Report: 'दर कटौती से क्या मांग और खपत में होगी बढ़त', नुवामा की रिपोर्ट में उठाए गए सवाल
नुवामा की एक रिपोर्ट में आरबीआई के फैसलों को लेकर चिंता जाहिर की है। इसमें कहा गया है कि मांग बढ़ने के रास्ते कमजोर होने से ब्याज दरों में कटौती का कम असर देखने को मिल सकता है।
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भारतीय रिजर्व बैंक के फैसलों पर नुवामा ने अपनी एक रिपोर्ट में सवाल उठाए गए हैं। इस साल रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति में बड़ा बदलाव करते हुए ब्याज दरों और क्रेडिट रिजर्व रेशियो में 100 आधार अंकों की कटौती की है। केंद्रीय बैंक के अनुसार इन कदमों से वित्तीय प्रणाली में भारी मात्रा में नकदी (तरलता) का संचार हुआ है। हालांकि, ब्रोकरेज फर्म नुवामा की रिपोर्ट में इस कदम के बाद मांग और खपत के बारे में चिंता जताई गई है। रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि इस लिक्विडिटि को पैसे में कौन बदलेगा? इसमें कहा गया कि अगर मांग नहीं बढ़ी तो रिजर्व बैंक के फैसलों का असर सीमित रह सकता है।
कर राजस्व वृद्धि जीडीपी से नीचे खिसक रही
रिपोर्ट में कहा गया कि ऐतिहासिक रूप से मौद्रिक नीतियों के असर तभी प्रभावी होते हैं, जब उन्हें राजकोषीय प्रोत्साहन या निर्यात में सुधार से मदद मिलती है। ऐसे में, वर्तमान स्थिति दोनों के लिए चुनौती पैदा करती नजर आ रही है। कर राजस्व वृद्धि जीडीपी वृद्धि से नीचे खिसक रही है। ऐसे में सरकार ऋण लेने से बच रही है और खर्च को सीमित करने की कोशिश कर रही है।
कॉपोरेट सेक्टर और घरेलू क्षेत्र की क्षमता हुई धीमी
रिपोर्ट के अनुसार, कॉपोरेट सेक्टर के पास इस समय पैसे तो हैं लेकिन मांग कम है। इसलिए कंपनियां ज्यादा खर्च करना नहीं चाहतीं। इस कारण पूंजी में निवेश धीमी हो गई है। रिपोर्ट के अनुसार घरेलू क्षेत्र में मांग बढ़ने की उम्मीद की जा रही है, लेकिन वह कम आमदनी और कर्ज के बोझ से पहले ही जूझ रहा है।
मौजूदा आर्थिक हालात ने मांग के रास्ते कमजोर किए
रिपोर्ट में कहा गया कि आरबीआई का कदम पहले जिताना असरदार नहीं रहा। 2002 और 2008 में जब दरों को घटाया गया था, तब सरकार ने भी खुलकर खर्च किया था और निर्यात में भी जबरदस्त बढ़ोतरी हुई थी। इस बार न सरकार ज्यादा खर्च कर रही है और न ही वैश्विक व्यापार में तेजी है। मौजूदा आर्थिक हालात में केवल दर कटौती से जल्दी रिकवरी की उम्मीद कम है, क्योंकि मांग बढ़ाने के रास्ते कमजोर हैं।
जीएसटी का बड़ा हिस्सा आयात कर से आया
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि जीएसटी के पिछले दो आंकड़ों ने सकारात्मक रूप से आश्चर्यचकित किया है। अब देखना है कि क्या यह बरकरार रहता है। 2025 के अप्रैल और मई महीने में 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर संग्रह हुआ लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा आयात पर लगे कर से आया।