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Health Insurance: सावधान! स्वास्थ्य बीमा होने के बाद भी जेब से न भरना पड़े भारी बिल; जानिए बचाव के तरीके
शिल्पा अरोड़ा, को-फाउंडर और सीओओ इंश्योरेंस समाधान
Published by: शिवम गर्ग
Updated Mon, 29 Dec 2025 06:33 AM IST
सार
हेल्थ इंश्योरेंस होने के बावजूद लाखों लोग क्लेम रिजेक्शन के कारण जेब से अस्पताल का बिल भरने को मजबूर हैं। जानिए क्लेम रिजेक्ट होने की वजहें, छिपी शर्तें और जरूरी सावधानियां...
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Health Insurance
- फोटो : Adobe stock
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विस्तार
अगर आप यह सोचकर चैन की नींद सो रहे हैं कि आपके पास हेल्थ इंश्योरेंस है और मुसीबत आने पर बीमा कंपनी सारा बिल चुका देगी, तो जाग जाइए। IRDAI के आंकड़े आपकी नींद उड़ा देंगे। वित्त वर्ष 2023-24 में 11% हेल्थ क्लेम को बीमा कंपनियों ने सिरे से खारिज कर दिया। ये कोई छोटी-मोटी रकम नहीं है-कुल 26,000 करोड़ रुपये के बिलों को कंपनियों ने रिजेक्ट कर दिया। इसका सीधा मतलब समझिए, हर 10 में से 1 आदमी को अस्पताल के बिस्तर से उठने के बाद अपनी जमा-पूंजी से या कर्ज लेकर बिल चुकाना पड़ा। क्लेम रिजेक्ट होने के पीछे कुछ आम गलतियां हैं, जिन्हें अक्सर लोग नजरअंदाज करते हैं :
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- वेटिंग पीरियड: लोग पॉलिसी लेते ही अस्पताल की ओर दौड़ते हैं। उन्हें नहीं पता कि वेटिंग पीरियड नाम की भी कोई चीज होती है। 30 दिन का शुरुआती लॉक-इन और बीमारियों के लिए 2 से 3 साल का इंतजार करना होता है। इस वजह से सबसे ज्यादा 25% क्लेम रिजेक्ट होते हैं।
- ओपीडी का चक्कर: आज भी लोग OPD और IPD का फर्क नहीं समझते। 25% क्लेम सिर्फ इसलिए खारिज हुए क्योंकि वे खर्च पॉलिसी के दायरे से बाहर थे।
- समय पर जवाब नहीं: बीमा कंपनी ने सवाल पूछा, आपने जवाब नहीं दिया। 18% क्लेम सिर्फ 'लैक ऑफ रिस्पॉन्स की वजह से रद्द हो गए।
- गैर जरूरी भर्ती: अगर डॉक्टर ने आपको सिर्फ ऑब्जर्वेशन के लिए भर्ती किया है और इलाज घर पर संभव था, ऐसे मामलों में 16% क्लेम फंस गए।
- क्लेम को रिजेक्ट होने से बचाने के लिए ये तीन काम आज ही करें: पॉलिसी लेते समय अपनी पुरानी बीमारियों के बारे में सच-सच बताएं। अगर झूठ पकड़ा गया, तो 100% रिजेक्शन पक्का है।
- डिस्चार्ज समरी, बिल, डॉक्टर के नोट्स और दवाइयों के पर्चे, इन सबको संभाल कर रखें। डिस्चार्ज के 30 दिनों के भीतर क्लेम जमा जरूर करें।
- हमेशा कैशलेस प्री-ऑथराइजेशन की कोशिश करें। इससे आपको अस्पताल में भर्ती होने से पहले ही पता चल जाएगा कि कंपनी कितना पैसा देगी।
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बिल में कैंची चलाने वाली 5 छिपी हुई शर्तें
मेडिकल इंफ्लेशन का लगातार ऊंचे स्तर पर बने रहना।
हार्ट, कैंसर, किडनी और ऑर्थोपेडिक जैसी गंभीर बीमारियों के मामले बढ़ना।
ICU, एडवांस डायग्नोस्टिक्स और टेक्नोलॉजी आधारित ट्रीटमेंट का बढ़ता खर्च।
कोविड के बाद समय पर इलाज कराने की बढ़ी हुई प्रवृत्ति।
क्या आपकी पॉलिसी पर्याप्त है?
