गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस: बलिदान की ज्योति, राष्ट्रवाद की प्रेरणा का कथानायक
Guru Tegh Bahadur 350th Shaheedi Diwas: 1675 ईस्वी का वह काला अध्याय, जब दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर को क्रूरता से शहीद कर दिया गया, भारतीय इतिहास की एक ऐसी घटना है जो हिंदू-सिक्खी एकता का प्रतीक बनी।
विस्तार
Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2025: गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस, जो हर वर्ष 24 नवंबर को मनाया जाता है, भारतीय इतिहास की उस अमर गाथा का स्मरण कराता है जब धर्म की रक्षा के लिए एक महान संत ने अपना सिर सौंप दिया। यह दिन न केवल सिख समुदाय के लिए, बल्कि समस्त भारतवर्ष के लिए एक प्रेरणास्रोत है, जहां राष्ट्रवादी विचारधारा की जड़ें गहरी हैं।
राष्ट्रवाद का अर्थ केवल सीमाओं की रक्षा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता और त्याग की भावना से ओत-प्रोत है। गुरु तेग बहादुर का बलिदान कश्मीरी पंडितों के हिंदू धर्म की रक्षा के लिए था, जो मुगल सम्राट औरंगजेब की जबरन धर्मांतरण नीति के विरुद्ध खड़ा था। यह घटना हमें सिखाती है कि राष्ट्र की रक्षा में जाति, धर्म या समुदाय का भेदभाव नहीं होता। आज, जब भारत वैश्विक पटल पर अपनी सांस्कृतिक शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है, यह दिवस हमें याद दिलाता है कि असली राष्ट्रवाद त्याग और एकजुटता में निहित है।
1675 ईस्वी का वह काला अध्याय, जब दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर को क्रूरता से शहीद कर दिया गया, भारतीय इतिहास की एक ऐसी घटना है जो हिंदू-सिक्खी एकता का प्रतीक बनी। गुरु जी ने स्वयं कहा था,
“तिलक जनेऊ जो राखे, तन मन धन सब कुछ होउ”
अर्थात् जो तिलक और जनेऊ की रक्षा करे, उसके लिए शरीर, मन और धन सब कुछ समर्पित। कश्मीरी पंडितों के आह्वान पर गुरु जी ने औरंगजेब को ललकारा, और परिणामस्वरूप उनका सिर कलम हो गया। लेकिन यह कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। भाई जैता जी (जिन्हें बाद में भाई जीवन सिंह कहा गया) ने गुरु जी के सिर को गोद में लपेटकर आनंदपुर साहिब की ओर प्रस्थान किया, ताकि दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी तक वह पहुंच सके। रास्ते में मुगल सैनिकों का पीछा तेज हो गया। वे गुरु जी के सिर को हथियाना चाहते थे, ताकि सिख धर्म की गरिमा को कुचल सकें। इसी संकट की घड़ी में हरियाणा के सोनीपत जिले के बधखलसा (तत्कालीन राय गढ़ी) गांव में एक साधारण जाट किसान परिवार ने इतिहास रच दिया। वह परिवार था चौधरी कुशल सिंह दहिया का, जिन्होंने राष्ट्र के हित में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
कौन थे कुशल सिंह दहिया?
कुशल सिंह दहिया, दहिया खाप के मुखिया थे, एक साहसी और धर्मनिष्ठ हिंदू जाट। उनका जन्म नाहरी गांव में हुआ था, लेकिन वे राय गढ़ी में बस गए थे। प्रकृति ने उन्हें गुरु तेग बहादुर जी से इतना मिलता-जुलता रूप दिया था कि दूर से देखने पर कोई भेद न कर सके। जब मुगल सैनिक गांव को घेर चुके थे और भाई जैता जी छिपे हुए थे, तो कुशल सिंह ने देखा कि स्थिति भयावह है। सैनिकों ने धमकी दी- या तो गुरु का सिर दो, या पूरा गांव जला दो।
कुशल सिंह के मन में एक क्रांतिकारी विचार कौंधा। उन्होंने सोचा, यदि मेरा सिर गुरु जी के सिर की जगह दे दिया जाए, तो भाई जैता जी सुरक्षित निकल सकेंगे और गांव भी बच जाएगा। यह निर्णय केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे परिवार का था। कुशल सिंह की पत्नी और पुत्र उनके साथ थे और इस बलिदान ने हिंदू-सिख एकता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। आज भी बधखलसा गांव में कुशल सिंह का स्मारक और संग्रहालय खड़ा है, जो इस गाथा को जीवंत रखता है।
पूरे परिवार ने दिया था बलिदान
कुशल सिंह के परिवार का जिक्र करते हुए हम देखते हैं कि यह बलिदान कितना पारिवारिक था। उनके सबसे बड़े पुत्र, जिनका नाम इतिहासकारों द्वारा विभिन्न रूपों में उल्लिखित है – कुछ ग्रंथों में उन्हें ‘रघुबीर’ कहा गया है, वह उस समय युवावस्था में थे। जब कुशल सिंह ने अपना निर्णय सुनाया, तो परिवार में हड़कंप मच गया। पत्नी ने रोते हुए कहा, “स्वामी जी, यह क्या कह रहे हो? हमारा परिवार तो उजड़ जाएगा।” लेकिन कुशल सिंह ने दृढ़ता से उत्तर दिया, “माता, राष्ट्र की रक्षा में परिवार का त्याग छोटा है। गुरु जी ने हिंदू धर्म बचाया, अब हमारी बारी है।” सबसे कठिन क्षण आया जब कुशल सिंह ने अपने पुत्र को बुलाया। उन्होंने कहा, “बेटा, तू ही मेरा सिर काट, ताकि यह मुगलों को धोखा दे सके। कपास में लपेटकर भाई जैता जी को दे देना।” पुत्र स्तब्ध रह गया। उसके मन में भय, संकोच और पिता के प्रति प्रेम का द्वंद्व था।
