महाराष्ट्र-हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019ः राजनीतिक दलों के चुनावी वादे और जनता
दो राज्यों के विधानसभा चुनाव अगले कुछ दिनों में संपन्न हो जाएंगे। चुनावी मेला चरम पर है। इस दौरान वादों की झड़ी लगी हुई है। हर पांच साल बाद किए जाने वाले वादों को लेकर एक दूसरे को पछाड़ने में राजनीतिक दल लगे हैं। दिलचस्प स्थिति यह है कि पिछले वादों पर चर्चा नहीं है। पिछले वादे पूरे हुए या नहीं, इस पर कोई बात नहीं। चुप्पी है, हालांकि वादों की हकीकत की जानकारी सभी लोगों को है।
दरअसल, दोनों राज्यों में तमाम दलों ने तमाम वादों की झड़ी लगा दी है। मानों राज्य सोने की चिड़िया हो जाएगी। हर आदमी सुखी संपन्न हो जाएगा। कोई भूखा नहीं रहेगा, कोई बेरोजगार नहीं होगा। कोई किसान आत्महत्या नहीं करेगा। हर कोई को आसानी से अस्पताल में पहुंचते डॉक्टर मिलेगा। इन वादों की हकीकत वैसे तो जनता समझती है, लेकिन उन्हें यह पता भी होता है कि यह वादे पूरे कभी नहीं होंगे।
भाजपा, कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों ने लोगों को चांद पर तक पहुंचाने का वादा किया
पांच साल में एक करोड़ नौकरी उपलब्ध करवाने का संकल्प। ग्रामीण इलाकों में तीस हजार किलोमीटर तक सड़कें बनाने का वादा। राज्य को सूखा मुक्त और 12 घंटे किसानों को बिजली देने का वादा। राज्य में न कोई गरीब होगा न ही बीमार होगा, न ही कोई बेरोजगार। किसानों की आय दोगुना करने का वादा। ये सारे वादे हाल ही में महाराष्ट्र और हरियाणा मे भाजपा ने किए।
कांग्रेस वादों में भाजपा को पीछे क्यों रहती। कांग्रेस ने भी कई वादों की झड़ी लगा दी। महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी ने कहा कि राज्य के हर बेरोजगार युवा को 5 हजार रुपए मासिक भत्ता मिलेगा। ग्रामीण इलाकों में भी 200 दिन तक की रोजगार की गारंटी कांग्रेस ने दी। हरियाणा में कांग्रेस ने किसानों की ऋण माफी का वादा किया। हर बार की तरह नौकरियों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया।
इसी तरह से महाराष्ट्र और हरियाणा में क्षेत्रीय दल शिवसेना, जननायक जनता पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल ने भी कई वादे किए जो पिछले बीस सालों से हर चुनाव में होते हैं। वो पूरे नहीं होते, अगले चुनाव में पत्रकार नए घोषणापत्र जारी किए जाने के समय पुराने घोषणापत्र के अधूरे रहे वादों को लेकर सवाल भी नहीं पूछते। मतलब अब घोषणापत्र पूरी तरह से झूठ का पुलिंदा हो गया, अव्यवहारिक हो गया है।
खजाना खाली, मतलब वादे झूठे साबित होंगे
अहम सवाल यह है कि राजनीतिक दल जो घोषणापत्र मे वादे करते हैं वो कितने व्यवहारिक हैं और इसमें किए गए वादे किस हदतक पूरे किए जा सकते हैं? सच्चाई तो यह है कि राज्यों की माली हालत काफी खराब है, जो वादे पूरे करने हैं, उसके लिए हजारों करोड़ चाहिए। भाजपा अगर हरियाणा में अपना वादा पूरा करेगी तो इसके लिए कम से कम पचास हजार करोड़ रुपए सलाना चाहिए होगा।
कांग्रेस के वादे पर भरोसा करें तो साल में एक लाख करोड़ रुपया चाहिए होगा। जबकि सच्चाई यह है कि राज्य की वित्तीय हालत इस कदर खराब है, बजट में की गई घोषणाओं में कटौती हो रही है। राजनीतिक दल घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा ही नहीं कर सकते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि जनता भी इस सच्चाई को जानती है। जनता को पता है कि ये वादे पूरे नहीं होंगे। सरकारी नौकरियां अब हैं नहीं और निजी क्षेत्र में मंदी की स्थिति है।
महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ही राज्य भारी कर्जे में
हरियाणा की वित्तीय हालत को नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट ही बता देती है कि राज्य के हालात खराब हैं। हरियाणा में पिछले पांच सालों में कुल कर्ज में 115 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2013-14 में राज्य पर 76,263 करोड़ का कर्ज था। यह अब बढ़कर 1,64,076 करोड़ हो गया है। हरियाणा के प्रति व्यक्ति पर जो कर्ज 2013-14 में 27,700 रुपये था वो अब बढ़कर 63,000 रुपये हो गया है। वैसे में कोई भी सरकार आए अपने किए वादों को पूरा करने के लिए पैसा कहां से लाएगी?
