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MSME: एमएसएमई उद्योग को 45 दिन में मिलेगा भुगतान, विफल रहने पर कारोबारियों को खर्च के बजाय देना होगा कर
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: यशोधन शर्मा
Updated Mon, 01 Apr 2024 06:15 AM IST
सार
कोई व्यापारी 45 दिन में भुगतान नहीं करता है तो भुगतान वाली रकम को कमाई मान कर 30% आयकर लगेगा। इस रकम का अगले वित्त वर्ष में भुगतान किया जाता है तो फिर उस साल में कुल आयकर की देनदारी में इसे समाहित किया जाएगा।
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एमएसएमई
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विस्तार
सूक्ष्म, छोटे एवं मझोले यानी एमएसएमई उद्योगों को आज से किसी भी कारोबार का 45 दिन में पैसा मिल जाया करेगा। अगर कोई कारोबारी 45 दिन में भुगतान नहीं करता है तो उसके खाताबही में इस देनदारी को आय मान लिया जाएगा और इस पर उसे टैक्स देना होगा। हालांकि, अगर वह इसका देरी से भुगतान करता है तो उसे अगले वित्त वर्ष में टैक्स के सामने इस रकम को समायोजित किया जा सकता है।
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दरअसल, नए नियमों के तहत सेक्शन 43 बी (एच) को चालू वित्त वर्ष यानी 2024-25 से लागू किया जाना है जो एक अप्रैल से होगा। इसके तहत अगर एमएसएमई और कारोबारी के बीच करार हुआ है तो इस आधार पर एमएसएमई को 45 दिन में पैसा मिलना चाहिए। एमएसएमई के लिए तो वैसे यह नियम अच्छा है, पर उनको डर भी है कि इससे बड़े खरीदार उनसे सौदा तोड़ सकते हैं। वे किसी और साधन से खरीद सकते हैं। नियमों के मुताबिक, वो एमएसएमई जो सरकार के उद्यम में पंजीकृत नहीं हैं या ऐेसे कारोबार जो एमएसएमई में नहीं आते हैं, कारोबारी ऐसे लोगों से खरीद बढ़ा देंगे। क्योंकि यहां पर 45 दिन का नियम लागू नहीं है।
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वहीं, यूपी कपड़ा उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के अध्यक्ष अशोक मोतियानी का कहना है कि नए नियम को कारोबारी समझ नहीं पाए हैं। खुदरा कारोबार पहले से प्रभावित हैं। इस नियम को एक साल के लिए बढ़ाने की मांग वित्तमंत्री से की गई थी।
एक साल टालने की मांग
इससे पहले, फरवरी में कई राज्यों के उद्योग संगठनों से वित्त मंत्रालय से अपील की थी कि इस योजना को अगले वित्त वर्ष यानी अप्रैल, 2025 से लागू किया जाए। तब तक कारोबारी इसे समझ लेंगे और अपनी तैयारी कर लेंगे। लेकिन वित्त मंत्रालय ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया। वैसे जुलाई में पेश होने वाले पूर्ण बजट में यह संभावना है कि इस योजना को टाला जा सकता है।
30 फीसदी का आयकर लगेगा
कोई व्यापारी 45 दिन में भुगतान नहीं करता है तो भुगतान वाली रकम को कमाई मान कर 30% आयकर लगेगा। इस रकम का अगले वित्त वर्ष में भुगतान किया जाता है तो फिर उस साल में कुल आयकर की देनदारी में इसे समाहित किया जाएगा। इसमें भी पेंच यह है कि अगर किसी व्यापारी ने 10 लाख का माल खरीदा। अगर 7 लाख चुका दिया और 3 लाख बाकी रह गया। अगले साल अगर उसका कारोबार दो ही लाख का होता है तो फिर तीन लाख रुपये में से एक लाख रुपये उसके अगले साल समाहित करना होगा।