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Byju's: अमेरिकी कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में IRP पर लगाया बड़ा आरोप, कहा- बकाएदारों की सूची से हमारा नाम हटाया
बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कुमार विवेक
Updated Tue, 17 Sep 2024 08:22 PM IST
सार
अमेरिकी कंपनी ग्लास ट्रस्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, "मैं गारंटर हूं, जिसकी कंपनी (बायजू) में 12,000 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी है। मेरी हिस्सेदारी 99.41 प्रतिशत है और आईआरपी ने इसे घटाकर शून्य कर दिया।"
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बायजू
- फोटो : X.com: @BYJUS
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विस्तार
अमेरिकी ऋणदाता ग्लास ट्रस्ट ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि एड-टेक कंपनी बायजू के खिलाफ दिवाला कार्यवाही से निपटने वाले अंतरिम समाधान पेशेवर (आईआरपी) ने उसे गलत तरीके से ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) से हटा दिया।
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अमेरिकी कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष ये दलीलें दीं। पीठ ने इस बेहद विवादित मामले की सुनवाई शुरू की।
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सिब्बल ने कहा, "मैं गारंटर हूं, जिसकी कंपनी (बायजू) में 12,000 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी है। मेरी हिस्सेदारी 99.41 प्रतिशत है और आईआरपी ने इसे घटाकर शून्य कर दिया।" उन्होंने कहा कि जिनके पास 0.59 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, अब उनके पास 100 प्रतिशत हिस्सेदारी है। उन्होंने कहा, "मैं नहीं चाहता कि आईआरपी आगे बढ़े।"
अमेरिकी कंपनी ने कहा है कि नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने इस आधार पर कि याचिकाएं शीर्ष अदालत में लंबित हैं, आईआरपी पंकज श्रीवास्तव के खिलाफ उसकी नई याचिका पर कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। सिब्बल ने सीओसी से जुड़ी कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की।
इसके बाद पीठ ने अमेरिकी कंपनी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान से मुख्य मामले में दलीलें शुरू करने को कहा और बुधवार को सुनवाई फिर से शुरू करने को कहा। पीठ ने 11 सितंबर को कहा था कि वह एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ अमेरिकी कंपनी की अपील पर 17 सितंबर को सुनवाई करेगी। उससे पहले एनसीएलएटी ने बायजू के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाये के निपटान को मंजूरी दे दी थी।
इससे पहले 22 अगस्त को पीठ ने यह सुनिश्चित करने के लिए अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था कि संकटग्रस्त एड-टेक फर्म के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही के सिलसिले में ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) कोई बैठक नहीं करेगी।
पीठ ने कहा था कि इस बीच जो भी घटनाक्रम घटित हो सकते हैं, उन्हें नकारा जा सकता है, यदि उसे लगता है कि अपीलीय दिवाला न्यायाधिकरण एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ अमेरिका स्थित ऋणदाता की अपील में कोई दम नहीं है।
इस याचिका का उल्लेख इससे पहले 20 अगस्त को बायजू और बीसीसीआई द्वारा भी किया गया था और तब शीर्ष अदालत ने एड-टेक फर्म के खिलाफ दिवाला कार्यवाही में ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) गठित करने से दिवाला समाधान पेशेवर (आईआरपी) को रोकने के लिए अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।
बायजू को बड़ा झटका देते हुए शीर्ष अदालत ने 14 अगस्त को एनसीएलएटी के उस फैसले पर रोक लगा दी थी जिसमें एड-टेक प्रमुख के खिलाफ दिवाला कार्यवाही को रद्द कर दिया गया था और भारतीय क्रिकेट बोर्ड के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया भुगतान को मंजूरी दे दी गई थी।
एनसीएलएटी का 2 अगस्त का फैसला बायजू के लिए बड़ी राहत लेकर आया था, क्योंकि इससे इसके संस्थापक बायजू रवींद्रन को नियंत्रण वापस मिल गया था। शीर्ष अदालत ने हालांकि प्रथम दृष्टया एनसीएलएटी के फैसले को "अविवेकपूर्ण" करार दिया था। अदालत ने दिवाला अपीलीय न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ एड-टेक फर्म के अमेरिकी ऋणदाता की अपील पर बायजू और अन्य को नोटिस जारी करते हुए इसके संचालन पर रोक लगा दी थी।
यह मामला बीसीसीआई के साथ प्रायोजन सौदे से संबंधित 158.9 करोड़ रुपये के भुगतान में बायजू के चूकने से उपजा था। शीर्ष अदालत ने बीसीसीआई को निर्देश दिया था कि वह बायजू से समझौते के बाद प्राप्त 158 करोड़ रुपये की राशि को अगले आदेश तक एक अलग एस्क्रो खाते में रखे।
पीठ ने कहा था, "नोटिस जारी करें। अगले आदेश तक एनसीएलएटी के 2 अगस्त के आदेश पर रोक रहेगी। इस बीच, बीसीसीआई 158 करोड़ रुपये की राशि को, जो एक समझौते के तहत प्राप्त होगी, अगले आदेश तक एक अलग एस्क्रो खाते में रखेगा।"
बायजू ने 2019 में बीसीसीआई के साथ "टीम प्रायोजक समझौता" किया था। इस समझौते के तहत, एड-टेक फर्म को भारतीय क्रिकेट टीम की किट पर अपना ब्रांड प्रदर्शित करने के लिए विशेष अधिकार और कुछ अन्य लाभ मिले थे। बायजू को प्रायोजन शुल्क देना पड़ा था। कंपनी इन खर्चों का 2022 के मध्य तक वहन किया पर उसके बाद वह 158.9 करोड़ रुपये का भुगतान करने में चूक गया। उसके बाद जब कंपनी के खिलाफ दिवालियापन कार्यवाही शुरू की गई तो कंपनी ने बीसीसीआई के साथ समझौता किया था।