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Britain: वर्तमान लेबर सरकार का दूसरा बजट आज, स्टार्मर के सामने राजस्व संकट व खर्च के दबाव से निपटने की चुनौती

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: रिया दुबे Updated Wed, 26 Nov 2025 12:45 PM IST
सार

कई हफ्तों की अटकलों के बाद ब्रिटेन की लेबर सरकार आज दूसरा बजट पेश करेगी। चांसलर राहेल रीव्स संसद में स्पष्ट संदेश देने कि तैयरी में हैं कि सार्वजनिक वित्त में आई कमी को पूरा करने के लिए कर बढ़ाने के और अधिक उपाय जरूरी हैं। आइए विस्तार से जानते हैं। 

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second budget of the current Labour government, with Starmer facing the challenge of revenue crisis
ब्रिटेन - फोटो : Adobestock
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विस्तार
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ब्रिटेन की लेबर सरकार के दूसरे बजट को लेकर हफ्तों से जारी अटकलों पर विराम लग जाएगा। जुलाई 2024 में 14 साल बाद भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी लेबर पार्टी बुधवार को अपना दूसरा बजट पेश करने जा रही है। 

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सार्वजनिक वित्त में आई कमी को पूरा करने के लिए किए जाएंगे उपाय

ब्रिटेन की पहली महिला चांसलर राहेल रीव्स संसद में स्पष्ट संदेश देने कि तैयरी में हैं कि सार्वजनिक वित्त में आई कमी को पूरा करने के लिए कर बढ़ाने के और अधिक उपाय जरूरी हैं। रीव्स इससे पहले भी, अपने पहले बजट, जो करीब एक साल पहले पेश हुआ था में यही चेतावनी दे चुकी हैं। उन्होंने दावा किया था कि यह बजट इस संसद कार्यकाल का एकमात्र कर-वृद्धि वाला बजट होगा। मौजूदा संसद का कार्यकाल 2029 तक चलना है। 

ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के सामने खड़ी है कई चुनौती

दुर्भाग्य से, दुनिया की छठी सबसे बड़ी ब्रिटिश अर्थव्यवस्था, रीव्स की उम्मीदों के मुताबिक नहीं चल रही है। कई आलोचक पिछले साल व्यवसायों पर कर लगाने के उनके फैसले को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। हालांकि इस साल की पहली छमाही में अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत मिले थे, जब यह G7 के प्रमुख औद्योगिक देशों में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था थी, लेकिन अब यह फिर से लड़खड़ा गई है।


परामर्श फर्म ईवाई यूके के मुख्य अर्थशास्त्री पीटर अर्नोल्ड ने कहा कि चांसलर के सामने सबसे बड़ी चुनौती वित्तीय स्थिरता का भरोसा दिलाते हुए विकास एजेंडा को आगे बढ़ाने की होगी। 

ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था कई बार झूठे सुधार संकेतों का शिकार रही

2008-09 की वैश्विक वित्तीय मंदी के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था कई बार झूठे सुधार संकेतों का शिकार रही है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर अर्थव्यवस्था संकट से पहले की रफ्तार से बढ़ती रहती, तो आज यह करीब 25% बड़ी होती, जिसका मतलब है बड़े पैमाने पर छूटा हुआ आर्थिक उत्पादन और खजाने में आने वाले अरबों पाउंड का गंवाया हुआ कर राजस्व।

लंबे समय से चले आ रहे वित्तीय संकट के प्रभावों के अलावा, ब्रिटेन की सार्वजनिक वित्त व्यवस्था पर कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा लगाए गए वैश्विक टैरिफ का भी गहरा असर पड़ा है।

ईयू से बाहर निकलने से झेलनी पड़ी दोहरी मार

इसके साथ ही, देश पर ब्रेक्सिट का अतिरिक्त बोझ भी है, 2020 में यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद से ब्रिटिश अर्थव्यवस्था अरबों पाउंड की क्षति झेल चुकी है, जिससे वित्तीय दबाव और बढ़ गया है।

खर्चों की सूची बजट संतुलन को और चुनौतीपूर्ण बनाती है

रीव्स के सामने खर्चों की लंबी सूची भी है, जो उनके बजट संतुलन को और चुनौतीपूर्ण बनाती है। कल्याणकारी योजनाओं में प्रस्तावित कटौतियों पर बार-बार यू-टर्न लेने और बड़े परिवारों को मिलने वाले चाइल्ड बेनिफिट पर मौजूद सीमा को हटाने की संभावना ने सरकार पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है।

इसके साथ ही, लगातार ऊंची बनी महंगाई के बीच रीव्स जीवन-यापन की लागत पर दबाव को कम करने के लिए राहत देना चाहती हैं। रेल किराए न बढ़ाना, या ऊर्जा बिलों पर लगाए गए ग्रीन टैक्स में कटौती जैसे कदम जनता के लिए राहत भले हों, लेकिन सरकार के खजाने पर भारी खर्च डालते हैं।

कुल मिलाकर, अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि रीव्स को 20 से  30 अरब पाउंड (26 से 39 अरब डॉलर) तक की अतिरिक्त राशि जुटाने की जरूरत पड़ेगी। हफ्तों की अटकलों के बावजूद आयकर दरों में सीधे बढ़ोतरी, जो पार्टी के घोषणापत्र के खिलाफ मानी जाती, लगभग खारिज मानी जा रही है। ऐसे में चांसलर को छोटी-छोटी लेकिन जटिल कर व्यवस्थाओं से राजस्व जुटाने पर भरोसा करना होगा।

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