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भारतीय कंपनियों में प्रमोटर्स की हिस्सेदारी घटकर 40.58 फीसदी पर, डीआईआई व म्यूचुअल फंड्स हुए मजबूत

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: रिया दुबे Updated Mon, 04 Aug 2025 03:03 PM IST
सार

primeinfobase.com के आंकड़ों के अनुसार जून तिमाही के दौरान निजी सूचीबद्ध कंपनियों में प्रमोटर्स की हिस्सेदारी घटकर 40.58 प्रतिशत पर आ गई है। यह पिछले आठ वर्षों में सबसे निचला स्तर है। वहीं घरेलू संस्थागत निवेशकों और म्यूचुअल फंड्स की हिस्सेदारी लगातार बढ़ती जा रही है। 

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Promoters stake in Indian companies falls, DIIs and mutual funds strengthen
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : ANI
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विस्तार
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देश की निजी सूचीबद्ध कंपनियों में प्रमोटर्स की हिस्सेदारी में गिरावट दर्ज हुई है। यह 30 जून 2025 तक घटकर 40.58 प्रतिशत पर आ गई है, जो पिछले आठ वर्षों में सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट अप्रैल-जून तिमाही के दौरान कुल 54,732 करोड़ रुपये की नेट शेयर बिक्री के चलते दर्ज की गई। यह जानकारी प्राइम डाटाबेस ग्रुप की पहल, primeinfobase.com के आंकड़ों में सामने आई है। 

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प्रमोटरों के शेयर बिक्री के कई कारण

प्राइम डाटाबेस ग्रुप के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा कि प्रमोटरों द्वारा शेयरों की खरीद आमतौर पर कंपनी में भरोसे का संकेत माना जाता है। लेकिन प्रमोटरों द्वारा शेयरों की बिक्री कई कारणों से हो सकती है। जैसे कि प्रमोटर तेजी वाले बाजार का फायदा उठाकर पैसा निकाल लेते हैं, रणनीतिक कारण जैसे कर्ज में कमी, उत्तराधिरार योजना, परोपकार, अन्य क्षेत्रों में निवेश या न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (एमपीएस) की जरूरत पूरी करना और व्यक्तिगत खर्चों के लिए भी। 

उन्होंने कहा कि हाल ही में आईपीओ कंपनियों में अपेक्षाकृत कम प्रमोटर हिस्सेदारी और बाजार का तेजी से संस्थागत होते जाना भी इस गिरावट के अहम कारण हैं। इसका मतलब यह है कि अब कंपनियों में बड़े निवेशक म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियां, विदेशी निवेशक और अन्य संस्थान बनते जा रहे हैं, जिससे प्रमोटर्स का प्रतिशत घट रहा है। 

हल्दिया के अनुसार अगर प्रमोटर शेयर बिक्री के बाद भी कंपनी में काफी हद तक हिस्सेदारी बनाए रखते हैं, और यह बिक्री बाजार मूल्य की तुलना में भारी छूट पर नहीं होती। साथ ही कंपनी के मौलिक कारकों में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता, तो इसे लेकर चिंता की कोई बात नहीं है।

पिछले 13 तिमाहियों से 455 आधार अंकों की गिरावट 
यह प्रवृत्ति पिछले तीन वर्षों से लगातार बनी हुई है। पिछले 13 तिमाहियों में ही प्रमोटरों की हिस्सेदारी 31 मार्च, 2022 के 45.13 प्रतिशत से 455 आधार अंकों की तीव्र गिरावट के साथ 30 जून, 2025 तक 40.5 प्रतिशत हो गई। 

किसकी हिस्सेदारी में क्या आया बदलाव?

  • इस बीच, तिमाही के दौरान प्रवर्तकों के रूप में सरकार की हिस्सेदारी में मामूली वृद्धि देखी गई। यह 9.27 प्रतिशत से बढ़कर 9.39 प्रतिशत हो गई।
  • इसके अलावा घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) की हिस्सेदारी लगातार बढ़ती रही। यह 30 जून, 2025 तक 17.82 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई, जो पिछली तिमाही में 17.62 प्रतिशत थी। इस वृद्धि के पीछे तिमाही के दौरान 1.68 लाख करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश शामिल है।
  • व्यवस्थित निवेश योजनाओं (एसआईपी) के माध्यम से निरंतर खुदरा निवेश से उत्साहित म्यूचुअल फंडों ने इस उछाल में प्रमुख भूमिका निभाई। उनके 1.17 लाख करोड़ रुपये के शुद्ध निवेश ने एनएसई-सूचीबद्ध कंपनियों में म्यूचुअल फंडों की हिस्सेदारी को 10.56 प्रतिशत के नए शिखर पर पहुंचा दिया।
  • इसके विपरीत, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की हिस्सेदारी 17.22 प्रतिशत से घटकर 17.04 प्रतिशत रह गई। यह 13 वर्षों का न्यूनतम स्तर है, जबकि तिमाही के दौरान शुद्ध निवेश 38,674 करोड़ रुपये रहा।
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