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भारत-न्यूजीलैंड एफटीए: महज एक समझौता या नई आर्थिक रणनीति? क्या 2030 तक दोगुना हो पाएगा व्यापार
बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कुमार विवेक
Updated Mon, 22 Dec 2025 01:58 PM IST
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सार
India-New Zealand FTA: भारत-न्यूजीलैंड एफटीए केवल शुल्क कटौती नहीं, बल्कि गहरे आर्थिक सहयोग का रणनीतिक ढांचा है। जानें कैसे यह समझौता 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने और सेवा क्षेत्र व निवेश को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है।
भारत-न्यूजीलैंड मुक्त व्यापार समझौता
- फोटो : amarujala.com
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विस्तार
भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुआ मुक्त व्यापार समझौता केवल शुल्क कटौती तक सीमित एक सामान्य व्यापारिक सौदा नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों के बीच गहरे आर्थिक सहयोग की नींव है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में इस समझौते को 'व्यापारिक सफलता' से अधिक 'रणनीतिक ढांचे' के रूप में परिभाषित किया है। थिंक टैंक का कहना है कि इस समझौते का वास्तविक प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों देश शुल्कों से परे जाकर जमीनी स्तर पर अपने आर्थिक संबंधों को कैसे मजबूत करते हैं।
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'वॉल्यूम' नहीं, 'रणनीति' है असली मकसद
जीटीआरआई के नोट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 में 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सीमित द्विपक्षीय व्यापार को देखते हुए, यह एफटीए वॉल्यूम से अधिक रणनीति पर केंद्रित है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है, "सीमित व्यापार के पैमाने को देखते हुए, भारत-न्यूजीलैंड एफटीए एक बड़े व्यापारिक ब्रेकथ्रू की तुलना में गहरे सहयोग की रुपरेखा अधिक है।" विशेषज्ञों का मानना है कि केवल एफटीए पर हस्ताक्षर करने से आर्थिक संबंधों की पूरी क्षमता अनलॉक नहीं होगी। इसके लिए आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण, सेवा क्षेत्र का विस्तार और शिक्षा व कौशल साझेदारी को गहरा करना अनिवार्य होगा।
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डेयरी और फार्मा: पारंपरिक व्यापार से आगे की सोच
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जहाँ न्यूजीलैंड 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' शुल्कों पर भी भारत को डेयरी और बागवानी उत्पादों का निर्यात बढ़ा सकता है, वहीं भारत के पास फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल और आईटी सेवाओं के निर्यात को बढ़ाने का बड़ा मौका है। हालांकि, जीटीआरआई ने जोर देकर कहा कि वेलिंगटन (न्यूजीलैंड) को केवल वस्तुओं तक सीमित न रहकर भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए शिक्षा, पर्यटन और एविएशन ट्रेनिंग जैसी सेवाओं में विविधता लानी चाहिए।
तीन लाख भारतीयों के 'डायस्पोरा' मिलेगी मदद
इस साझेदारी में 'पीपल-टू-पीपल' कनेक्ट एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। न्यूजीलैंड में 3,00,000 से अधिक भारतीय मूल के लोग रहते हैं, जो वहां की आबादी का लगभग 5 प्रतिशत हैं। जीटीआरआई का मानना है कि यह डायस्पोरा व्यापार और निवेश के लिए एक मजबूत सेतु का काम करेगा। आसान वीजा नियम, छात्रों के लिए तेज रास्ते और कम शिक्षा लागत से सेवा व्यापार को और बढ़ावा मिल सकता है।
2030 तक व्यापार का लक्ष्य दोगुना करना
भविष्य की ओर देखते हुए, जीटीआरआई ने सुझाव दिया है कि दोनों देशों को इस एफटीए को एक स्थिर मंच के रूप में उपयोग करते हुए 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य रखना चाहिए। यह चुनिंदा उत्पादों पर शुरुआती शुल्क राहत, मजबूत व्यावसायिक जुड़ाव और कृषि, वानिकी, फिनटेक और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। इस दिशा में 'इंडिया-न्यूजीलैंड बिजनेस काउंसिल' की भूमिका अहम होगी। इसके अलावा, सीधी उड़ानें और पेशेवर योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता (विशेषकर आईटी, स्वास्थ्य सेवा और विमानन में) से आवाजाही और आसान होगी।
नीचे जानिए समझौते की खास बातें
भारत और न्यूजीलैंड ने 22 दिसंबर, 2025 को इन वार्ताओं को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है और 2026 की शुरुआत में इस समझौते पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। यह 2020 के बाद से भारत का सातवां व्यापार समझौता है। आइए इस की प्रमुख बातों के बारे में।
- शुल्क कटौती: न्यूजीलैंड 100% टैरिफ लाइनों पर शुल्क समाप्त करेगा, जबकि भारत ने संवेदनशील कृषि उत्पादों (जैसे डेयरी) के लिए सुरक्षा उपाय रखते हुए 70% टैरिफ लाइनों को खोला है।
- व्यापार के आंकड़े: वित्त वर्ष 2025 में, भारत ने न्यूजीलैंड को 711.1 मिलियन डॉलर का निर्यात किया (एविएशन फ्यूल, टेक्सटाइल, फार्मा), जबकि आयात 587.1 मिलियन डॉलर रहा (कच्चा माल, स्क्रैप मेटल, कोयला)।
- व्यापक दायरा: यह एफटीए 20 अध्यायों को कवर करता है, इसमे निवेश, छोटे व मध्यम उद्योग, बौद्धिक संपदा अधिकार, स्थिरता और पारंपरिक ज्ञान शामिल हैं। जीटीआरआई के अनुसार गतिशीलता, सेवाओं और निवेश को केंद्र में रखकर इस व्यापार समझौते को एक व्यापक और विविध आर्थिक रिश्ते की आधारशिला के रूप में देखा जा रहा है।
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