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Portfolio: साल के अंत में पोर्टफोलियो की जरूरी पड़ताल, रिबैलेंसिंग से ही 2026 में निवेश को मिलेगा सही रिटर्न

अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली। Published by: शिवम गर्ग Updated Mon, 29 Dec 2025 05:32 AM IST
सार

2026 करीब आ रहा है। ऐसे में अपने निवेश को लक्ष्यों, जोखिम क्षमता और एसेट एलोकेशन के साथ तालमेल बिठाने के लिए साल के अंत में पोर्टफोलियो की समीक्षा करना जरूरी है। अनुशासित समीक्षा पोर्टफोलियो के भटकाव को सुधारने, कमजोर फंड्स को हटाने और एक साफ-सुथरे, लक्ष्य-आधारित पोर्टफोलियो के साथ नए साल में प्रवेश करने में मदद करेगी।

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Year-End Portfolio Review: Why Rebalancing Is Key to Better Returns in 2026
पोर्टफोलियो रिबैलेंसिंग - फोटो : अमर उजाला प्रिन्ट/एजेंसी
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विस्तार
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जैसे कार को समय-समय पर सर्विसिंग की जरूरत होती है, वैसे ही आपके निवेश को भी रिबैलेंसिंग की जरूरत होती है। साल भर में शेयर बाजार कभी ऊपर जाता है, तो कभी नीचे और इस चक्कर में आपका एसेट एलोकेशन बिगड़ जाता है। 2025 का बाजार चुनिंदा बढ़त वाला रहा है। इंडेक्स बढ़े, पर शेयर गिरे। करीब 3800 प्रमुख स्टॉक्स में से 75 फीसदी साल के अंत में नुकसान में थे। यहां हर किसी ने पैसा नहीं बनाया, बल्कि जिसने रणनीति बदली, वही टिका रहा। अगर आप 2026 में अपनी आर्थिक नाव को बचाना चाहते हैं तो रिबैलेंसिंग करना जरूरी है।

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क्यों बिगड़ जाता है एसेट एलोकेशन?
बाजार स्थिर नहीं रहता। मान लीजिए आपने इस साल की शुरुआत में 10 लाख रुपये निवेश किए, 6 लाख रुपये शेयरों में और 4 लाख रुपये एफडी या बॉन्ड में। इस साल शेयर बाजार करीब 10% चढ़ गया। ऐसे में आपके 6 लाख रुपये बढ़कर 6.6 लाख रुपये हो गए। वहीं, एफडी पर 7% की दर से आपको लगभग 4.28 लाख रुपये मिले।

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अब आपका कुल पोर्टफोलियो लगभग 10.88 लाख रुपये का हो गया और एसेट एलोकेशन बदलकर करीब 61:39 हो गया। देखने में यह ज्यादा अंतर नहीं लगता, लेकिन याद रखिए, जैसे-जैसे इक्विटी का हिस्सा बढ़ता है, वैसे-वैसे उतार-चढ़ाव का जोखिम भी बढ़ जाता है। अगर आगे चलकर बाजार 10% गिरता है, तो आपके बढ़े हुए इक्विटी हिस्से पर असर ज्यादा पड़ेगा। रिबैलेंसिंग इसी जोखिम को मैनेज करने की कवायद है।

क्यों जरूरी है रिबैलेंसिंग?
बाजार में कुछ एसेट्स तेजी से बढ़ते हैं, तो कुछ सुस्त पड़ जाते हैं। इससे आपका पोर्टफोलियो टॉप-हैवी हो जाता है। रिबैलेंसिंग का मतलब है, मुनाफे को सुरक्षित करना और जोखिम को कम करना। यह अनुशासन ही आपको लंबी अवधि के लक्ष्यों के करीब रखता है।

रिबैलेंसिंग के 4 बड़े फायदे

  • मुनाफा वसूली: यह आपको ऊंचे भाव पर बेचने और गिरे हुए भाव पर खरीदने के लिए मजबूर करता है।
  • जोखिम नियंत्रण: बाजार की गिरावट में आपका पूरा पैसा डूबने से बच जाता है, क्योंकि आपने समय पर मुनाफा सुरक्षित कर लिया था।
  • अनुशासन: यह लालच और डर की भावना को खत्म कर देता है।
  • टैक्स हार्वेस्टिंग: दिसंबर के अंत में रिबैलेंसिंग करने से आप सालाना 1.25 लाख रुपये तक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन का टैक्स बेनेफिट भी ले सकते हैं।

कैसे करें शुरुआत?

