्रास्ट्रक्चर, आजीविका और जलवायु। साथ ही, सभी योजनाओं को 'पीएम गति शक्ति' के GIS प्लेटफॉर्म से मैप करना अनिवार्य होगा।

सवाल: तकनीकी बदलाव और पारदर्शिता को लेकर क्या नियम हैं?

उत्तर: अब 'डिजिटल' ही 'फिजिकल' काम का आधार होगा।

पुराना नियम: पहले मस्टर रोल (हाजिरी रजिस्टर) कागजों पर होते थे, तकनीक सिर्फ मदद के लिए थी।
नया नियम: अब हाजिरी और फर्जीवाड़ा रोकने के लिए बायोमेट्रिक्स और AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) अनिवार्य है। जहां इंटरनेट या कनेक्टिविटी कमजोर है, वहां यह 'डिजिटल प्रमाणीकरण' मजदूरों के लिए रोजगार पाने में बाधा बन सकता है।



सवाल: अगर काम नहीं मिला तो बेरोजगारी भत्ते का क्या होगा?

उत्तर: यह राज्यों के लिए 'दोहरी मार' जैसा है।

पुराना नियम: 15 दिन में काम न मिलने पर राज्य भत्ता देते थे।
नया नियम: राज्य अब भी भत्ता देंगे। लेकिन पेंच यह है कि काम देने पर भी उन्हें 40% मजदूरी देनी है और काम न देने पर भत्ता भी देना है। यानी, काम हो या न हो, राज्यों का खर्च तय है।

सरकार बनाम विपक्ष: तर्कों की कसौटी

सरकार का पक्ष
सरकार की ओर से नए कानून पर कहा गया कि पुराना मनरेगा 'गड्ढे खोदने और भरने' तक सीमित रह गया था और भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका था। वहीं, नया 'जी राम जी' कानून सिर्फ दिहाड़ी नहीं बांटेगा, बल्कि टिकाऊ संपत्ति बनाएगा जो विकसित भारत की नींव होगी।

विपक्ष और विशेषज्ञों की चिंता
विपक्षी पार्टियों ने इसे "संघीय ढांचे पर हमला" बताया है। महात्मा गांधी का नाम हटाना एक भावनात्मक मुद्दा है, लेकिन आर्थिक मुद्दा यह है कि गरीब राज्यों पर 40% मजदूरी का बोझ डालना उन्हें दंडित करने जैसा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसे 'मांग-आधारित' से हटाकर 'आवंटन-आधारित' करने से यह रोजगार गारंटी कम और सामान्य सरकारी स्कीम ज्यादा बन गई है। 'जी राम जी' बिल भारत के ग्रामीण श्रम बाजार में एक बड़े संरचनात्मक बदलाव का प्रतीक है। यह राजकोषीय अनुशासन और एसेट क्रिएशन पर जोर देता है, लेकिन इसका सीधा असर राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता और गरीब मजदूर की काम मांगने की आजादी पर पड़ सकता है। आने वाले दिनों में यह केंद्र और राज्य संबंधों में टकराव का एक बड़ा कारण सकता है।

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