यहां बलिदान को लेकर पिता-पुत्र के बीच एक गहन बहस छिड़ गई, जो राष्ट्रवादी विचारधारा की गहराई को दर्शाती है। पुत्र ने विरोध किया, “पिताजी, मैं कैसे करूंगा यह? आपका सिर काटना तो मेरे लिए मृत्यु के समान है। मैं युवा हूं, मैं लड़ाई लड़ लूंगा मुगलों से। या सिर ही उन्हें चाहिए तो मेरा सिर क्यों नहीं या फिर कोई अन्य उपाय सोचें।”
कुशल सिंह ने शांत स्वर में समझाया, “बेटा, राष्ट्रवाद केवल तलवार चलाने में नहीं, बल्कि बुद्धि और त्याग में है। यदि तू मेरी बात न मानेगा, तो गुरु जी का सिर मुगलों के हाथ लग जाएगा, और सिख धर्म पर आघात होगा। हम हिंदू हैं, लेकिन गुरु जी ने हमारा धर्म बचाया। अब हमारा कर्तव्य है कि हम उनकी रक्षा करें। सोच, यदि गांव जल गया, तो कितने निर्दोष मरेंगे? यह बलिदान केवल मेरा नहीं, तेरी मां का, तेरा और पूरे परिवार का है। राष्ट्र के लिए माता-पिता का त्याग पुत्र को मजबूत बनाता है।” पुत्र की आंखों में आंसू थे, लेकिन पिता के तर्कों ने उसे झकझोर दिया। वह जान गया कि यह बहस केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि धार्मिक एकता और राष्ट्र की अखंडता की बहस है। अंततः, पुत्र ने सहमति दी। उसने तलवार उठाई, और कुशल सिंह का सिर काट दिया।
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गुरु तेग बहादुर के सिर के लिए अपना सिर किया न्यौछावर
कपास में लपेटकर वह भाई जैता जी को सौंप दिया। मुगल सैनिक धोखे में आ गए, सोच लिया कि यह गुरु जी का सिर है। वे लौट गए, और भाई जैता जी सुरक्षित आनंदपुर साहिब पहुंचे। 16 नवंबर 1675 को गुरु गोबिंद सिंह जी को पिता का सिर मिला और सिख इतिहास में यह घटना अमर हो गई।
सच्चा राष्ट्रवाद सीमाओं से परे
यह घटना राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से कितनी प्रासंगिक है? कुशल सिंह का परिवार हमें सिखाता है कि सच्चा राष्ट्रवाद सीमाओं से परे है। यह हिंदू-सिख भाईचारे का प्रतीक है, जो आज के भारत में और भी आवश्यक है। जब औरंगजेब जैसी शक्तियां धार्मिक स्वतंत्रता को कुचलने पर तुली थीं, तो एक साधारण किसान परिवार ने दिखा दिया कि त्याग की कोई सीमा नहीं। दहिया परिवार का बलिदान जाट समुदाय की वीरता का उदाहरण है, जो हमेशा से राष्ट्र रक्षा में अग्रणी रहा। आज, जब भारत आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में उभर रहा है, यह गाथा हमें याद दिलाती है कि आंतरिक एकता ही असली ताकत है। यदि प्रत्येक परिवार कुशल सिंह की भांति सोचे, तो कोई विदेशी आक्रमणकारी भारत को हिला न सके।
350वीं बलिदान वर्षगांठ पर भव्य आयोजन
कुशल सिंह के वंशज आज भी बधखलसा में रहते हैं। वीरेंद्र सिंह जैसे परपोते इस कथा को जीवंत रखते हैं। हरियाणा सरकार ने 2025 में 350वीं बलिदान वर्षगांठ पर भव्य आयोजन किया। राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किला परिसर में भी श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के 350वें बलिदान दिवस के पावन उपलक्ष्य में आयोजित तीन-दिवसीय भव्य समागम का शुभारंभ रविवार, 23 नवंबर को श्रद्धा और पूरे धार्मिक सद्भाव के साथ हुआ। तीन दिवसीय भव्य समागम में कीर्तन, प्रदर्शनी और लाइट एंड साउंड शो का विशेष आयोजन होगा। दिल्ली का लाल किला देश-विदेश से आए हजारों श्रद्धालुओं की संगत, भव्य पंडाल, कीर्तन दरबार, श्रद्धा, सेवा और श्री गुरु तेग बहादुर जी की अमर शिक्षाओं के रंग में पूरी तरह रंगा हुआ है।
समकालीन संदर्भ में देखें, तो यह बलिदान कोविड-19 जैसी महामारी या सीमा विवादों में देखे गए सामूहिक त्याग की याद दिलाता है। जब पूरा राष्ट्र एकजुट होता है, तो असंभव कार्य संभव हो जाते हैं। कुशल सिंह के पुत्र की बहस हमें सिखाती है कि युवा पीढ़ी को राष्ट्रवाद की समझ होनी चाहिए। स्कूलों में ऐसी गाथाएं पढ़ाई जाएं, ताकि नई पीढ़ी जान सके कि आज जो आजादी हमें मिली है, उसके लिए कितने महापुरुषों ने अपना बलिदान दिया है।
गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस पर हम कुशल सिंह दहिया परिवार को नमन करते हैं। उनका त्याग राष्ट्र की नींव है। जय हिंद, जय सिखों के नौवें गुरु! यह दिवस हमें प्रतिज्ञा दिलाता है कि हम भारत की अखंडता के लिए सदैव खड़े रहेंगे। राष्ट्रवाद की यह ज्योति कभी न बुझे।
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