आज भी बड़ी संख्या में लोग 3-5 लाख रुपये के हेल्थ कवर पर निर्भर हैं, जबकि मेट्रो शहरों में किसी गंभीर बीमारी का इलाज 8-10 लाख रुपये या उससे अधिक का खर्च मांग सकता है। आने वाले वर्षों में इलाज की लागत और बढ़ने की संभावना है, ऐसे में समय पर पॉलिसी रिव्यू और अपग्रेड बेहद जरूरी हो जाता है।
पॉलिसीधारकों के लिए सलाह
- रूम रेंट कैपिंग: अधिकांश पॉलिसियों में रूम रेंट की सीमा सम एश्योर्ड का 1% होती है। अगर आपने अधिक मूल्य का कमरा लिया, तो कंपनी Proportionate Deduction के नियम से डॉक्टर की फीस, सर्जरी और नर्सिंग चार्ज भी उसी अनुपात में काट लेगी।
- कंज्यूमेबल्स: ग्लव्स, मास्क, पीपीई किट, सिरिंज, और स्पिरिट जैसी चीजों को कंपनियां नॉन-मेडिकल मानती हैं। कोविड के बाद अस्पताल के बिल में कंज्यूमेबल्स का हिस्सा 10-15% तक पहुंच गया है। कई कंपनियां Consumables Rider देती हैं। अगर आपके पास नहीं है, तो पैसे आपकी जेब से जाएंगे।
- को-पेमेंट: पॉलिसी के छोटे अक्षरों में कहीं 10% या 20% को-पे लिखा होता है। इसका मतलब है कि बिल चाहे जो भी हो, उसका एक निश्चित हिस्सा आपको देना ही होगा। सीनियर सिटीजन पॉलिसियों में यह अक्सर 20-30% होता है।
- डिजीज (बीमारी) सब-लिमिट: भले ही आपका बीमा 10 लाख का हो, पॉलिसी में लिखा होता है मोतियाबिंद के लिए 30,000 रुपये। पॉलिसी लेने से पहले Sub-limits वाला कॉलम गौर से देखें।
- डायग्नोस्टिक और प्री-हॉस्पिटलाइजेशन: अस्पताल में भर्ती होने से पहले के टेस्ट और डिस्चार्ज के बाद की दवाइयां। लोग अक्सर पुराने पर्चे और बिल खो देते हैं। आमतौर पर 60 दिन पहले और 90 दिन बाद का खर्च मिलता है, इसके लिए हर पर्चा और ओरिजिनल बिल होना जरूरी है।
मेडिकल इंफ्लेशन का लगातार ऊंचे स्तर पर बने रहना।
हार्ट, कैंसर, किडनी और ऑर्थोपेडिक जैसी गंभीर बीमारियों के मामले बढ़ना।
ICU, एडवांस डायग्नोस्टिक्स और टेक्नोलॉजी आधारित ट्रीटमेंट का बढ़ता खर्च।
कोविड के बाद समय पर इलाज कराने की बढ़ी हुई प्रवृत्ति।
क्या आपकी पॉलिसी पर्याप्त है?
आज भी बड़ी संख्या में लोग 3-5 लाख रुपये के हेल्थ कवर पर निर्भर हैं, जबकि मेट्रो शहरों में किसी गंभीर बीमारी का इलाज 8-10 लाख रुपये या उससे अधिक का खर्च मांग सकता है। आने वाले वर्षों में इलाज की लागत और बढ़ने की संभावना है, ऐसे में समय पर पॉलिसी रिव्यू और अपग्रेड बेहद जरूरी हो जाता है।
पॉलिसीधारकों के लिए सलाह
- हेल्थ पॉलिसी का हर 2-3 साल में रिव्यू करें
- सम इंश्योर्ड को मेडिकल इंफ्लेशन के अनुसार बढ़ाएं
- ऐसी पॉलिसी चुनें जिसमें नो रूम रेंट कैप, रीस्टोरेशन बेनेफिट और डिजिटल क्लेम प्रोसेस हो
- हमेशा कैशलेस प्री-ऑथोराइजेशन लें, इसके लिए नजदीकी नेटवर्क अस्पताल में प्लान करें
- सस्ती सुपर टॉप-अप पॉलिसी से अपना सम-इंश्योर्ड बढ़ाएं, गंभीर बीमारी इससे कवर होगी