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PM-EAC: 'अगली पीढ़ी पर कर्ज का बोझ डाल रहे हैं हम', रेवड़ी कल्चर और पुरानी पेंशन स्कीम पर क्या बोले सान्याल

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कुमार विवेक Updated Sat, 27 Dec 2025 07:59 PM IST
सार

EAC-PM के सदस्य संजीव सान्याल ने 'रेवड़ी कल्चर' और पुरानी पेंशन स्कीम को भविष्य के लिए 'वित्तीय खतरा' बताया है। जानें क्यों उन्होंने इसे अगली पीढ़ी पर कर्ज का बोझ कहा और फ्रांस का उदाहरण दिया।

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PM-EAC Member says Multi-alignment is active global engagement, fundamentally different from non-alignment
अर्थशास्त्री संजीव सान्याल - फोटो : ANI
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विस्तार
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प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य और वरिष्ठ अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने देश की आर्थिक नीतियों, विशेषकर 'मुफ्त की रेवड़ी' कल्चर और पुरानी पेंशन योजनाओं की वापसी को लेकर एक गंभीर चेतावनी जारी की है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि बिना सोचे-समझे बांटी जा रही सब्सिडी और पेंशन के भारी-भरकम वादे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसा वित्तीय बोझ तैयार कर रहे हैं, जो भविष्य की अर्थव्यवस्था को खतरे में डाल सकता है। एएनआई को दिए एक विशेष साक्षात्कार में सान्याल ने 'कल्याणकारी सुरक्षा कवच' और 'राजनीति से प्रेरित रेवड़ी' के बीच की बारीक लकीर के बारे में बताया। 

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जो लोग पीछे छूट जाते हैं उन्हें सुरक्षा कवच देना जरूरी

संजीव सान्याल ने कहा कि भारत जैसे उद्यमी और जोखिम लेने वाले समाज में विफलता की संभावना हमेशा बनी रहती है। चाहे वह कोई स्टार्टअप हो या एक छोटी किराना दुकान, रिस्क हर स्तर पर है। ऐसे में, जो लोग विकास की दौड़ में पीछे छूट जाते हैं या असफल होते हैं, उनके लिए सरकार को एक सुरक्षा कवच देना जरूरी है। उन्होंने कहा, "मैं इस पक्ष में हूं कि गरीब तबके को ऊपर उठने के लिए सीढ़ी दी जाए। मुझे इससे कोई समस्या नहीं है।" सान्याल ने इसे 'असिस्टेड ट्रिकल-डाउन' का नाम दिया, यानी केवल आर्थिक विकास का इंतजार करने के बजाय, लोगों को ऊपर चढ़ने में मदद करना।

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हालांकि, उन्होंने अंधाधुंध बांटी जाने वाली मुफ्त सुविधाओं पर सवाल उठाए। महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, "यह 'टार्गेटेड' (लक्षित) मदद नहीं है। एक गरीब पुरुष भी सार्वजनिक परिवहन में उतनी ही सहायता का हकदार है, जितनी एक महिला। जब आप आर्थिक जरूरत के बजाय पहचान के आधार पर सुविधाएं बांटते हैं, तो यह वेलफेयर नहीं बल्कि 'रेवड़ी' है।"

सान्याल की सबसे बड़ी चिंता पुरानी शैली की उदार पेंशन योजनाओं की वापसी को लेकर थी। उन्होंने चेतावनी दी कि बदलती जनसांख्यिकी के साथ, ये वादे सरकारी खजाने पर भारी पड़ेंगे। उन्होंने समझाया, "आप प्रभावी रूप से अगली पीढ़ी के लिए देनदारियां पैदा कर रहे हैं। आज की पेंशन प्रणालियां अक्सर 'पे-एज-यू-गो' मॉडल पर आधारित हैं, यानी आज के राजस्व से भुगतान होता है। लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि लगभग 25 वर्षों बाद भारत की कामकाजी आबादी सिकुड़ने लगेगी।"

कामकाजी लोग घटेंगे तो बढ़ेगी परेशानी

सान्याल का तर्क है कि जब कामकाजी लोग कम होंगे और पेंशन पाने वाले बुजुर्ग ज्यादा, तो उस छोटी होती युवा आबादी पर पिछली पीढ़ी की पेंशन का आर्थिक भार डालना असंभव हो जाएगा। इस खतरे को समझाने के लिए उन्होंने यूरोप, विशेषकर फ्रांस का उदाहरण दिया। सान्याल ने कहा, "कई यूरोपीय देशों में रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 70 या 75 साल की जा रही है। फ्रांस में आज काम करने वालों से ज्यादा तादाद पेंशन पाने वालों की हो गई है।" उनका कहना है कि यदि भारत ने आज अपनी राजकोषीय हकीकत को नजरअंदाज किया, तो हम भी उसी दिशा में बढ़ सकते हैं।

संजीव सान्याल ने पुरानी पेंशन स्कीम की उम्मीद कर रहे युवा सिविल सर्वेंट्स को भी आगाह किया। उन्होंने कहा, "आप अपने कामकाजी जीवन के 35 वर्षों तक टैक्स देंगे, लेकिन जब आप रिटायर होकर कतार में सबसे आगे पहुंचेंगे, तो शायद आपको देने के लिए पैसा ही न बचे। यह अर्थशास्त्र का सीधा गणित है, जो अंततः काम नहीं करेगा।" सान्याल का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश में पुरानी पेंशन योजना (OPS) बनाम नई पेंशन योजना (NPS) को लेकर बहस छिड़ी हुई है। एक वरिष्ठ नीति सलाहकार के रूप में उनकी यह टिप्पणी बताती है कि अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए किए गए वादे भारत के दीर्घकालिक आर्थिक भविष्य के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं।

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