हालात यह है कि सरकार लगातार कर्ज ले रही है औऱ जरूरी खर्चों को चला रही है। राज्य सरकार अपने बढ़ते राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए कर्ज पर कर्ज लिए जा रही है। इसी प्रकार महाराष्ट्र के वित्तीय हालात खराब हैं। महाराष्ट्र पर कुल कर्ज 4 लाख करोड़ रुपए पार कर गया है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा 2019-20 के लिए पेश बजट में राज्य सरकार ने बताया था कि राज्य पर 4,61,807 करोड़ रुपए का कर्ज है। पिछले एक सालों में आई आर्थिक मंदी ने राज्यों की हालत खराब की है।
इससे राज्य में भारी संख्या में युवा बेरोजगार हुए है। मंदी से राज्य के खजाने पर भी असर पड़ा है। प्रति माह जीएसटी कलेक्शन की आ रही रिपोर्ट सरकार के लिए निराशाजनक है। अगर जीएसटी के संग्रहण में कमी आयी तो इसका असर राज्यों के बजट में घोषित विकास संबंधी कार्यों पर दिखेगा। राज्य सरकारों को ग्रामीण विकास, सिंचाई और गरीबों से संबंधित अन्य योजनाओं पर होने वाले खर्च में कटौती करनी पड़ेगी।
रोजगार का संकट
दोनों चुनावीं राज्यों में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। सूखे की समस्या है। महाराष्ट्र सूखा से जूझ रहा है। हरियाणा पानी की कमी से जूझ रहा है। दोनों राज्यों से किसानों की आत्महत्याओं की खबरें भी आई हैं। भाजपा ने घोषणा-पत्र में किसानों की आय को बढ़ाने की बात की है और उनकी सिंचाई सुविधा बढ़ाने की बात की है। महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों राज्य जल संकट से जूझ रहे हैं।
इस तरह के वादे दोनों राज्यों में 2014 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों से पहले भी चुनावी घोषणापत्र में किए गए थे। लेकिन न तो किसानों की हालत सुधरी, न ही बेरोजगारी दूर हुई। हरियाणा में बेरोजगारी का दर 15 प्रतिशत पहुंच गया है। यहां लगभग 20 लाख युवा बेरोजगार हैं। महाराष्ट्र ने कुछ हद तक रोजगार की हालात हरियाणा के मुकाबले ठीक है।
महाराष्ट्र में बेरोजगारी दर 4.5 प्रतिशत के करीब है। हरियाणा भाजपा ने दावा किया है कि 25 लाख युवाओं को 500 करोड़ रुपये खर्च कर उन्हें कौशलयुक्त बनाएंगे। लेकिन कौशलयुक्त होने के बाद इन्हें काम कहां मिलेगा? पानीपत से लेकर गुड़गांव जैसे औधोगिक शहर मंदी के शिकार हैं। यहां के उद्योगों से छंटनी शुरू हो गई है। ऑटो सेक्टर में मंदी का असर गुड़गांव के मारूति उद्योग पर प़ड़ा है और इससे जुड़े छोटे उद्योग पर भी पड़ा है। पानीपत के हौजरी और कंबल उद्योग की हालत खराब है।
खजाना खाली तो बेरोजगारी भत्ते के पैसे के लाले पड़ेंगे
कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी जैसे दलों ने अपने घोषणापत्र में भाजपा को मात देने की कोशिश तो की है। लेकिन वे यह नहीं बता सकते है कि आखिर घोषणाओं को पूरा करने के लिए पैसे कहां से आएंगे?
कांग्रेस ने वादा किया है कि बेरोजगारों को 7 से 10 हजार रुपए का बेरोजगारी भत्ता देंगे। इंडियन नेशनल लोकदल ने तो 15 हजार रुपए बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया है। लेकिन इन दलों को राज्य सरकार के संसाधन और वित्तीय हालात की जानकारी है और उन्हें पता है कि ये वादे पूरे नहीं हो सकते हैं। तो फिर क्या ये दल चुनावों में जनता को सिर्फ बेवकूफ बनाते है?
किसान संकट को दूर करने का वादा
कांग्रेस ने कहा कि किसानों को मुफ्त बिजली देंगे। कांग्रेस को पता है कि पड़ोसी पंजाब राज्य में किसानों की मुफ्त बिजली दिए जाने के बाद राज्य सरकारी की वित्तीय हालत चरमरा रही है। पंजाब की वित्तीय हालत इस कदर खराब है कि सरकार हर माह कर्ज लेकर अपने खर्चे को चला रही है।
किसानों की आय बढ़ाने की बात हरियाणा भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में की है। लेकिन सारों को पता है कि पांच सालों में भाजपा के राज मे किसानों का भला न तो महाराष्ट्र में हुआ न ही हरियाणा में। दोनों राज्यों में खासे किसानों ने आत्महत्या की है।
हरियाणा में किसानों के लिए शुरू की गई भावांतर भरपाई योजना राज्य में फेल हो गई। किसानों को कहीं भी राज्य में इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा। यही नहीं राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों के अनाज भी सरकार ने सही तरीके से नहीं खरीदी गई है। बाजरा और सरसो जैसे अनाज की खरीद तो सरकार ने न के बराबर की।
पिछले पांच साल में बाजरा के कुल उत्पादन का 6 प्रतिशत और सरसों के कुल उत्पादन का 11 प्रतिशत राज्य सरकार की एजेंसियो ने खरीद की। राज्य सरकारी की एजेंसियों क खरीद धान और गेहूं तक सीमित रह गई है। लेकिन हरियाणा में तो इनेलो ने यहा तक वादा कर दिया कि राज्य में स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाएगा।
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