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Chandigarh: पीजीआई में टैक्स की बड़ी चूक, जीएसटी की अनदेखी... सरकारी खजाने को 8.06 करोड़ का नुकसान
वीणा तिवारी, चंडीगढ़
Published by: अंकेश ठाकुर
Updated Fri, 26 Dec 2025 10:51 AM IST
सार
पीजीआई ने जुलाई 2017 में सुरक्षा सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए एक निजी एजेंसी से समझौता किया था। करार की शर्तें बिल्कुल साफ थीं कि सेवा शुल्क में सभी कर शामिल होंगे और एजेंसी को जीएसटी नियमों का पूरा पालन करना होगा।
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चंडीगढ़ पीजीआई
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
पीजीआई में टैक्स में हुई बड़ी लापरवाही सामने आई है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट नंबर 250/2023 ने पीजीआई में जीएसटी नियमों की ऐसी अनदेखी उजागर की है, जिससे सरकारी खजाने को सीधे 8.06 करोड़ रुपये का चूना लगा। रिपोर्ट के मुताबिक पीजीआई ने जुलाई 2017 में सुरक्षा सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए एक निजी एजेंसी से समझौता किया था। करार की शर्तें बिल्कुल साफ थीं कि सेवा शुल्क में सभी कर शामिल होंगे और एजेंसी को जीएसटी नियमों का पूरा पालन करना होगा। लेकिन हकीकत इससे उलट निकली।
जांच में सामने आया कि एजेंसी ने कई महीनों तक न तो अपने बिलों में जीएसटी अलग से दिखाया और न ही सरकार के खाते में उसे जमा किया। इसके बावजूद पीजीआई नवंबर 2017 से जून 2020 तक लगातार भुगतान करता रहा। हैरानी की बात यह रही कि भुगतान से पहले न तो जीएसटी चालान मांगे गए और न ही टैक्स इनवॉयस की जांच की गई।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मार्च 2020 में पीजीआई ने एजेंसी को जीएसटी चालान जमा करने के निर्देश तो दिए, लेकिन इसके बाद भी नियमों का पूरी तरह पालन नहीं कराया गया। कई मामलों में जीएसटी जोड़ा ही नहीं गया और कई मामलों में जोड़ा गया, तो उसका भुगतान सरकार को नहीं हुआ। नतीजन सरकारी खजाने को करोड़ों का नुकसान हुआ।
रिपोर्ट में क्या कहा
रिपोर्ट में साफ शब्दों में कहा गया है कि भले ही जीएसटी इनवॉयस जारी करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सेवा प्रदाता की हो, लेकिन सेवा प्राप्तकर्ता होने के नाते पीजीआई की यह जिम्मेदारी थी कि वह नियमों का पालन सुनिश्चित करे। बिना वैध टैक्स इनवॉयस और जीएसटी जमा होने के प्रमाण के भुगतान जारी करना गंभीर वित्तीय लापरवाही है।
कैग की सख्त टिप्पणी
कैग की सख्त टिप्पणी है कि यदि पीजीआई ने समय रहते जीएसटी नियमों का पालन करवाया होता और भुगतान से पहले उचित दस्तावेजों की जांच की होती, तो 8.06 करोड़ रुपये के नुकसान से बचा जा सकता था।
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जांच में सामने आया कि एजेंसी ने कई महीनों तक न तो अपने बिलों में जीएसटी अलग से दिखाया और न ही सरकार के खाते में उसे जमा किया। इसके बावजूद पीजीआई नवंबर 2017 से जून 2020 तक लगातार भुगतान करता रहा। हैरानी की बात यह रही कि भुगतान से पहले न तो जीएसटी चालान मांगे गए और न ही टैक्स इनवॉयस की जांच की गई।
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रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मार्च 2020 में पीजीआई ने एजेंसी को जीएसटी चालान जमा करने के निर्देश तो दिए, लेकिन इसके बाद भी नियमों का पूरी तरह पालन नहीं कराया गया। कई मामलों में जीएसटी जोड़ा ही नहीं गया और कई मामलों में जोड़ा गया, तो उसका भुगतान सरकार को नहीं हुआ। नतीजन सरकारी खजाने को करोड़ों का नुकसान हुआ।
रिपोर्ट में क्या कहा
रिपोर्ट में साफ शब्दों में कहा गया है कि भले ही जीएसटी इनवॉयस जारी करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सेवा प्रदाता की हो, लेकिन सेवा प्राप्तकर्ता होने के नाते पीजीआई की यह जिम्मेदारी थी कि वह नियमों का पालन सुनिश्चित करे। बिना वैध टैक्स इनवॉयस और जीएसटी जमा होने के प्रमाण के भुगतान जारी करना गंभीर वित्तीय लापरवाही है।
कैग की सख्त टिप्पणी
कैग की सख्त टिप्पणी है कि यदि पीजीआई ने समय रहते जीएसटी नियमों का पालन करवाया होता और भुगतान से पहले उचित दस्तावेजों की जांच की होती, तो 8.06 करोड़ रुपये के नुकसान से बचा जा सकता था।