What Crisil Says: वैश्विक संकट के बीच क्या खुद को संभाल पाएगी भारत की अर्थव्यवस्था? जानें रिपोर्ट का दावा
क्रिसिल का कहना है कि दुनिया में आर्थिक अनिश्चितता के बावजूद भारत की स्थिति फिलहाल ठीक बनी रहेगी। कच्चे तेल के दाम कम होने से आयात पर खर्च घटेगा। सेवाओं का निर्यात अच्छा रहेगा और विदेशों में काम करने वाले भारतीयों से आने वाला पैसा भी स्थिर रहेगा। इसी वजह से भारत का चालू खाता घाटा बहुत ज्यादा नहीं बढ़ेगा और देश की अर्थव्यवस्था संतुलन में बनी रह सकती है। आइए विस्तार से जानते हैं।
विस्तार
भारत के चालू खाता घाटे (सीएडी) को लेकर राहत की खबर है। क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक आर्थिक चुनौतियों और वस्तु निर्यात पर दबाव के बावजूद भारत का CAD वित्त वर्ष 2026 में बहुत ज्यादा नहीं बढ़ेगा। इसके पीछे कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट, सेवाओं के निर्यात में अधिशेष और स्थिर रेमिटेंस को प्रमुख वजह बताया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 में भारत का CAD औसतन जीडीपी के 1 फीसदी के आसपास रह सकता है, जबकि वित्त वर्ष 2025 में यह 0.6 फीसदी था। हालांकि अमेरिका की टैरिफ नीति और वैश्विक आर्थिक सुस्ती के कारण वस्तु निर्यात पर दबाव रहने की संभावना है, लेकिन आयात पक्ष और अदृश्य आय पक्ष से मिलने वाला सहारा घाटे को सीमित रखेगा।
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क्या होता है चालू खाता घाटा ?
जब किसी देश का आयात (सामान, सेवाएं और ट्रांसफर) उसके निर्यात से ज्यादा हो जाता है, तो उसे चालू खाता घाटा कहा जाता है। इसका मतलब होता है कि देश से बाहर शुद्ध रूप से धन का प्रवाह हो रहा है।
क्रिसिल का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट, सेवाओं के निर्यात में लगातार सरप्लस और विदेशों से आने वाली मजबूत रेमिटेंस सीएडी को काबू में रखने में मदद करेंगी। इसी का असर है कि वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही में सीएडी घटकर जीडीपी के 1.3 फीसदी पर आ गया, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 2.2 फीसदी था।
कच्चे तेल से बड़ी राहत
कमोडिटी मोर्चे पर रिपोर्ट का अनुमान है कि कैलेंडर वर्ष 2026 में कच्चे तेल की औसत कीमत 60-65 डॉलर प्रति बैरल रह सकती है, जबकि 2025 में यह 65-70 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान था। नवंबर में ब्रेंट क्रूड की औसत कीमत 63.6 डॉलर प्रति बैरल रही, जो महीने-दर-महीने 1.6 फीसदी और साल-दर-साल 14.5 फीसदी की गिरावट है। इससे भारत का आयात बिल घटने और बाहरी स्थिरता मजबूत होने की उम्मीद है।
राजकोषीय स्थिति पर भी नजर
रिपोर्ट में सरकार की वित्तीय स्थिति का भी आकलन किया गया है। केंद्रीय बजट में वित्त वर्ष 2026 के लिए राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.4 फीसदी तक लाने का लक्ष्य रखा गया है, जो 2025 में 4.8 फीसदी था। सरकार ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए साल के दूसरे हिस्से में 6.77 लाख करोड़ रुपये उधार लेने की योजना बनाई है। पूरे साल का सकल बाजार उधार अनुमानित रूप से 14.7 लाख करोड़ रुपये है, जो सालाना आधार पर 5 फीसदी अधिक है।
हालांकि अक्तूबर तक राजकोषीय घाटा पूरे साल के लक्ष्य का 52.6 फीसदी तक पहुंच चुका था, जो पिछले साल इसी अवधि में 46.5 फीसदी था। इसकी वजह कम टैक्स कलेक्शन और ज्यादा पूंजीगत खर्च रही। फिर भी, गैर-कर राजस्व में बढ़ोतरी और राजस्व खर्च में कमी ने घाटे को और बढ़ने से रोका।
कुल मिलाकर, क्रिसिल का मानना है कि अनुकूल वैश्विक कारक और संतुलित राजकोषीय प्रबंधन भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी स्थिर बनाए रखने में मदद करेंगे।