Year Ender 2025: बाजार का ट्रंप टैरिफ को करारा जवाब, जानें दलाल स्ट्रीट ने कैसे तोड़ा विदेशी निर्भरता का भ्रम
Year Ender 2025: ट्रंप टैरिफ के अमल में आने के बावजूद सेंसेक्स-निफ्टी 2025 के अंत में लगभग रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गया। जानें कैसे घरेलू निवेशकों ने टैरिफ के काट के रूप में विदेशी निर्भरता को तोड़ा और बाजार को सहारा दिया। इस बीच आईटी सेक्टर ने भी अपने प्रदर्शन से चौंकाया। पढ़ें 2025 के बाजार का पूरा सार।
विस्तार
विश्लेषकों ने टैरिफ के कारण भारतीय बाजार में भारी गिरावट की चेतावनी दी थी। लेकिन 2025 के जाते-जाते हम देख रहे हैं भारतीय शेयर बाजार तुलनात्मक रूप से स्थिर बना हुआ है। अगर अगस्त 2025 में किसी ने दलाल स्ट्रीट पर यह भविष्यवाणी की होती कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारतीय निर्यात पर 50% तक का 'रेसिप्रोकल टैरिफ' लगाने के बावजूद साल के अंत तक बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर होगा, तो शायद किसी को इस बात का भरोसा नहीं होता।
22 दिसंबर 2025 को बीएसई सेंसेक्स 85,412 और निफ्टी 26,126 के ऐतिहासिक स्तर पर हैं। यह सिर्फ आंकड़े नहीं हैं; यह भारतीय बाजार के उस अभूतपूर्व लचीलेपन की कहानी है, जिसने वैश्विक बाजार में उथल-पुथल के कारण बिकवाली के सबसे बड़े डर को भी खारिज कर दिया है।
घरेलू निवेशकों ने बाजार का किला ढहने से बचाया
इस साल बाजार के लिहाज से सबसे खास बात बाजार की चाल नहीं, बल्कि इसकी मजबूत चाल का कारण है। 2025 वह साल साबित हुआ जब भारतीय बाजार ने विदेशी निर्भरता को धता बताते हुए अपने पैरों पर खड़ा होना सीखा है। आंकड़े बताते हैं कि निफ्टी 50 ने सेंसेक्स की तुलना में थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया है, जिसका मुख्य कारण व्यापक बाजार में चुनिंदा पीएसयू और फार्मा शेयरों का योगदान रहा। बैंक निफ्टी का लगभग 23% का उछाल यह दर्शाता है कि निर्यात चुनौतियों के बावजूद, घरेलू ऋण वृद्धि और बैंकों की बैलेंस शीट की सफाई ने वित्तीय क्षेत्र को एक सुरक्षित पनाहगाह (Safe Haven) बना दिया।
अगस्त में जब ट्रंप के टैरिफ फैसलों और भू-राजनीतिक तनाव के कारण विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) बिकवाली कर रहे थे, तब घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने मोर्चा संभाला। 22 दिसंबर 2025 के सत्र में भी DIIs की ओर से 5,722 करोड़ रुपये की खरीदारी यह साबित करती है कि भारतीय बाजार अब विदेशी पूंजी के प्रवाहका मोहताज नहीं रहा। घरेलू निवेशकों का यह विश्वास एक ऐसे 'किले' में तब्दील हो गया है जिसे भेदना पूरी दुनिया से आने वाले नकारात्मक आर्थिक रुझानों के लिए भी मुश्किल हो गया है।
विदेशी निवेशकों की वापसी और 'गोल्डीलॉक्स' इकोनाॅमी
साल का अंत होते-होते हवा का रुख बदलता दिख रहा है। 19 दिसंबर 2025 को FIIs की ओर से 1,830 करोड़ रुपये की शुद्ध खरीदारी एक बड़ा संकेत है। ऐसा लगता है कि विदेशी निवेशक अब टैरिफ के शुरुआती डर से उबर चुके हैं और भारत की 'गोल्डीलॉक्स इकोनॉमी' (उच्च वृद्धि, नियंत्रित महंगाई) के आकर्षण को नजरअंदाज नहीं कर पा रहे हैं।
इस बारे में जियोजित इन्वेस्टमेंट्स के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट, वीके विजयकुमार का मानना है कि भारतीय रुपया बड़ी गिरावट के बाद थमता दिख रहा हैञ यह 90 रुपये प्रति डॉलर के मनोवैज्ञानिक दबाव से उबरकर अब 89.45 पर स्थिर है और FIIs की वापसी एक मजबूत ईयर-एंड रैली का आधार तैयार कर रही है।
आईटी सेक्टर में दिखा विरोधाभास
2025 में बाजार में दिलचस्प पहेली आईटी सेक्टर साबित हुआ। सामान्य आर्थिक समझ कहती है कि अगर अमेरिका संरक्षणवादी नीतियां अपनाता है, तो भारतीय आईटी कंपनियों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट रही। दिसंबर में इंफोसिस, एचसीएल टेक और टेक महिंद्रा जैसे दिग्गजों आईटी शेयरों ने बाजार की अगुवाई की। इसके पीछे का गणित सीधा है- टैरिफ के कारण अमेरिकी कंपनियों पर लागत का दबाव बढ़ा है, और उस लागत को कम करने के लिए उन्होंने 'आउटसोर्सिंग' का सहारा लिया है। यह एक क्लासिक उदाहरण है कि कैसे बाजार धारणाओं पर नहीं, बल्कि मुनाफे के तर्क पर चलता है।
सुस्ती के संकेत और तकनीकी तस्वीर
बाजार में स्थिरता के बीच तस्वीर पूरी तरह से अच्छी है ऐसा भी नहीं है। इनपुट लागत के दबाव और कुछ राज्यों में निर्माण गतिविधियों में आई अस्थायी सुस्ती के कारण सीमेंट और पावर ग्रिड जैसे सेक्टर साल के अंत में संघर्ष करते दिखे। यह बताता है कि जमीनी स्तर पर कुछ चुनौतियां अभी बरकरार हैं।
तकनीकी चार्ट्स पर नजर डालें तो निफ्टी ने 26,000 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर लिया है और "हायर हाई, हायर लो" का पैटर्न बना रहा है, जो एक स्थापित 'बुल रन' का संकेत है। हालांकि, आलोचक तर्क दे रहे हैं कि वैल्युएशन महंगे हैं, लेकिन जब तक मजबूत जीडीपी के आंकड़े इसका समर्थन कर रहे हैं, बाजार किसी भी बड़ी गिरावट को पचाने की क्षमता रखता है। वर्ष 2025 को इतिहास में उस साल के तौर पर याद किया जाएगा जब भारतीय शेयर बाजार ने 'ट्रंप ट्रेड' के डर को न केवल खारिज किया, बल्कि घरेलू पैसे की ताकत के दम पर अपनी शर्तों पर नई ऊंचाइयां छुईं।