  • एसेट क्लास चेक करें: देखें कि लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप का बैलेंस कैसा है। स्मॉल कैप में अक्सर बहुत ज्यादा उछाल आता है, वहां से मुनाफा निकालना समझदारी है।
  • अंडरपरफॉर्मर को बाहर निकालें: उन स्टॉक्स या फंड्स को बेच दें, जो लगातार इंडेक्स से कम रिटर्न दे रहे हैं।
  • लक्ष्य से जोड़ें: अगर आपका लक्ष्य 2 साल बाद घर खरीदना है, तो पैसा इक्विटी से निकालकर डेट में धीरे-धीरे शिफ्ट करना शुरू करें।
  • 2026 का रोडमैप: 12 लाख रुपये तक की इनकम टैक्स छूट और GST स्लैब को तर्कसंगत बनाने जैसे फैसलों से एक बात तय है कि 2026 खपत का साल होने वाला है।

कब और कितनी बार करें रिबैलेंसिंग?
खुदरा निवेशकों के लिए सालाना रिबैलेंसिंग पर्याप्त है। बार-बार पोर्टफोलियो को छेड़ने से ट्रांजेक्शन कॉस्ट और शॉर्ट-टर्म टैक्स का बोझ बढ़ता है। रिबैलेंसिंग का मतलब ये नहीं है कि आप हर महीने खरीद-बिक्री करें। साल में एक बार, खासकर दिसंबर के आखिरी हफ्ते में अपने पोर्टफोलियो का आईना देखना काफी है।

निवेश सिर्फ पैसा लगाना नहीं
निवेशक अक्सर दो गलतियां करते हैं। पहली, वे रिबैलेंसिंग करते ही नहीं और जब बाजार गिरता है, तो वे सारा मुनाफा गंवा बैठते हैं। दूसरी, वे बहुत ज्यादा रिबैलेंसिंग करते हैं और अपना आधा मुनाफा टैक्स और ब्रोकरेज में दे देते हैं। निवेश केवल पैसा डालना नहीं है, उसे मैनेज करना भी है। 2026 में बाजार की दिशा पॉलिसी ड्रिवेन होगी। आप अभी भी उन सेक्टर्स में फंसे हैं जो 2025 में पिट चुके हैं, तो दिसंबर निकलने का सही मौका है।

किन सेक्टर्स पर रखें नजर?
ऑटो, FMCG और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स: जब लोगों के पास टैक्स बचेगा, तो वे गाड़ियां, फ्रिज और रोजमर्रा का सामान खरीदेंगे। रिटेल और रियल एस्टेट: खपत बढ़ने का सीधा फायदा इन सेक्टर्स को मिलेगा। बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विसेज: होम लोन और कंज्यूमर लोन की बढ़ती मांग इन्हें रडार पर रखेगी।

टैक्स हार्वेस्टिंग है ब्रह्मास्त्र
रिबैलेंसिंग करते समय बिना सोचे-समझे बेचना बेवकूफी है। यहां टैक्स एफिशिएंसी काम आती है। अगर कुछ शेयरों में घाटा है, तो उन्हें बेचकर लॉस बुक करें। इस घाटे को मुनाफे के खिलाफ एडजस्ट करें। इससे आपकी टैक्स देनदारी कम होगी और पोर्टफोलियो से कूड़ा भी साफ हो जाएगा।

2025 में कौन जीता, कौन हारा?
इस साल ने निवेशकों को काफी छकाया है। लार्ज-कैप शेयरों ने अपनी मजबूती दिखाई और पोर्टफोलियो को सहारा दिया। मिड-कैप और स्मॉल-कैप दबाव में रहे। आईटी, रियल एस्टेट, मीडिया और कंज्यूमर सेक्टर ने उम्मीदों पर पानी फेरा। कमजोर अर्निंग्स और वैश्विक अनिश्चितता ने इन सेक्टर्स की कमर तोड़ दी।

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